खजूर खाने को ललचाया साधु का मन, लेकिन पैसे नहीं थे, रातभर सोया नहीं, फिर अगले दिन कुछ ऐसा किया..
कहते हैं मनुष्य की इच्छाओं की कोई सीमा नहीं होती है। उसकी इच्छा आज अच्छे खान पानी की है तो कल ढेर सारे पैसे या किसी और चीज को पाने की होती है। धीरे धीरे वह इन इच्छाओं के बोझ के तले दबता चला जाता है।
कह सकते हैं कि वह अपनी ही इच्छाओं का गुलाम बन जाता है। इस स्थिति में इच्छाओं पर काबू पाना बहुत जरूरी हो जाता है, नहीं तो दिन रात का चेन उड़ जाता है। इस बात को एक कहानी के माध्यम से और अच्छे से समझते हैं।
जब साधु को हुआ खजूर खाने का मन
एक गांव में एक साधु रहता था। एक दिन अपनी कुटिया की ओर जाते हुए उसे दुकान में खजूर दिखे। उसकी खजूर खाने की बहुत इच्छा हुई, लेकिन तब उसके पास पैसे नहीं थे, ऐसे में वह बिना खजूर लिए कुटिया आ गया।
अब रातभर साधु के दिमाग में खजूर का ख्याल ही घूमता रहा। इस चक्कर में उसे नींद नहीं आई। सुबह उठते ही उसने खजूर खाने का मन बना लिया। उसने जंगल से पेड़ से कुछ लकड़ियां काटी और उन्हें बेच खजूर खाने की योजना बनाने लगा।
लकड़ियां बहुत भारी थी। साधु बड़ी मुश्किल से रुक-रुक कर उन्हें बाजार तक ले गया। इस दौरान वह बहुत थक गया और उसके हाथ पैर भी दुखने लगे। लेकिन उसने किसी तरह लकड़ियों को बेच खजूर खरीदने लायक पैसे एकत्रित कर लिए।
इन पैसों से खजूर खरीदकर साधु कुटिया की ओर जाने लगा। रास्ते में उसके मन में विचार आया कि आज मेरी इच्छा ने मुझे खजूर खाने पर विवश किया। हो सकता है कल को मेरी इच्छा किसी और चीज जैसे नया घर, वस्त्र इत्यादि को पाने की हो जाए। मैं एक साधु हूं। मैं इच्छाओं का गुलाम बनकर नहीं रह सकता।
इसके बाद साधु ने अपने सभी खजूर रास्ते में एक गरीब को दे दिए। वह बिना खजूर खाए अपनी कुटिया को ओर ध्यान लगाने चला गया।
कहानी की सीख
इस कहानी की सीख यही है कि अपनी इच्छाओं पर काबू करना सिखों। यदि आप अपनी इच्छाओं के गुलाम बन गए, तो उन्हें पूरा करने के लिए किसी भी हद तक चले जाएंगे। इस चक्कर में आप खुद को या किसी दूसरे को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं।
मनुष्य का मन चंचल होता है। उसमें हर पल नई इच्छा जाग्रत होती रहती है। इसमें से कुछ उचित भी हो सकती हैं और अनुचित भी। ऐसे में हमे अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना आना चाहिए।