अध्यात्म

यू हीं नहीं बांधते पूजा के बाद हाथ पर ‘रक्षासूत्र’, पीछे है बहुत बड़ी वजह, जान कर रह जाएंगे दंग

हिंदू धर्म एक ऐसा धर्म है जिसे समझ पाना थोड़ा मुश्किल है. बाकी धर्मों की तुलना में यह धर्म थोड़ा कठिन और उलझा हुआ भी है. हिंदू धर्म में अनेकों ऐसी चीज़ें की जाती हैं जिसका पता लोगों को नहीं होता. वह बस धर्म, भगवान और आस्था के नाम पर इन चीज़ों को कर लेते हैं. लेकिन बहुत ज़रूरी है आप जो चीज़ करते हैं उसके बारे में आपको पूरा ज्ञान भी हो. आधे-अधूरे ज्ञान को वैसे भी खतरनाक माना गया है. इसलिए आज हम आपको ऐसी ही एक जानकारी देने वाले हैं जिसके बारे में शायद ही आपको पता होगा. इस चीज़ से वाकिफ तो हर कोई होगा लेकिन इसके पीछे का कारण बहुत ही कम लोग जानते होंगे. आज हम पूजा के बाद हाथ में बांधे जाने वाले ‘कलावा’ या ‘रक्षा सूत्र के बारे में बात करेंगे. इस कलावा को पंडित लोग पूजा के समय हाथ पर बांधते हैं. आप इस धागे को हाथ पर बंधवा तो लेते हैं पर क्या आपको इसके महत्व के बारे में पता है?

आपने देखा होगा कि पूजा संपन्न होने के बाद पंडित लोग इस रक्षा सूत्र को हाथ पर बांधते हैं. वह यह धागा एक मंत्र का उच्चारण करते हुए कलाई पर बांधते हैं. आमतौर पर ये धागा महिलाओं की बाईं और पुरुषों की दाईं कलाई पर बांधा जाता है. दरअसल, कलावा को हाथ पर बांधने के पीछे अटूट विश्वास होता है. इतिहास के अनुसार, उस समय पूजा या यज्ञ के दौरान जो यज्ञसूत्र बांधा जाता था उसे ही आगे चलकर लोग रक्षा सूत्र या कलावा के नाम से जानने लगे. कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु का वामनावतार ने भी राजा बलि को यह रक्षा सूत्र बांधने के बाद ही पाताल लोक जाने की अनुमति दी थी.

यदि आपको ध्यान हो तो पंडित लोग यह रक्षा सूत्र या कलावा बांधते समय एक मंत्र का उच्चारण करते हैं. उस मंत्र को बोलते-बोलते ही वह यह धागा हाथ पर बांधते हैं. दरअसल, पंडित लोग इसी घटना का जिक्र (राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधने का ज़िक्र) मंत्र के रूप में करते हैं. भारत में सभी पूज्य और आदरणीय लोगों को रक्षा सूत्र बांधा जाता है. कहते हैं कि यह धागा व्यक्ति की कलाई पर बांध देने से उसकी रक्षा होती है. यह मंत्र कुछ इस प्रकार होता है-

मंत्र येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबल: I

तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल II

अर्थात- दानवों के महाबली राजा बलि को जिससे बांधा गया था, उसी से मैं तुम्हे बांधता हूं. हे रक्षे! तुम चलायमान न हो, तुम चलायमान न हो.

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