भगवान कृष्ण ने मारा था एकलव्य को, वजह जानकर आप भी सन्न रह जायेंगे
महाभारत की पौरणविक कथा से तो पूरी दुनिया वाकिफ है जिसमे एकलव्य जैसा शूरवीर दुनिया का सबसे बड़ा धनुर्धर के रूप में उभरा था. इस महाभारत में वीरता, कौशलता और राजयोग के अलावा कूटनीति का भी बखूबी इस्तेमाल किया गया जिसमे भगवान कृष्ण का नाम सबसे पहले आया है. ऐसा देखा गया कि महाभारत युद्ध के न होने की स्थिति में भी उन्होंने अर्जुन को प्रेरित किया और युद्ध के लिए अग्रसर किया वहीं युद्ध के अंत मे भी पांडवो को कूटनीति की मदद से जिता दिया. लेकिन क्या आपको पता है कि इस महाभारत से एकलव्य अचानक कहाँ विलीन हो गए. ग्रंथ से पता चलता है कि एकलव्य की हत्या भी भगवान श्री कृष्ण ने की थी जिसका वजह आज तक कोई नही जान पाया लेकिन आज हम उस रहस्य से पर्दा उठाएंगे और बताएंगे कि आखिर क्यों श्रीकृष्ण ने एकलव्य का वध किया था?
महाभारत के समकालीन निषादराज हिरण्यधनु प्रयाग के पास स्थित श्रृंगवेरपुर राज्य के मालिक थे और हिरण्यधनु कोई और नही बल्कि एकलव्य के पिता थे. उस काल मे श्रृंगवेरपुर की ताकत मगध जैसे बड़े साम्राज्य के समकक्ष मानी जाती थी. एकलव्य के पिता हिरण्यधनु और उनका योद्धा सेनापति गिरिबीर अपनी वीरता के लिए विश्व भर में मशहूर थे. राजकाज के दौरान राजा अपने मंत्रियों और अधिकारियों की भी मदद ग्रहण कर राज संभाल रहे थे कि उनकी रानी सुलेखा ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम अभिद्युम्न निर्धारित किया गया.
हालांकि बाद में उन्हें ‛अभय’ के नाम से भी जाना जाने लगा। दूसरे राजकुमारों की तरह एकलव्य भी गुरुकुल में दीक्षा ग्रहण करने पहुंचे. वे बचपन से ही अस्त्र शस्त्र विद्या में निपुण थे इसलिए गुरुजन उसे एकलव्य के नाम से बुलाने लगे. जब गुरुकुल की शिक्षा पूर्ण हो गयी तो वे अपने माता-पिता के पास लौट आये जिसके बाद उनकी शादी एक निसाद लड़की सुणीता से कर दी गयी. उस जमाने मे आचार्य द्रोण के हर जगह गुणगान गए जाते थे सबका कहना था उनके जैसा धनुर्विद्या कोई नही दे सकता. ऐसा मालूम होने पर एकलव्य ने अपने पिता से द्रोण से शिक्षा दिलाने की आग्रह करने लगे पर हिरण्यधनु ने समझाया कि द्रोण सिर्फ क्षत्रिय और ब्राह्मणों को ही शिक्षा देते हैं फिर भी एकलव्य ने हठ करते हुए कहा कि मेरी कुशलता देख वो आकर्षित हो जाएंगे. लेकिन जब एकलव्य ने द्रोणाचार्य के सामने खुद को दीक्षा देने की बात की तो द्रोण ने दुत्कारते हुए भगा दिया और बोले वह कभी भी शुद्र को शिक्षा नही दे सकते क्षत्रिय कुल में होता तो एक बार विचार भी कर सकते थे.
एकलव्य ने उनकी बात सुनने के बाद इरादा पक्का कर लिया और इस बात का प्रण लिया कि मैं सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनके ही रहूंगा जिसके लिए उसने जंगल मे ही द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाकर उसके आगे अभ्यास करने लगा और आखिरकार वह निपुण भी हो गया. एक बार की बात है जब पाठ पढ़ाते हुए द्रोण पांडवो और कौरवों के साथ जंगल मे पहुंचे. उनके साथ उनका कुत्ता भी था जो एकलव्य की एकाग्रता में बाधा डालने लगा पर एकलव्य ने तभी ऐसा बाण मारा जिससे कुत्ते का मुंह भी बन्द हो गया और उसे जरा सी खरोंच भी नही आई. कुत्ता भागते हुए द्रोण के पास पहुंचा और धनुर्विद्या की ऐसी कुशलता देख आचार्य भी एक समय के लिए सोच में पड़ गए. जब वो एकलव्य के पास पहुंचे और इसके पीछे के गुरु का नाम जानने की कोशिश की तो एकलव्य का इशारा द्रोणाचार्य की मूर्ति की ओर था तभी द्रोण को वो संकल्प याद आया जिसके तहत उन्होंने अर्जुन को दुनिया का सबसे बड़ा धनुर्धर बनाने का वादा किये थे.
उन्होंने इस मौके का फायदा उठाते हुए एकलव्य से गुरुदक्षिणा के रूप में दाहिने हाथ का अंगूठा ही मांग लिया जिसके देने के बाद एकलव्य का धनुष चलाना असंभव हो गया. आप सभी सोच रहे होंगे कि अब एकलव्य का कोई अस्तित्व नही पर उन्होंने इसके पश्चात बिना अंगूठे के ही धनुष चलाना सीख लिया जो आज ओलंपिक जैसे खेलो में देखने को मिलता है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एकलव्य ने ही आधुनिक धनुर्विद्या का अविष्कार किया जिसमें इंसान बिना अंगूठे के इस्तेमाल किये ही धनुष चला सकता है. जब एकलव्य के पिता की मृत्यु हो गयी तो सारा राजपाठ एकलव्य के हाथों में आ गया और वह अपने राज्य का संचालन करने के साथ साथ निषादों की एक भीषण सेना का भी विस्तार करने लगे. विष्णु पुराण से यह पता चलता है कि जब जरासंघ ने मथुरा राज्य पर आक्रमण किया तो जरासंघ की तरफ से एकलव्य ने भी युद्ध किया था और यादवों का नरसंहार किया. जब भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध के दौरान सिर्फ चार उंगलियों से दनादन बाण चलाते देखा तो वे भी चकित रह गए लेकिन यादवों के हुए खात्मा से क्रोधित होकर उन्होंने एकलव्य को मौत के घाट उतार दिया.
एकलव्य अकेला पूरी सेना का सामना कर सकता था लेकिन कृष्ण ने छलपूर्वक उसकी मौत की कहानी रच दी. बता दें कि एकलव्य का एक पुत्र भी था जो महाभारत के युद्ध मे भीम के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ.
जब महाभारत के युद्ध के पांडवो की जीत हुई तो भगवान श्रीकृष्ण ने अपने और अर्जुन के बीच के प्रेम भाव को उजागर किया और बोले कि उन्होंने शुरू से ही अर्जुन को दुनिया का सबसे बड़ा योद्धा बनाने की कोशिश की और इसीलिए आने वाली हर बाधा को अपनी कूटनीति द्वारा हटाते गए. उन्होंने एकलव्य, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे शूरवीरों को भी यमलोक प्रस्थान करा दिया. एकलव्य की श्रीकृष्ण द्वारा हत्या के इस राज से काफी लोग अभी तक अपरिचित थे.