क्या आप जानते हैं नौ दुर्गा के नौ रूपों की कथा? अगर नहीं तो यहाँ जानें पूरी कथा
कल से ही नवरात्री का पावन समय शुरू हो चुका है। नवरात्री के ये नौ दिन किसी भी मनोकामना की पूर्ति करवाई जा सकती है। माता की पूजा-अर्चना से मनुष्य अपने सभी इच्छाओं को पूर्ण कर लेता है। नवरात्री के समय में आता के नौ रूपों की आरधना की जाती है। लेकिन बहुत कम ही लोग हैं जो इसके पीछे के कारण को जानते हैं। कम ही लोग हैं जिन्हें माता के नौ रूपों की कहानी के बारे में पता है। अगर आप भी उनमें से एक हैं तो चिंता मत कीजिये। आज हम आपको माता के सभी नौ रूपों के बारे में विस्तार से बतानें जा रहे हैं।
जानें माता के नौ रूपों की कथा:
*- शैलपुत्री:
नवरात्री के पहले दिन माता के इसी रूप की पूजा की जाती है। माता के इस रूप में पर्वतराज हिमालय के यहाँ पुत्री के रूप में जन्म लिया था, इसी कारण से इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। माता के दाए हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित रहता है। यह नौदुर्गा में पहले नंबर पर आती हैं।
*- ब्रह्मचारिणी:
माँ दुर्गा के नौ रूपों में उनके दुसरे रूप को ब्रह्मचारिणी देवी के रूप में जाना जाता है। इनकी पूजा नवरात्री के दुसरे दिन की जाती है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या या तप की देवी। माता के इस रूप के दायें हाथ में तप की माला और बाएं हाथ में कमण्डल सुशोभित रहता है।
*- चंद्रघंटा:
माता दुर्गा के तीसरे रूप को चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। नवरात्री के तीसरे दिन माता के इसी रूप की पूजा की जाती है। माता के इस रूप को शांतिदायक और कल्याणकारी माना जाता है। माता का मस्तक अर्धचन्द्राकार है। माता के इस रूप की दस भुजाएं हैं, जिनमें अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र सुशोभित हैं। इनका वाहन सिंह है।
*- कुष्मांडा:
माता दुर्गा के चौथे रूप को कुष्मांडा देवी के रूप में जाना जाता है। नवरात्री के चौथे दिन इन्ही की पूजा की जाती है। अपोनी मंद हंसी के द्वारा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति करनें के कारण ही इन्हें कुष्मांडा नाम से जाना जाता है। माता की पूजा-आराधना से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है।
*- स्कंदमाता:
माँ दुर्गा के पांचवें रूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। नवरात्री के पांचवें दिन माता के इसी रूप की पूजा की जाती है। स्कन्द कुमार को कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है। इन्ही स्कन्द कुमार की माता होनें की वजह से माता के इस रूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। माता कजे इस रूप की चार भुजाएं हैं। माता की आराधना करनें से व्यक्ति को हर क्षेत्र में सफलता की प्राप्ति होती है।
*- कात्यायनी:
माँ दुर्गा के छठवें रूप को माता कात्यायनी के नाम से जाना जाता है। महर्षि कात्यायन की यह इच्छा थी कि माता उनके घर में पुत्री के रूप में जन्में। ऋषि की इच्छा की पूर्ति और राक्षस महिषासुर के विनाश के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने-अपनें तेज के अंश से देवी को उत्पन्न किया। माता के इस रूप की सबसे पहले महर्षि कात्यायन ने ही पूजा की।
*- कालरात्रि:
कालरात्रि को माँ दुर्गा के सातवें के रूप में जाना जाता है। नवरात्री के सातवें इन माता के इसी रूप की पूजा की जाती है। माता के इस रूप में उनके शरीर का रंग काला, बाल बिखरे हुए, गले में विध्युत की तरह चमकनें वाली माला और तीन नेत्र हैं। माता की आराधना करनें वाले व्यक्ति का मन सहस्त्रा चक्र में स्थित होता है।
*- महागौरी:
माँ दुर्गा के आठवें रूप को महागौरी के रूप में जाना जाता है। नवरात्री के आठवें दिन माता के इसी रूप की पूजा की जाती है। माता के इस रूप में उनके वस्त्र एवं आभूषण सब कुछ सफ़ेद रंग के हैं। माता का वाहन वृष है और इनकी चार भुजाएं हैं। माता के इस रूप की पूजा करनें वाले व्यक्ति के जीवन में किसी चीज की कमी नहीं होती है।
*- सिद्धिदात्री:
माता दुर्गा के आखिरी और नौवें रूप को सिद्धिदात्री के रूप में जाना जाता है। इस रूप की पूजा नवरात्री के आखिरी दिन की जाती है। इनकी पूजा करनें से व्यक्ति को हर प्रकार के सिद्धियों की प्राप्ति होती है।