डोकलाम ही नहीं! इन 5 क्षेत्रों में भी भारत के आगे कहीं नहीं टिकता ‘चीनी ड्रैगन’
भारत और चीन पर चल रहे डोकलाम पर गतिरोध ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। दोनों देशों के बीच युद्ध के हालात को देखते हुए न केवल सैन्य बल्कि अर्थव्यवस्था और तकनीकी प्रगति कि भी तुलना की जा रही है। 1980 के दशक में भारत और चीन अर्थव्यवस्थाओं और तकनीकी प्रगति के लिहाज से लगभग समान थे। लेकिन, इसके बाद चीन ने काफी तेजी से प्रगति की, जबकि भारत पीछे रह गया। 5 areas where India is well ahead of China.
लेकिन, भारत में उदारीकरण के दौर में यह अंतर बहुत अधिक नहीं था। जीडीपी के संदर्भ में 1990 में भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरिकी अर्थव्यवस्था की 4% जबकि चीन की 9% थी। लेकिन, 2014 में जब भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरिका की जीडीपी में 11% थी, चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का 60 प्रतिशत हिस्सा था।
फिर भी, ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां भारत चीन से कहीं ज्यादा आगे है।
GDP वृद्धि दर और धन वितरण
2011 के बाद से चीन की आर्थिक रफतार धीमी हुई है। चीन अपनी जीडीपी दर को 2 अंकों में लाने के लिए जूझ रहा है लेकिन चीनी अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट और स्थिरता के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। 2014 में, भारत की जीडीपी विकास दर चीन के बराबर रही। चीनी अर्थव्यवस्था में इस साल 7.3% की वृद्धि हुई, जबकि भारत की सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर 7.2% थी। अगले दो वर्षों में चीन की सकल घरेलू उत्पाद का विकास दर 2016 में 6.9 प्रतिशत और 2015 में 6.7 प्रतिशत रहा। दूसरी ओर, भारत के सकल घरेलू उत्पाद में इन दो वर्षों में प्रत्येक वर्ष 7.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। हालांकि, चीनी अर्थव्यवस्था के विनिर्माण क्षेत्र में शानदार वृद्धि हुई है। इस वजह से चीन का निर्माण क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद अधिक रहेगा। दूसरी ओर, भारत का आर्थिक विकास मॉडल अधिक संतुलित और स्थिर रहा है।
औद्योगिक विकास के आंकड़े दोनों देशों की प्रगति को दर्शाते हैं। 2016 में चीन की औद्योगिक विकास दर 6 प्रतिशत थी, जबकि भारत के औद्योगिक विकास दर में 7.4% की वृद्धि दर्ज की गई थी। आने वाले समय में भारत का औद्योगिक विकास इस दर को और अधिक बढ़ा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के मुताबिक 1990 में भारत का जिनी गुणांक 45 था, जो 2013 में बढ़कर 51 हो गया। जबकि, चीन के मामले में साल 1990 में यह 33 से बढ़कर 53 हो गया।
जनसांख्यिकीय लाभांश
लगभग सभी अर्थशास्त्रियों का मानना है कि युवा जनसंख्या, निर्भरता अनुपात में कमी, बचत और निवेश दर के कारण भारत का विकास दर आने वाले भविष्य में काफी अच्छा रहेगा। वर्तमान में भारतीय जनसंख्या की औसत उम्र 27.6 साल है जबकि चीन की 36.1 साल है। जबकि 1960 से 1980 के दशक में भारत अपनी आबादी को नियंत्रित करने में असफल रहा, जिसके कारण देश की अन्य समस्याओं में वृद्धी हुई है। इसके बावजूद भारत अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में नए आयामों से भारत में एकीकरण की विशेषता में वृद्धी हुई है।
दूसरी ओर, चीन की “वन चाइल्ड पॉलिसी”, ने चीन को दुनिया की सबसे अधिक उम्र वाली जनसंख्या का देश बना दिया है। चीन में वयोवृद्ध निर्भरता अनुपात 13 है जबकि भारत में यह 8.6% है।
