सगे भाई-बहन से भी बढ़कर था लता मंगेशकर और दिलीप कुमार का रिश्ता, 13 साल तक नहीं की थी बातचीत
हिंदी सिनेमा की दिग्गज़ और महान गायिका लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) एवं लोकप्रिय अभिनेता दिलीप कुमार दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं है. लता जी का हाल ही में 92 साल की उम्र में निधन हो गया था. जबकि दिलीप कुमार ने इस दुनिया को जुलाई 2020 में 98 साल की उम्र में अलविदा कह दिया था.
बता दें कि दिलीप कुमार और लता मंगेशकर की हिंदी सिनेमा में शुरुआत लगभग एक साथ ही हुई थी. दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र के दिग्गज़ थे. दिलीप जहां अभिनय के दिग्गज़ थे तो वहीं लता जी को गायकी में महारत हासिल थी. दुनिया उन्हें स्वर कोकिला के नाम से भी जानती हैं.
बता दें कि शुरू से ही दिलीप कुमार और लता जी के बीच के रिश्ते बेहद अच्छे थे. दोनों दिग्गज़ सगे भाई बहन से भी बढ़कर रिश्ता साझा करते थे. जहां लता जी दिलीप कुमार को अपना बड़ा भाई मानती थी तो वहीं दिलीप भी लता जी को अपनी छोटी बहन कहते थे. लता जी दिलीप कुमार को राखी भी बांधती थी.
लता जी और दिलीप साहब दोनों का रिश्ता बेहद ख़ास और मजबूत रहा. हालांकि एक समय ऐसा भी आया था जब दोनों के बीच रिश्ते बिगड़ गए थे. दोनों ने एक दूसरे से बात भी करना बंद कर दिया था. आपको यह जानकार हैरानी होगी कि लता जी और दिलीप ने एक दूसरे से 13 साल तक बातचीत नहीं की थी. आइए जानते है कि ऐसा क्यों और कब हुआ था.
साल 1957 में सलिल चौधरी ने ‘लागी नाहीं छूटे’ लिखा था और इसे गाने के लिए उन्होंने लता मंगेशकर एवं दिलीप कुमार को चुना. लता जी सोच में पड़ गई कि वे कैसे गाना गाएगी. गा भी पाएगी या नहीं. वहीं दिलीप भी इसके लिए खूब अभ्यास कर रहे थे. वहीं दिलीप लता जी को रिकॉर्डिंग के दौरान देखकर झिझक पड़े थे.
लता जी तो ठहरी लता जी. उनकी आवाज को साक्षात माँ सरस्वती की आवाज कहा जाता है. ऐसे में जाहिर है कोई भी उनके सामने गाने से कतराएगा दिलीप कुमार के साथ भी यही हुआ. लेकिन सलिल चौधरी ने दिलीप को तब ही ब्रांडी का पेग दे दिया. तब ही दिलीप जोश में आ गए और गाना आगा दिया. लेकिन लता जी के सामने उनकी आवाज कहाँ टिकने वाली थी. बताया जाता है कि यहीं से दोनों के बीच बातचीत बिगड़ गई थी.
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वहीं एक बार दिलीप कुमार ने लता जी का यह कहकर मजाक बनाया था कि मराठियों की उर्दू बिल्कुल दाल और चावल की तरह होती है. मतलब कि अच्छी नहीं होती है. लता जी को यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने फिर उर्दू सीखी. 13 सालों तक दोनों दिग्गजों के बीच बातचीत बंद हुई. साल 1970 में दोनों के बीच दोबारा बातचीत शुरू हुई थी.
दिलीप कुमार और लता जी दोबारा लेखक और जर्नलिस्ट खुशवंत सिंह के कारण मिले थे. खुशवंत ने किसी वजह से दोनों को मिलाने का प्लान बनाया और वे इसमें सफल रहे. लता जी तब दिलीप कुमार के घर पहुंची थी जहां दिलीप कुमार खुद लता जी को रिसीव करने के लिए पहुंचे थे.