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राजकुमारियों के साथ दी जाने वाली दासियों से लिया जाता था यह काम, जानिये

जब हम राजा-महाराजाओं की कहानी बचपन में सुनते थे या जब भी हमनें और आपने किताबों में राजा- महाराजाओं की कहानियां पढ़ी होगीI फिर उसमें राजा और रानी का जिक्र तो रहता ही थाI इसके अलावा इसमें एक पात्र और भी काफी चर्चा में रहता था और वो दासियों का रहता था I

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वैसे यह तो सभी को पता है कि प्राचीन राजाओं की कहानी और उनके निजी जिंदगी में इन दासियों की भूमिका रहती थी, लेकिन वास्तव में ये दासियाँ क्या कार्य करती थी? इसके बारें में कभी किसी किताब में विस्तार से नहीं बताया गया और न ही राजकुमारियों की शादी के समय दासियों को साथ भेजने का कारणI आइए ऐसे में समझें यह पूरी कहानी…

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बता दें कि भारत की बात हो या विश्व के किसी भी देश की, हर जगह के राजा के पास एक बड़ी संख्या में दास- दासियाँ होती थीI इन दासों के द्वारा राज्य के प्रतिदिन के दिनचर्या के कार्य कार्यान्वित किये जाते थे, जब भी कोई राजा किसी दूसरे राज्य पर हमला करके उसे

हरा देता था तो उस राज्य के सभी संपत्ति पर उसका अधिकार हो जाता था और हिन्दू और मुस्लिम राजा महल की स्त्रियों की शिक्षा की व्यवस्था महल में ही करवाते थेI वहीं जो रानी और राजकुमारी के साथ दासियाँ लगाई जातीं थी वह अत्यंत सुशिक्षित, युद्ध कला में निपुण और सुन्दर होती थीं, जिससे राजकुमारियों पर प्रभाव पड़ेI

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इसके अलावा युद्ध में हारे हुए राजपरिवार के महल की बेशकीमती चीजें जीते हुए राजा के राजमहल में भेज दी जाती थीं और युद्ध में हारे हुए राजपरिवार के पुरुष सदस्यों को हिन्दू राजा छोड़ देते थे या कारागार में डाल देते थे I

वहीं रानी को अपने हरम महल में रख देते थे, जबकि मुस्लिम सुल्तान हारे हुए पुरुष राजपरिवार के सदस्यों को जनता के सामने इतनी दर्दनाक मौत मारते थे कि उन्हें देखने वालों की रूह काँप जाती थीI ऐतिहासिक परिदृश्य की बात करें तो बलबन और अलाउद्दीन खिलजी ने कुछ राजाओ को युद्ध में हराकर उनके सिरों को काटकर ऊंची- ऊँची दीवारें तक बनवा दी थीI

 

वहीं बता दें कि राजपरिवार की दासियों से लेकर महारानी तक को राजदरबार में सुल्तान के फरमान से बुलाया जाता था और महारानी और राजकुमारियों को सुल्तान की सेवा में लगा दिया जाता था और शेष को घुड़सवारों, पैदल सेना में बाँट दिया जाता था I

वहीं हिन्दू और मुस्लिम राजा महल की स्त्रियों की शिक्षा की व्यवस्था महल में ही करवाते थे रानी और राजकुमारी के साथ जो दासियाँ लगाई जातीं थी वह अत्यंत सुशिक्षित, युद्ध कला में निपुण, सुन्दर होती थीं, जिससे राजकुमारियों पर प्रभाव पड़े और विवाह उपरांत राजकुमारी के साथ बहादुर, बुद्धिमान एक या दो दासियों को भेजा जाता थाI जो राजकुमारी के जीवन की रक्षा कर सकेंI

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वहीं दूसरे शब्दों में कहें तो राजकुमार की शादी होती थी तो राजकुमारी के साथ आई दासी की शादी राजकुमार की माँ के साथ आई हुई दासी के बेटे के साथ कर दिया जाता था और राजकुमारी की शादी में साथ में गई दासियों की शादी की जिम्मेदारी उसके ससुराल पक्ष की होती थी।

इतना ही नहीं इस व्यवस्था में दास और दासी के भरण पोषण के अलावा उनके बेटे और बेटियों की शादी अपनी बेटे बेटियों के साथ ही करवाना राजपरिवारों की जिम्मेदारी होती थी।

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वैसे मूल दास परिवारों की तुलना अंग्रेजी गुलामी से नहीं की जा सकती, क्योंकि इसमें पूरे परिवार का भरण पोषण, रहन व्यवस्था, शादी व्यवस्था और अन्य पूरा खर्च अच्छे से उठाना राजपरिवारों की पूरी जिम्मेदारी हुआ करती थी , लेकिन समय के साथ कहीं कहीं इसमें खराबी और शोषण जुड़ गए थे।

इसके अलावा आखिर में बता दें कि इन दासियों का कार्य राजकुमारी को शासन के कार्यों से सम्बन्धी सूचनाएं देना होता था कि पुत्र उत्तराधिकार प्राप्त करेगा या नहींI वहीं इन दासियों को आजीवन अविवाहित रहना होता था और अपनी महारानी और उनके पुत्रों की रक्षा करना ही इनका आखिरी धर्म होता था I

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