जब राजकुमार ने इस डायरेक्टर से कहा- अभी पहना दो हार, मरने के बाद मौका नहीं मिलेगा, सच हो गई बात
राजकुमार की यह बात याद कर आज भी रो पड़ते है मेहुल, शूटिंग के समय कहा था- मुझे श्रद्धांजलि दे दो
राजकुमार साहब, गोविंदा, शक्ति कपूर और ओम पुरी जैसे दिग्गज कलाकारों से सजी फिल्म ‘मरते दम तक’ ने अपनी रिलीज के 35 साल पूरे कर लिए हैं. हिंदी सिनेमा के मशहूर निर्देशक मेहुल कुमार द्वारा निर्देशित यह फिल्म 17 जुलाई 1987 को रिलीज हुई थी.
करीब 26 साल पहले राजकुमार साहब और करीब साढ़े पांच साल पहले ओम पुरी साहब का निधन हो चुका है. फिल्म की रिलीज को साढ़े तीन दशक का समय हो चुका है. लेकिन फिल्म से जुड़ी कुछ एक बातें, यादें और किस्से हमेशा निर्देशक मेहुल कुमार के जेहन में रहेंगे. वे उन्हें कभी नहीं भूलेंगे और उन्हें याद करके हमेशा भावुक हो जाते हैं.
साल 1987 में आई यह फिल्म बड़े पर्दे पर सफल रही थी. फिल्म सुपर डुपर हिट गोल्डन जुबली हुई थी. फिल्म के एक सीन की शूटिंग के दौरान राज साहब ने मेहुल कुमार को बुलाकर कहा था कि वे उन्हें श्रद्धांजलि दें. उन्होंने यह भी कहा था कि मेरे मरने पर तुम्हे यह मौका नहीं मिलेगा. बाद में यह बात सच साबित हुई. आइए आपको मेहुल कुमार द्वारा बताया गया पूरा किस्सा सुनाते हैं.
मेहुल कुमार ने फिल्म से जुड़ा एक किस्सा सुनाते हुए कहा था कि, ‘इस फिल्म का एक सीन मैं कभी नहीं भूल सकता. जब हम लोग खंडाला में राज साहब के किरदार की अंतिम यात्रा वाला सीन शूट कर रहे थे तो करीब एक हजार से ज्यादा कलाकार जुटाए गए थे. एक नकली पार्थिव शरीर सजाकर रखा गया था. मैं क्रेन से शॉट ले रहा था. तभी राजकुमार साहब ने मुझे बुलाया. मुझे समझ में नहीं आया कि मुझे क्यों बुला रहे हैं.
मैं गया तो वहां पर कला निर्देशन टीम का एक सहायक फूलों का हार लेकर खड़ा था. राज साहब बोले, मेहुल ये हार पहनाओ मुझे. मुझे कुछ समझ नहीं आया तो वह बोले, देखो, मैं जानता हूं जब हम हमेशा के लिए जाएंगे तुम्हें ये मौका मिलेगा नहीं. मैं तुम्हें चाहता हूं और ये भी चाहता हूं कि ये मौका हम तुम्हें आज ही दे दें.’
मेहुल ने आगे बताया था कि, ‘राजकुमार साहब ने जब मुझे इस तरह अपने जीते जी उनको श्रद्धांजलि देने को कहा तो मेरा तो पूरा बदन कांप गया. घबराते हुए मैं सिर्फ इतना ही बोल पाया कि ऐसा क्यों बोल रहे हैं? ऊपर वाला करे आप सौ साल जिएं. फिर उन्होंने बात टाल दी और मैं भी वापस शूटिंग में व्यस्त हो गया. कुछ साल बाद मैं अमिताभ बच्चन और डिंपल कपाड़िया के साथ महबूब स्टूडियो में फिल्म ‘मृत्युदाता’ की शूटिंग कर रहा था. तभी राजकुमार साहब के घर से फोन आया. पता चला कि वह नहीं रहे. फोन करने वाले ने बताया कि आपका नाम उन लोगों की लिस्ट में शामिल हैं जिन्हें राजकुमार साहब ने अपने मरने के बाद घर पर बुलाने को कहा था.’
3 जुलाई 1996 को राज साहब ने मुंबई में दुनिया को अलविदा कह दिया था. मेहुल शूटिंग छोड़कर राज सभक के अंतिम दर्शन के लिए जाने वाले थे. उन्होंने फोन करने वाले से पूछा कि अंतिम संस्कार कब है. मेहुल ने बताया कि, ‘फोन करने वाले ने सिर्फ इतना कहा कि उनका अंतिम संस्कार हो गया है. मरने से कुछ दिन पहले उन्होंने अपने करीबी लोगों की एक सूची बनवाई थी जिन्हें उनके अंतिम संस्कार के बाद बुलाया जाना था.
मैं शूटिंग बीच में ही छोड़ उनके घर गया तो भाभी जी ने बताया कि वह नही चाहते थे कि उनकी श्मशान यात्रा एक तमाशा बने. मुझे उस दिन फिल्म ‘मरते दम तक’ की शूटिंग के दौरान कही उनकी बात याद आई जब राज साहब ने कहा था कि मेहुल, ये हार तुम मुझे पहनाओ फिर ये मौका तुम्हें मिलेगा नहीं.’
इसके बाद मेहुल ने ‘मरते दम तक’ का एक और किस्सा बताया था. उन्होंने कहा कि, ‘एक दिन लंच के दौरान राजकुमार साहब के मैनेजर एहसान मेरे पास आए और बोले कि राज साहब आपको बुला रहे हैं. मैं वहां पहुंचा तो उन्होंने मुझे गले लगा लिया और कहने लगे, ‘आई लाइक योर नेचर एंड योर स्टाइल’. फिर उन्होंने एक और खुलासा किया. वह बोले, मैं हर निर्देशक को पहले ही दिन कोई न कोई उल्टा सीधा सजेशन देता हूं. अगर वो मेरी बात मान लेता है तो फिर पूरी फिल्म में मैं सजेशन देता रहता हूं. अगर वह नहीं मानता है और अपने विजन से मुझे कनविंस कर देता है तो फिर मैं निर्देशक के सामने सरेंडर कर देता हूं.’