इस कारण शिवजी की आरती में नहीं बजाना चाहिए शंख, हल्दी–कुमकुम को भी रखना चाहिए पूजा से दूर
आखिर क्यों भोलेनाथ की आरती में नहीं बजता शंख? क्यों नहीं लगाता हल्दी–कुमकुम? वजह है दिलचस्प
इन दिनों सावन का पावन महीना चल रहा है। इस माह में शिवभक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने में लगे रहते हैं। कहते हैं कि इस माह में जिसने शिवजी को प्रसन्न कर दिया उसकी हर मुराद पूरी होती है। ऐसे में भक्त पूजा पाठ के दौरान शिवजी को कई तरह की चीजें भी अर्पित करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हल्दी कुमकुम और शंख जैसी चीजों को शिवजी की पूजा से वर्जित रखा जाता है। इसकी एक खास वजह है जिसके बारे में आज हम चर्चा करेंगे।
इसलिए नहीं लगता हल्दी–कुमकुम का टीका
हल्दी और कुमकुम दो ऐसी चीजें हैं जिनका उपयोग अधिकतर पूजा सामग्री में किया जाता है। कई देवी-देवताओं को इनका टीका लगाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिवजी को कभी भी हल्दी या कुमकुम का टीका नहीं लगाते हैं।
उनकी पूजा में हल्दी और कुमकुम किसी भी तरह से शामिल भी नहीं किया जाता है। उन्हें बस त्रिपुंड लगाया जाता है। यह तीन उंगलियों से लगाया जाने वाला एक खास किस्म का टीका होता है। इसे अक्सर चंदन से बनाया जाता है। हालांकि कुछ लोग अन्य सामग्री भी मिला देते हैं।
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर हल्दी और कुमकुम का उपयोग क्यों नहीं होता है? दरअसल हल्दी और कुमकुम को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। और कभी भी शिवलिंग पर सौभाग्य के प्रतीक अर्पित नहीं किए जाते हैं।
वहीं हल्दी कुमकुम की गिनती श्रंगार सामग्री में भी होती है। शिवजी को श्रंगार की सामग्री नहीं चढ़ाई जाती है। शिवजी को विनाशक कहा जाता है। जब संसार में पाप का घड़ा बढ़ता है तो वह अपनी तीसरी आंख खोल से नष्ट कर देते हैं। इसलिए उन्हें सौभाग्य और श्रृंगार की प्रतीक हल्दी कुमकुम नहीं चढ़ती है।
इसलिए नहीं बजाते शंख
शंख को अधिकतर लोग पूजा स्थल पर रखते हैं। जब भी किसी देवी देवता की आरती होती है तो शंख बजाया जाता है। कहते हैं शंख में बहुत सकारात्मक ऊर्जा होती है। इसकी ध्वनि से माहौल पॉजिटिव हो जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिवजी की आरती में कभी भी शंख नहीं बजाया जाता है। यहां तक कि शंख भरकर शिवलिंग का अभिषेक भी नहीं किया जाता है।
शिव पूजा में शंख इस्तेमाल न करने की एक खास वजह है। मान्यताओं की माने तो शिवजी ने एक बार अपने त्रिशूल से शंखचूड़ नाम के एक असुर का वध कर दिया था। कहते हैं कि इसी राक्षस की राख से शंख की उत्पत्ति हुई थी। बस तब से ही शिवजी की पूजा में शंख का इस्तेमाल नहीं होता है।
एक वजह यह भी मानी जाती है कि शिवजी हमेशा तपस्या में लीन रहते हैं। ऐसे में जब शंख बजाया जाता है तो उस से निकली ध्वनि से उनकी तपस्या भंग हो जाती है। यदि ऐसा होता है तो वह नाराज हो जाते हैं। फिर भक्तों को फायदे की जगह नुकसान होता है।