स्पेस टेक्नोलॉजी
पिछले कुछ सालों में भारत ने स्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बड़े कदम उठाए हैं। भारत के जीएसएलवी और पीएसएलवी ने एक साथ कई उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपण कर कई रिकॉर्डों स्थापित किये हैं। पूरे विश्व में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की प्रशंसा की जा रही है। हालांकि, चीन अपने उपग्रह को मंगल ग्रह पर भेजने में असफल रहा है। भारत विश्व का एकमात्र देश है, जिसने पहले मंगल मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत से आगे निकलने के लिए चीन को अभी काफी समय लग सकता है।
इसके अलावा, भारत का अंतरिक्ष प्रयोग अन्य देशों के मुकाबले कम खर्चीलें हैं। भारत ने केवल 450 करोड़ रूपए में मंगल ग्रह मिशन को पूरा किया था। इसी तरह दूरसंचार तकनीक में भारत विश्व के सभी देशों के आगे है। भारत काफी समय तक बाढ़, चक्रवात और इसी तरह की प्राकृतिक घटनाओं के बारे में जानकारी के लिए अमेरिकी उपग्रह डेटा पर निर्भर था। लेकिन, साल 1999 में ओडिशा में आये चक्रवात में लगभग 20,000 लोग मारे जाने के बाद भारत ने इस क्षेत्र में सराहनीय कदम उठाये हैं।
भारत ने अपनी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पर काफी काम किया और अब वह रिमोट सेंसिंग के क्षेत्र में अमेरिका का मुकाबला कर रहा है। यहां तक की भारत प्राकृतिक संसाधनों के आकलन औऱ मौसम के बारे में सटीक डेटा प्रदान कर अन्य देशों की सहायता भी कर रहा है। भारत की अंतरिक्ष क्षमता का अनुमान केवल इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि पिछले साल जनवरी में वियतनाम ने भारत से चीन पर नज़र रखने के लिए उपग्रह ट्रैकिंग और इमेजिंग केंद्र स्थापित करने के लिए अनुरोध किया था।
न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी
चीन परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की एट्री में बाधा बन रहा है। हालांकि, यूरेनियम परमाणु ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत होने के कारण चीन इस क्षेत्र में भारत से आगे है। लेकिन थोरियम आधारित फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों के विकास में भारत का आज भी दुनिया के सभी देशों से आगे है। चीन के रिएक्टरों के लिए ईंधन के रूप में यूरेनियम का विकल्प खोजना परमाणु क्षमता के क्षेत्र में चीन को पिछे धकेलता है। जबकि, भारत में थोरियम का बड़ा भंडार है।
हाई माउंटेन वार्फ़ेयर
हाई माउंटेन वार्फ़ेयर एक और क्षेत्र है, जहां भारतीय सेना को दुनिया में बेजोड़ माना जाता है। जबकि चीन हिमालय के उत्तरी भाग पर स्थित है, जहां तिब्बत में पठार की सपाट सतह है। भारतीय सेना को दुनिया के ऊचें पहाड़ों के बीहड़ इलाके में लड़ने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
उच्च पहाड़ी क्षेत्रों हाई यानि माउंटेन वार्फ़ेयर में युद्ध करने में भारतीय सेना की विशेषज्ञता कि हमेशा सराहना होती है। यहां तक अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी अपने सैनिकों को जम्मू और कश्मीर के गुलमर्ग के हाई आल्टीटयूट वारफेयर स्कूल में विशिष्ट प्रशिक्षण के लिए भेजते हैं। सियाचिन में भारतीय सेना पहले से ही दुनिया में सबसे ज्यादा सैन्य अड्डे का निर्माण कर रही है।
हाई माउंटेन वार्फ़ेयर में भारतीय सैनिकों को विशेषज्ञता के कारण डोकलाम पर चीन की स्थानीय मीडिया के प्रेशर के बावजूद चीन उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में भारत की लड़ने की क्षमता के कारण सतर्क है।