इस गलती से कांग्रेस पर दांव भारी पड़ा प्रशांत किशोर को, उड़ी नींद, कॅरियर पर संकट?
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने अपने पत्ते शो कर दिए हैं। प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी राजबब्बर को सौंपने के बाद दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को कांग्रेस की ओर से भावी मुख्यमंत्री घोषित कर दिया है। देर-सवेर प्रियंका गांधी को भी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार की कमान सौंप दी जाएगी।
दरअसल, ढाई दशक से उत्तर प्रदेश में हाशिए पर पड़ी कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश का यह चुनाव ‘करो या मरो’ वाला है। ऐसा भी नहीं है कि वह उत्तर प्रदेश में बहुमत या पूर्ण बहुमत लाने की लड़ाई लड़ेगी। वह लड़ेगी सिर्फ अपना अस्त्तिव बचाने के लिए। मौजूदा लोकसभा में उसके 29 विधायक हैं। वह चाहेगी कि यह संख्या कम से 80 से 100 तक चली जाए। इससे कम से कम कांग्रेस हाशिए से बाहर आ सकती है।
लेकिन सवाल तो यह है कि क्या ऐसे हालात में जब कांग्रेस को कोई गंभीरता से लेने को तैयार नहीं है, वह ऐसा कर पाएगी? यह ऐसा सवाल है, जिसका जवाब कांग्रेस के पास भी नहीं होगा और शायद उन प्रशांत किशोर उर्फ पीके के पास भी नहीं होगा, जिनके सिर पर केंद्र में भाजपा की और बिहार में महागठबंधन की सरकार बनवाने का सेहरा बंधा है।
दरअसल, पीके की असली परीक्षा उत्तर प्रदेश में ही होनी है। लोकसभा चुनाव में ‘पीके’ के साथ ‘मोदी मैजिक’ भी था। 2014 की भाजपा या यूं कहें कि नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक जीत में ‘पीके’ का कितना योगदान था और ‘मोदी मैजिक’ का कितना, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। हालांकि इससे इंकार तो नहीं किया जा सकता कि पीके की रणनीति का भी मोदी की जीत में कुछ न कुछ तो योगदान रहा ही होगा। इस तरह हम कह सकते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में पीके की रणनीति और मोदी मैजिक के ‘मिलन’ से ऐतिहासिक जीत दर्ज हो सकी।