चार सदी बाद श्राप से अब मिली मुक्ति, मैसूर के राजघराने ने किया था ये पाप
हिन्दुस्तान में शुरु से राजा महराजाओं का राज रहा है, राजा एक दूसरे पर आक्रमण करते और दूसरों के राज्य को अपने में मिला लेते। ऐसी स्थिति देश में सैकड़ों साल तक चली। इस दौरान कई बार ऐसी बातें भी सामने आई जिनपर विश्वास करना आसान नहीं है। कहा जाता है राजा बातों को धनी होते थे, जो वचन एक बार किसी को दे देते थे उससे मुकरते नहीं थे। ऐसे ही कुछ बातें श्राप को लेकर हैं, जो नाराज होकर अगर किसी को श्राप दे दिया तो वो श्राप कभी कटता नहीं था। एक बार श्राप देने के बाद उसको भोगना ही पड़ता था। ऐसा ही हुआ, मैसूर के राजा के साथ जो चार सौ साल तक एक श्राप को भोगते रहे।
मैसूर का वाडियार राजवंश बीती चार सदियों से एक श्राप को भोग रहा था। दक्षिण भारत का वाडियार राजघराना खुद मानता है कि 400 साल से एक बुजुर्ग महिला का दिया गया श्राप उनको भोगना पड़ रहा है। क्योंकि चार सदी बीत जाने के बाद भी राजमहल में किलकारी नहीं गूंजी। लेकिन हाल ही में इस श्राप से मुक्ति मिली है।
मैसूर रियासत के 27वें राजा यदुवीर की शादी बीते साल 27 जून 2016 को डूंगरपुर की राजकुमारी तृषिका सिंह से हुई थी। चार दिन तक चले शादी समारोह में देश विदेश के तमाम मेहमान शामिल हुए थे। शादी की जितनी खुशी राजवंश और उनसे जुड़े लोगों को थी। उससे ज्यादा खुशी हाल ही में महरानी तृषिका सिंह के मां बनने के बाद मनाई जा रही है। क्योंकि राजमहल में बीते चार सौ साल के बाद किलकारी गूंजी है।
दिवंगत महाराज श्रीकांतदत्त नरसिम्हराज वाडियार और रानी प्रमोदा देवी की अपनी कोई संतान नहीं थी। इसलिए रानी ने अपने पति की बड़ी बहन के बेटे यदुवीर को गोद लिया और वाडियार राजघराने का वारिस बना दिया। यह घराना राज परंपरा आगे बढ़ाने के लिए 400 सालों से राजघराना किसी दूसरे के पुत्र को गोद लेकर वंश को आगे बढाते रहे।
मैसूर के इतिहास में कहा जाता है, 1612 में दक्षिण भारत के सबसे ताकतवर राजा विजयनगर के थे। जिनके पतन के बाद वाडियार राजा की सेना ने विजय नगर में आक्रमण करके वहां खूब लूटपाट मचाई। विजयनगर की तत्कालीन महारानी अलमेलम्मा हार के बाद एकांतवास में थीं, लेकिन उनके पास काफी सोने, चांदी और हीरे- जवाहरात थे। कहा जाता है वाडियार ने महारानी के पास दूत भेजाकर संदेश भिजवाया की उनके गहने अब वाडियार साम्राज्य की शाही संपत्ति का हिस्सा हैं इसलिए उन्हें दे दें। लेकिन महारानी अलमेलम्मा ने जब गहने देने से इनकार किया तो वाडियार की शाही फौज ने जबरन खजाने पर कब्जे की कोशिश की। इससे दुखी होकर अलमेलम्मा ने श्राप दिया था। कि जिसतरह तुम लोगों ने मेरा घर ऊजाड़ा है उसी तरह तुम्हारा राजवंश संतानविहीन हो जाए और इस वंश की गोद हमेशा सूनी रहे। बताया जाता है कि श्राप देने के बाद अलमेलम्मा ने कावेरी नदी में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली थी।
श्राप लगने के बाद महल में अलामेलम्मा की मूर्ति देवी के रूप में लगाई गई, श्राप से मुक्ति पाने के लिए रोज पूजा की जाने लगी। लेकिन इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ा, राजा वडियार के इकलौते बेटे की मौत हो गई। तब से हर एक पीढ़ी बाद मैसूर के राजपरिवार को उत्तराधिकारी के रूप में किसी को गोद लेना पड़ता है। लेकिन लगता है अब अलामेलम्मा खुश हो गई हैं, और उन्होने श्राप से मुक्ती दे दी है। तभी राजकुमारी को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है।