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तवायफ बनने के लिए देने पड़ते थे 5 बलिदान। ना चाहते हुए भी करने पड़ते थे ऐसे काम

रहस्य और रोमांच से भरी है तवायफ की दुनिया, लेकिन असल में छिपे हैं कई गहरे राज। चौथे नंबर का बलिदान तो हर महिला के लिए है अपमानजनक। जानने के लिए इस दिलचस्प लेख को अंत तक जरूर पढ़ें ।

तवायफों की दुनिया हमेशा से कई रहस्य और रोमांच से भरी लगती है, जबकि असल में उस चमक दमक के पीछे कई सारे त्याग, संघर्ष और बलिदान छुपे होते हैं। जिस प्रकार एक मुस्कुराते चेहरे के पीछे अक्सर गमों का सैलाब मौजूद रहता है उसी प्रकार एक ग्लैमर और वैभव से जुड़े तवायफ के पीछे कई सारे संघर्ष और बलिदान होते हैं।

पहला बलिदान

तवायफ बने कि इस लिस्ट में पहला बलिदान है परिवार से दूरी बनाकर रखना। परिवार हर सबको प्यारा होता है। लेकिन कई बार कुछ ऐसी मजबूरियां होती हैं की जिसके कारण परिवार से दूरी बनाना आवश्यक हो जाता है। जब भी कोई तवायफ कोठी पर लाई जाती थी उसे अपने परिवार और पहचान को पीछे छोड़ना पड़ता था। यह उनका पहला और सबसे कठिन बलिदान होता था इस नए जीवन में उनकी पहचान उनकी कला और उनके हुनर से ही होती थी ना कि उनके पारिवारिक नाम से और संस्कार से।

दूसरा बलिदान

दूसरा बलिदान है अंतहीन रियाज। तवायफ को अपनी कला में माहिर बनने के लिए निरंतर रियाज करना पड़ता था यह रियाज उन्हें रोजाना कई घंटे तक करना होता था चाहे उन्हें शारीरिक पीड़ा ही क्यों ना हो यहां तक की मासिक धर्म के दौरान भी उनका यह रियाज नहीं रूकता था। यह रियाज वे अपनी मर्जी से नहीं करती थी, बल्कि अपने अन्दर हुनर लाने के लिए उन्हें जबरदस्ती कई प्रकार के कलाओं का रियाज करना पड़ता था।

तीसरा बलिदान

तवायफ बनने के लिए महिलाओं को अपने गर्भ का भी बलिदान देना पड़ता था। गर्भपात की पीड़ा सहना तवायफ बनने के लिए तीसरा बलिदान है। तवायफों के जीवन में शायद सबसे दर्दनाक बलिदान होता था गर्भवती होने पर गर्भपात कराना। यह उनके लिए न केवल शारीरिक बल्कि भावनात्मक रूप से भी कष्टदाई होता था अगर कभी बच्चा होता भी था तो उसे अपने से दूर करना पड़ता था। एक मां के लिए सबसे दर्दनाक होता है अपने बच्चों से दूर जाना या अपने बच्चे को अपने कोख में ही मार देना लेकिन यह बलिदान भी तवायफों को देना पड़ता था।

चौथा बलिदान

चौथा बलिदान है एक  के रूप में अपनी जिंदगी व्यतीत करना। महिलाओं को तवायफ बनने के लिए कोठी पर दासी की तरह जीवन यापन करना पड़ता था वह अपनी मर्जी से कोई भी काम नहीं कर सकती थी, और उनका जीवन अन्य लोगों की इच्छाओं के अनुसार ही चलता था। वैसे देखा जाए तो इसमें कोई नई बात नहीं है पुराने समय से महिलाएं एक दासी की तरह ही अपना जीवन व्यतीत करते आई हैं। चाहे एक तवायफ हो या एक साधारण महिला हमेशा पुरुषों के अधीन एक दासी के रूप में उनकी छवि देखने को मिली है। यदि कभी किसी तवायफ ने अपने मर्जी से कुछ कर दिया तो उन्हें शारीरिक पीड़ा सहनी पड़ती थी, और मार झेलना पड़ता था।

आखिरी बलिदान

तवायफ बनने के लिए आखिरी बलिदान है प्यार से वंचित रहना। चाहे मनुष्य हो या जानवर हर कोई अपने आसपास के लोगों से प्यार ढूंढता है। लेकिन तवायफों की जिंदगी थोड़ी अलग हुआ करती थी उन्हें कोठी पर आने के बाद प्रेम का रिश्ता नहीं जोड़ने दिया जाता था। उनकी जिंदगी में प्रेम का आगमन बहुत कम होता था क्योंकि उन्हें अपनी भावनाओं को दबा कर रखना पड़ता था इस तरह उन्हें अपनी भावनाओं को छुपा कर जीना पड़ता था और यह उनके लिए अत्यंत पीड़ा दायक भी होता था।

बिना प्रेम, परिवार के एक दासी का जीवन व्यतीत करना अत्यंत कष्टदायक होता है, लेकिन यह सभी महिलाओं को सहना पड़ता था। इन मामलों पर आपको क्या विचार है कमेंट कर जरूर बताएं।

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