आज दाने-दाने को मोहताज है यह क्रिकेटर, कभी थे बादशाह, अब रिक्शा चलाकर कर रहे गुजारा
गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) : समय का पहिया ऐसा घूमता है कि राजा रंक बन जाता है और रंक राजा बन जाता है. आज हम आपसे बात करेंगे एक धाकड़ बल्लेबाज की जिसने 20 गेंदों में 67 रन बनाकर तहलका मचा दिया था. लेकिन आज वो ई रिक्शा चलाकर अपना गुजरा कर रहा है और दिन के महज ढाई सौ से तीन सौ रूपये कमा पाता है.
उस बल्लेबाज का नाम है राजा बाबू. राजा बाबू कभी धुआंधार बल्लेबाजी करके काफी चर्चा में रहे थे लकिन आज उस कारनामे के पांच साला बाद वे दाने-दाने को मोहताज है. परिवार में पत्नी निधि (27) और बच्चे- कृष्णा (7) और शानवी (4) शामिल है. घर-परिवार का पेट राजा बाबू रिक्शा चलाकर भरते हैं. राजा जब महज 12 साल के थे तब ही क्रिकेट से उनका नाता जुड़ गया था. उन्होंने गली क्रिकेट खेलना शुरू किया. क्रिकेट का जूनून लिए राजा ने साल 2000 में कानपुर में आरामीना ग्राउंड पर ट्रेनिंग शुरू की. इसके बाद जिला स्तर के टूर्नमेंट्स में भाग लिया.
हादसे में गंवा दिया पैर…
राजा बाबू की जिंदगी ने उस समय मोड़ लिया जब उन्होंने एक हादसे में एक पैर गंवा दिया था. हादसे ने मानो उनकी जिंदगी ही बदल दी. वे बताते है कि, ‘1997 में स्कूल से घर लौटते वक्त एक ट्रेन हादसे में मैंने बायां पैर खो दिया. उस वक्त मेरे पिता रेलवे में ग्रेड IV कर्मचारी थे और कानपुर के पनकी में तैनात थे. हादसे के बाद मेरी पढ़ाई रुक गई क्योंकि परिवार स्कूल की फीस नहीं चुका सकता था. हादसे ने मेरी जिंदगी बदली मगर मैंने सपने देखना नहीं छोड़ा’.
राजा ने आगे कहा कि, ‘2013 में मैंने बिजनौर में कुछ टूर्नमेंट्स खेले. उसी दौरान शर्मा जो तब DCA के निदेशक थे, मुझे एसोसिएशन से जुड़ने को कहा. 2015 के उत्तराखंड दिव्यांग क्रिकेट टूर्नमेंट में मुझे बेस्ट प्लेयर का अवार्ड मिला. अगले साल मैं यूपी टीम का कैप्टन बन गया’.
जूते बनाने वाली फैक्ट्री में 200 रुपये दिहाड़ी पर किया काम…
शादी के बाद राजा पत्नी के साथ गाजियाबाद आ गए. यहां आकर उन्होंने जूते बनाने वाली एक फैक्ट्री में काम किया. उन्होंने बताया कि, ‘मैंने जूता बनाने वाली एक फैक्ट्री में 200 रुपये दिहाड़ी पर काम शुरू किया. पैसा जरूरी था लेकिन क्रिकेट और फैक्ट्री के काम में तालमेल बिठा पाना बहुत मुश्किल हो रहा था इसलिए छह महीनों बाद नौकरी छोड़कर सिर्फ क्रिकेट पर फोकस करने की सोची’.
मजबूरी में दूध भी बेचना पड़ा…
राजा बाबू को कभी दूध बेचकर भी अपना गुजारा करना पड़ा. उन्होंने बताया कि दिव्यांग क्रिकेट एसोसिएशन (DCA) भंग कर दी गई थी. यह दिव्यांग क्रिकेटर्स के लिए बनी चैरिटेबल संस्था थी, इसके बाद उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा. उन्होंने कहा कि, ‘उससे सच में हमारी कमर टूट गई.
शुरुआती कुछ महीने मैंने गाजियाबाद की सड़कों पर दूध बेचा और जब मौका मिला ई-रिक्शा चलाया. टीम के मेरे बाकी साथी उस दौरान मेरठ में ‘डिसेबल्ड ढाबा’ पर डिलिवरी एजेंट्स और वेटर्स का काम करते थे. वह ढाबा एसोसिएशन के संस्थापक और कोच अमित शर्मा ने खोला था’.
राजा की किस्मत 2016 से चमकनी शुरू हुई. जहां उन्हें नेशनल लेवल के टूर्नमेंट में मैन ऑफ द मैच चुना गया. इसके बाद साल 2016 में ही वे बिहार सरकार द्वारा खेल के क्षेत्र में योगदान के लिए सम्मानित किए गए. फिर साल 2017 में तो राजा के लिए सब कुछ बदल चुका था. राजा ने साल 2017 की गर्मियों में मेरठ में ‘हौसलों की उड़ान’ नाम के नेशनल लेवल क्रिकेट टूर्नामेंट में एक मैच में उत्तर प्रदेश के लिए दिल्ली के खिलाफ महज 20 गेंदों में करीब साढ़े तीन सौ के स्ट्राइक रेट स 67 रन ठोंक दिए और खूब चर्चाएं बटोरी.
ईनाम में मिला ई-रिक्शा…
यहां उन्हें एक कारोबारी द्वारा ई रिक्शा इनाम स्वरुप दिया गया. आगे जाकर यह ई रिक्शा ही राजा बाबू का सबसे बड़ा हथियार बना. आज इसके ही सहारे उनका और उनके परिवार का गुजारा हो रहा है. करीब 10 घंटे ई-रिक्शा चलाकर वे हर दिन ढाई सौ से तीन सौर रुपये कमा पाते हैं.
राजू आगे बताते है कि, ‘मैच खेलते हुए मुझे मेडल्स भी मिले और इज्जत भी मगर गुजारे के लिए उतना काफी नहीं था. 2022 में मैंने मध्य प्रदेश के लिए फिर से वीलचेयर क्रिकेट खेलना शुरू किया लेकिन महामारी के चलते कुछ मैच ही हो पाए. हम भी क्रिकेटर्स हैं मगर महामारी के दौरान हमें क्रिकेट संस्थाओं से कोई मदद नहीं मिली. हम वह खा रहे थे जो भले लोग सड़क पर बांटते थे. जब लॉकडाउन लगा तो जमा के नाम पर मेरे पास कुल 3,000 रुपये थे. वो कितने दिन चलते भला ? मैंने दो बार घर बदला क्योंकि किराया चुकाने के पैसे नहीं थे’.