16 साल पहले हुआ ये समझौता बना अपर्णा का मुलायम परिवार से अलग होने का कारण: जानिए क्या था समझौता
बहुत कम लोग जानते होंगे कि मुलायम सिंह यादव के परिवार को एकजुट रखने के लिए 16 साल पहले एक समझौता हुआ था। यह समझौते ने उस समय तो परिवार की टूट को रोक लिया था, लेकिन शायद अब उसी समझौते के कारण मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू ने अपने ससुर की बनाई पार्टी सपा से नाता तोड़ लिया है। क्या है ये समझौता और अपर्णा के बीजेपी में जाने की इनसाइड स्टोरी आपको आगे बताते हैं-
कुछ दिनों पहले भाजपा सरकार के मंत्रियों और विधायकों को तोड़कर अखिलेश ने जो संदेश देने की कोशिश की थी, अब उससे बड़ा संदेश भाजपा ने यादव परिवार को तोड़ कर दे दिया है।अपर्णा के भाजपा में जाने का सियासी लिहाज से भले ही कोई बड़ा प्रभाव ना दिखे, लेकिन परिवार में इस टूट ने छवि या इमेज की लड़ाई में अखिलेश को पीछे धकेल दिया है। इसे अखिलेश के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
अपर्णा के बीजेपी में शामिल होने के बाद एक बार फिर परिवार की लड़ाई घर की दहलीज पार कर बाहर आ गई है। 2017 के चुनाव से पहले अखिलेश सरकार के कार्यकाल के अंतिम दिनों में जिस तरह परिवार में कलह मची और परिवार बिखरा उसका असर चुनावी नतीजों में दिखाई दिया था। अब एक बार फिर 2022 विधानसभा चुनाव से पहले मुलायम परिवार में टूट दिखाई दे रही है। हालांकि ये इस टूट सियासी ज्यादा दिखाई दे रही है, लेकिन इतना तो तय है बिना मन में कुछ आए ये सियासी टूट भी नहीं हो सकती थी। मुलायम सिंह परिवार के इस अलगाव के बाद एक बार फिर वो समझौता सुर्खियों में आ गया है, जो 16-17 साल पहले परिवार को एकजुट रखने के लिए हुआ था। क्या है ये समझौता आपको आगे बताते हैं-
परिवार एकजुट रखने वाला समझौता
मुलायम सिंह यादव परिवार में उनकी दूसरी पत्नी साधना यादव की एंट्री के साथ ही परिवार में बगावत शुरू हो गई थी। सीनियर जर्नलिस्ट मुकेश अलख बताते हैं कि तब अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम से बगावत कर दी थी। अखिलेश बेहद नाराज रहने लगे थे और मुलायम की हर बात अनसुनी कर रहे थे।
पिता और पुत्र के बीच बढ़ती दूरियों को कम करने और परिवार को एक साथ लाने की जिम्मेदारी अमर सिंह ने उठाई थी। अमर सिंह ने न सिर्फ साधना यादव को परिवार में एंट्री दिलाई, बल्कि अखिलेश यादव को भी मनाया। इस दौरान परिवार को साथ रखने के लिए एक समझौता भी हुआ। इस समझौते की शर्तें क्या थीं आपको आगे बताते हैं-
समझौते की क्या थीं शर्तें
समझौते के मुताबिक पिता मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत के इकलौते वारिस अखिलेश यादव होंगे, जबकि साधना के बेटे प्रतीक यादव कभी भी राजनीति में नहीं आएंगे। इतना ही नहीं उस वक्त जो प्रॉपर्टी थी, उसे भी दोनों भाइयों में बराबर-बराबर बांटा गया। परिवार के बेहद करीब रहे लोगों का दावा है कि पार्टी में उस वक्त यह भी तय हुआ था कि साधना यादव के परिवार का खर्चा समाजवादी पार्टी उठाएगी।
क्या टूट गया ये समझौता?
प्रतीक यादव लगातार कहते रहे हैं कि वो कभी राजनीति में नही आएंगे। हालांकि, जब भी सवाल अपर्णा के सियासी भविष्य को लेकर होता है, तो वह कहते रहे हैं कि इसका फैसला नेता जी, यानी मुलायम सिंह यादव और खुद अपर्णा कर सकती हैं। कहा जाता है कि अपर्णा यादव की राजनीतिक महत्वाकांक्षा हमेशा से रही है। वह परिवार की दूसरी बहू डिंपल यादव की तरह पार्टी में आधिकार चाहती थीं।
अपर्णा की इसी जिद की वजह से मुलायम सिंह यादव ने 2017 में अपर्णा को पार्टी का टिकट दिलवाया था, लेकिन अपर्णा चुनाव हार गईं। हालांकि, उन्होंने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव नहीं चाहते थे कि वो चुनाव जीतें।
अखिलेश ने अपर्णा को टिकट नहीं दिया!
खबर है कि अखिलेश यादव ने इस बार परिवार के किसी भी सदस्य को टिकट ना देने का फैसला किया है। परिवार के करीबियों का मानना है कि इस बार अखिलेश ने फैसला कर लिया था कि ना तो अपर्णा को टिकट देंगे और ना ही कहीं जाने से रोकेंगे।राजनीति में करियर बनाने की तीव्र इच्छा रखने वाली अपर्णा को यह मंजूर नहीं हो सकता था। माना जा रहा है कि इसके बाद ही अपर्णा बीजेपी के संपर्क में आईं और अब भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गई हैं।