मोदी सरकार को क्यों याद आया 200 साल पुराना ये गदर? जानिए क्या है इसकी वजह
नई दिल्ली – नरेंद्र मोदी सरकार एक बार फिर भारतीय इतिहास को नए सिरे से लिखने चली है। इस बार बीजेपी ने 200 साल पहले हुए ओडिशा के ‘पाइक विद्रोह’ को चुना है। 20 जुलाई, 2017 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में एक भव्य समारोह हुआ था जिसमें पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ‘पाइक विद्रोह’ की 200 वीं वर्षगांठ पर आयोजित होने वाले वर्षव्यापी कार्यक्रम का उद्घाटन किया। Bjp vs bjd on Pike Rebellion.
‘पाइक विद्रोह’ को लेकर भीड़े बीजेपी और बीजेडी
इस समारोह के दौरान केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने ‘पाइक विद्रोह’ का स्मारक बनाने के लिए ओडिशा सरकार से ज़मीन उपलब्ध कराने की अपील की। बीजेपी को इस मुद्दे को उठाता देख ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इसे ‘आज़ादी की पहली लड़ाई’ के रुप में मान्यता देने की मांग को फिर दोहराया। आपको बता दें कि 200 साल पहले हुई इस लड़ाई के बारे में बहुत कम लोगों को पता है।
क्या था ‘पाइक विद्रोह’
‘पाइक विद्रोह’ को लेकर 200 साल बाद ये दो पाटियां राजनीति के मैदान में आमने सामने खड़ी हो गई हैं। दरअसल, ‘पाइक विद्रोह’ उस वक्त शुरु हुआ जब साल 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मराठाओं को हराया और ओडिशा पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद अंग्रेज़ों ने खोर्धा के तत्कालीन राजा मुकुन्ददेव-2 से विश्वविख्यात जगन्नाथ मंदिर का प्रबंधन छीन लिया। मुकुन्ददेव-2 के नाबालिग होने कि वजह से राज्य चलाने का पूरा जिम्मा उनके प्रमुख सलाहकार जयी राजगुरु के ऊपर था। जयी राजगुरु ने अंग्रेज़ों के खिलाफ जंग छेड़ दी, लेकिन राजगुरु को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें फांसी दे दी गई। राजगुरु की फांसी के बाद अंग्रेज़ों के खिलाफ आम जनता में आक्रोश फैला और जगह-जगह अंग्रेजों की टुकड़ियों पर हमले लोग हमला करने लगे। इसे ही इतिहास में ‘पाइक विद्रोह’ कहा जाता है।
आज़ादी की पहली लड़ाई की मान्यता देने को लेकर है बहस
सबसे पहले तो आपको बता दें कि पाइक खोर्धा के राजा के वह खेतिहर सैनिक थे, जो युद्ध के समय शत्रुओं से लड़ते थे और शांति के समय राज्य की कानून व्यवस्था का जिम्मा संभालते थे। वर्तमान में उड़ीसा सरकार का कहना है कि ‘पाइक विद्रोह’ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम 1957 से 40 साल पहले हुआ था इसलिए इसे आज़ादी की पहली लड़ाई के रुप में मान्यता दी जाये। इस बात पर केन्द्र और राज्य सरकार के बीच तकरार को बढ़ता देख मोदी सरकार ने एक कमिटी बनाई है और उसे सारे तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर एक दस्तावेज तैयार करने की ज़िम्मेदारी सौंपी है।
2019 का चुनाव और 200 साल पहले का गदर
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ‘पाइक विद्रोह’ को अगर देश कि पहली आज़ादी की पहली लड़ाई के रुप में मान्यता मिलती है तो इससे बीजू जनता दल या बीजेपी में से किसी एक को 2019 में जरुर फायदा होगा। दोनों ही पार्टी ओड़िया के इन वीर योद्धाओं की गाथा को अमर करने में लगीं हैं। हालांकि, अब ये बीजेपी के लिए साख कि बात बन गया है। निश्चय ही यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे अगले चुनाव में भुनाया जा सकता है। लेकिन, बीजेपी ने इस मुद्दे को उठाकर बीजद को शुरुआती पटखन दे दी है।