गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है जब ऐसे लोग आपको नमस्कार करें तो समझें ये खतरे की है घंटी
आम तौर पर जब हम किसी से मिलते हैं तो नमस्ते करते हैं या फिर हाथ मिलाकर एक-दूसरे का हम अभिवादन करते हैं। शस्त्रानुसार कुछ इस तरह व्यक्तिओं के के पहचान बताये गये हैं ( Ramayan Goswami Tulsi Das Prasang ), जो अगर हमे नमस्कार करते हैं तो ये हमारे लिये खतरे की घंटी है। जब भी ये लोग हमे नमस्ते करते हैं, तो निकट भविष्य में ही संकट के आने की घोर संभावना होती हैं। गोस्वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरित मानस में इस विषय पर, रावण और मारीच के संवाद का एक प्रसंग है।
रावण सीता माता का हरण करने के लिए लंका से निकल कर वह अपने मामा मारीच के पास पहुंचता है और उसे नमस्कार करता है। मारीच रावण को झुका देखकर समझ जाता है कि अब भविष्य में कोई संकट आने वाला है।
श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि [ Ramayan Goswami Tulsi Das Prasang ]
नवनि नीच कै अति दुखदाई। जिमि अंकुस धनु उरग बिलाई।।
भयदायक खल कै प्रिय बानी। जिमि अकाल के कुसुम भवानी।।
दोहे का अर्थ- रावण को इस प्रकार झुके हुए देखकर मारीच सोचता है कि किसी नीच व्यक्ति का नमन करना भी दुखदाई होता है। मारीच रावण का मामा था, लेकिन रावण राक्षसराज और अभिमानी था। वह बिना कारण किसी के सामने झुक नहीं सकता था। मारीच ये बात जानता था और उसका झुकना किसी भयंकर परेशानी का संकेत था। तब भयभीत होकर मारीच ने रावण को प्रणाम किया।
दोहे का शेष अर्थ…
मारीच सोचता है कि जिस प्रकार कोई धनुष झुकता है तो वह किसी के लिए मृत्यु रूपी बाण छोड़ता है। जैसे कोई सांप झुकता है तो वह डंसने के लिए झुकता है। जैसे कोई बिल्ली झुकती है तो वह अपने शिकार पर झपटने के लिए झुकती है। ठीक इसी प्रकार रावण भी मारीच के सामने झुका था। किसी नीच व्यक्ति की मीठी वाणी भी बहुत दुखदायी होती है, यह ठीक वैसा ही है जैसे बिना मौसम का कोई फल। मारीच अब समझ चुका था कि भविष्य में उसके साथ कुछ बुरा होने वाला है।
मारीच कहता है
यह सब सोचते हुए मारीच कहता है-
करि पूजा मारीच तब सादर पूछी बात।
कवन हेतु मन ब्यग्र अति अकसर आयहु तात।।
तब मारीच ने रावण का उचित सत्कार किया, क्योंकि रावण सभी राक्षसों का राजा था। आदर-सत्कार करने के बाद मारीच ने रावण से वहां आने का कारण पूछा। तब रावण ने मारीच को पूरा प्रसंग बताया।
प्रसंग
प्रसंग के अनुसार, लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा की नाक और कान काट दिए जाते हैं। इस अपमान का बदला लेने के लिए शूर्पणखा खर और दूषण नाम के राक्षसों के पास जाती है और राम-लक्ष्मण से बदला लेने के लिए उकसाती है। खर-दूषण भी शूर्पणखा के अपमान का बदला लेने के लिए राम और लक्ष्मण पर आक्रमण कर देते हैं, लेकिन उस युद्ध में सभी राक्षस मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। तब शूर्पणखा अपने भाई रावण को पूरा प्रसंग बताती है और सीता का हरण करने की बात कहती है। रावण भी अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए तैयार हो जाता है।