दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की बढ़ जाएगी परेशानी जैसे ही संभालेंगे कोविंद राष्ट्रपति की कुर्सी, जानें कैसे?
नई दिल्ली: रामनाथ कोविंद को देश के 14वें राष्ट्रपति के तौर पर चुन लिया गया है। कोविंद को चुनाव में 65.65 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि इनकी प्रतिद्वंदी मीरा कुमार को केवल 34.35 प्रतिशत वोट ही मिले थे। कोविंद 25 जुलाई को राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेंगे। जैसे ही रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेंगे, उनके सामने अपने कार्यकाल का अहं फैसला लेने की चुनौती होगी। trouble of kejriwal.
राष्ट्रपति को करना होगा सदस्यता रद्द करने का फैसला:
यह फैसला कुछ और नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों की सदस्यता को रद्द करने का हो सकता है। चुनाव आयोग इस मामले पर सुनवाई कर चुका है और कभी भी इस मामले को लेकर फैसला आ सकता है। उसके बाद आयोग यह फैसला राष्ट्रपति के पास भेजेगा और बतौर राष्ट्रपति कोविंद को विधयाकों की सदस्यता रद्द करने का बड़ा फैसला करना होगा। आपको बता दें इस मामले पर आयोग पिछले 2 सालों से सुनवाई कर रहा है, लेकिन अब यह सुनवाई पूरी हो चुकी है।
नहीं दी जाती राष्ट्रपति के फैसले को अदालत में चुनौती:
इस मामले में याचिकाकर्ता और आम आदमी के 21 विधायकों को अपने पक्ष रखने का पूरा मौका दिया गया था। इसके बाद भी अगर आयोग का फैसला विधायकों के खिलाफ होता है तो वह इस मामले को अदालत में चुनौती दे सकते हैं। हालांकि यह चुनौती तभी संभव होगी, जब राष्ट्रपति इस मामले पर तुरंत फासला नहीं लेते हैं। यदि राष्ट्रपति ने अपना फैसला सुना दिया तो अदालत जाने का विकल्प ही ख़त्म हो जायेगा। राष्ट्रपति के फैसले को अदालत में चुनौती नहीं दी जाती है।
लाभ के दायरे में आता है संसदीय सचिव का पद:
मार्च 2015 में दिल्ली सरकार ने 21 आप विधायकों को संसदीय सचिव पर पर नियुक्त किया। इस लाभ का पद बताकर प्रशांत पटेल नाम के वकील ने 21 विधयाकों की सदस्यता ख़त्म करने की माँग की। प्रशांत का कहना है कि आम आदमी द्वारा 21 विधयाकों को संसदीय सचिव बनाने का मामला लाभ के पद के दायरे में आता है। इन विधयाकों को संसदीय सचिव बनाकर केजरीवाल सरकार ने अनेक सरकारी सुविधाएँ दी हैं।
उच्च न्यायलय ने सचिवों की नियुक्ति को ठहराया अवैध:
जब यह मामला चुनाव आयोग के पास पहुँचा तब केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में एक बिल पारित करके सीपीएस के पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर कर दिया। चुनाव आयोग ने इस मामले में प्रशांत की दलीलों को स्वीकार किया था। इसी मामले की कार्यवाई उच्च न्यायालय में भी चल रही थी। उच्च न्यायलय ने 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति को अवैध ठहराया था। इसी वजह से इन विधयाकों को संसदीय सचिव के पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था।