मंदिर में घुसने से पहले ही निकाल दें ये चीजें, वरना साथ ले जाने से हो जायेगा आपके सभी पुण्यों का नाश
हिन्दू धर्म में मंदिरों का अपना महत्व होता है। मंदिर एक ऐसी जगह होती है, जहाँ व्यक्ति को सुख-शांति का अनुभव होता है। साथ ही ऐसा प्रतीत होता है, जैसे वह ईश्वर के बहुत करीब हो। हालांकि बिना मंदिर जाए भी भगवान की आराधना की जा सकती है, उसके लिए मन में केवल श्रद्धा होनी चाहिए। लेकिन मंदी जानें से यह लगता है कि भगवान आपके सामने ही हैं।
मंदिर जानें से मिलती है मानसिक शांति:
भगवान को सामने देखकर मन में कोई बुरे विचार भी नहीं आते हैं और मन अपने आप उनकी आराधना में लग जाता है। प्रतिदिन मंदिर जाकर ईश्वर की आराधना करने से जहाँ व्यक्ति के जीवन की सभी परेशानियों का अंत हो जाता है, वहीँ उसे मानसिक शांति की भी प्राप्ति होती है। भगवान की आराधना बिना कुछ चढ़ाये भी की जा सकती है, लेकिन चढ़ावे का अपना महत्व होता है।
धार्मिक स्थलों पर जानें से पहले निकालकर जाना चाहिए जूते-चप्पल:
चढ़ाव चढ़ाने से भगवन अत्यंत प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति की सभी परेशानियों को हर लेते हैं। जब भी कोई व्यक्ति मंदिर जाता है तो साथ में फल, फूल दूप, अगरबत्ती और भगवान की आरती के लिए दीपक लेकर जाता है। किसी भी धार्मिक स्थान पर जानें से पहले अपने जूते चप्पल उतारने के लिए कहा जाता है। केवल जूते-चप्पल ही नहीं पर्स और बेल्ट भी निकालने के लिए कहा जाता है।
चमड़ा होता है धार्मिक दृष्टि से अपवित्र:
कुछ लोग इसका मतलब समझ नहीं पाते हैं, लेकिन आज हम आपको ऐसा ना किये जानें की असली वजह बताने जा रहा हूँ। आजकल ज्यादातर जूते-चप्पल, बेल्ट और पर्स चमड़े के बने हुए आ रहे हैं। धार्मिक दृष्टि से इन चीजों को अपवित्र माना जाता है। चमड़े को निरीह जानवरों की खाल से बनाया जाता है। इसलिए कहा जाता है कि चमड़े की कोई भी चीज पहनकर पूजा-पाठ या धार्मिक स्थल पर नहीं जाना चाहिए।
अगर कोई व्यक्ति ऐसा करता है और वह चमड़े की बनी चीजें धारण करके ही पूजा करता है, तो उसे उसका पुण्य नहीं मिलता है। उल्टा उसके द्वारा किये हुए पूर्व के पुण्यों का नाश हो जाता है। इसके अलावा इसका वैज्ञानिक कारण भी है। चमड़े में काफी बदबू होती है, जिसे रसायनों के द्वारा दूर किया जाता है। रसायनों का प्रयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि चमड़े को पानी में नहीं धोया जा सकता है, इससे वे ख़राब हो जाते हैं।