देश में अन्ना आन्दोलन का इतिहास दोहराया जा सकता है,पीएम मोदी को चिठ्ठी लिख अन्ना हजारे ने दी चेतावनी
साल 2011 का अन्ना आन्दोलन तो सबको याद होगा… वो आन्दोलन जिसने आजादी के बाद भारत में हुए सबसे बड़े जनक्रान्ति का रूप ले लिया था। यूपीए सरकार के समय जनलोकपाल की मांग कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारें के अनशन ने पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम छेड़ दी थी और देश के हर राज्य में, हर शहर हर कस्बें से लोग इस आन्दोलन का हिस्सा बनने सड़कों पर उतर आए थें।
भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मुहीम में नई पीढ़ी ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक नया इतिहास रचा था। एक बार फिर से परिस्थितियां कुछ ऐसी बन रही हैं कि ये इतिहास दुबारा से दोहराया जा सकता है.. क्योंकि देश की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थ्तियों से क्षुब्ध होकर सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से कहा कि वह अपनी मांगों को लेकर दिल्ली में फिर से जन आंदोलन करेंगे.. हजारे ने इस सबंध में प्रधानमंत्री को बाकायदा पत्र लिखा है।
लोकपाल कानून पर अमल न होने से क्षुब्द हैं अन्ना
प्रधानमंत्री को लिखें गए पत्र में अन्ना हजारें ने ये स्पष्ट किया है कि “वतर्मान सरकार ने सत्ता में आने से पहले आपने देश की जनता को भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण की प्राथमिकता का आश्वासन दिया था। जिस राज्यों में आपकी पार्टी की सरकारे हैं वहां भी नये कानून के तहत लोकायुक्त नियुक्त नहीं किए गये हैं। इससे यह स्पष्ट होता है की आप के पास लोकपाल, लोकायुक्त कानून पर अमल करने के लिये इच्छाशक्ति का अभाव है। आपकी कथनी और करनी में अंतर आ गया है। फिर कैसे होगा भ्रष्टाचारमुक्त भारत? जिस संसद ने देश के लाखों लोगों की मांग पर यह कानून बनवाया और राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर भी कर दिए फिर भी उस कानून पर अमल ना करना, क्या यह जनता, संसद और राष्ट्रपति का अपमान नहीं है”।
नई सरकार उम्मीद पर नही उतरी खरी
अन्ना ने अपने पत्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ किए गए अपने पूर्व के जनआंदोलन का जिक्र करते हुए कहा कि तत्कालीन सरकार ने और उसके बाद आई नई सरकार ने अपने कार्यकाल के तीन साल बीत जाने के बाद भी इस बारे में कोई संतोषजनक कदम नहीं उठाया जिससे व्यथित होकर उन्हें फिर से जनआंदालेन शुरू करने का फैसला लेना पड़ा है। पत्र में हजारे ने लिखा है कि भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना देखते हुए देश की जनता ने अगस्त 2011 में दिल्ली के रामलिला मैदान पर और पूरे देशभर में ऐतिहासिक आंदोलन की शुरूआत की थी।
देश भर में गांव-गांव, शहर-शहर के लाखों की संख्या में लोगों ने इस आंदोलन में हिस्सा लिया क्योंकी भ्रष्टाचार के कारण आम जनता का जीवन जीना मुश्किल हो रहा था। जनशक्ति के इस आंदोलन के कारण तात्कालिक सरकार के शासन में लोकपाल, लोकायुक्त का कानून 17 दिसंबर, 2013 को राज्यसभा में और 18 दिसंबर, 2013 को लोकसभा में पारित हो गया। उसके बाद एक जनवरी 2014 को राष्ट्रपति ने इसपर हस्ताक्षर भी कर दिए थे। उसके बाद 26 मई, 2014 को नयी सरकार सत्ता में आयी। नई सरकार से जनता को बहुत उम्मीदें थीं लेकिन यह पूरी नहीं हुई।