भारत की एक ऐसी जगह , यहां जो भी गया, नहीं आया वापस, क्या है राज़?
प्रकृति अपने सबसे सुंदर रूप में तब होती है जब इंसान उसमें कोई बदलाव नहीं करता, वो जैसी है उसे वैसे ही अपना लेता है। यही कारण है कि ज्यादा प्राकृतिक दिखने वाली जगहों पर अक्सर सैलानियों की भीड़ जमा रहती है।
बर्फीले पहाड़, बहती नदियाँ, खुला आसमान और जंगली जीव आखिर यही तो है इंसान को मिला सबसे बड़ा तोहफा। सभ्यता के साथ इंसान बहुत आगे बढ़ चुका है।
लेकिन कुछ ऐसे भी लोग है जिन्हें यह विकास रास नहीं आता या वो इसका हिस्सा नहीं बनना चाहतें, वो प्रकृति के साथ कोई बदलाव नहीं चाहते और उसके प्राकृतिक रूप को ही पसंद करते हैं। हम बात कर रहें हैं सेंटिल आइलैंड में बसी जनजाति की।
भारत में एक ऎसा आइलैंड है यहां न तो सडक है नहीं कोई सुविधा। यहां पर रहने वाली जनजाति को बहार के लोग भी पसन्द नही है। आलम यह है की अगर कोई भूले भटके पहुंच जाए तो उसे मौत के घाट उतार देते है यहां पर रहने वाले लोग। हालत इतने खराब है यहां पर की जाने की छोडो इस जगह का नाम सुनकर लोग घबरा जाते है।
आसमान से देखने पर यह समुद्र तटों व घने जंगल वाला एक सुखद द्वीप नजर आता है लेकिन सैलानी या मछुआरे यहां कदम रखने की हिम्मत भी नहीं करते। यहां के निवासियों की भयावह छवि के कारण वे यहां दाखिल नहीं होते। उत्तरी द्वीप पर आने वाले पर्यटकों को यहां रहने वाली एक रहस्यमयी जनजाति द्वारा हमला किए जाने का खतरा है।
सेंटिल आइलैंड कहने के लिए यह तो भारत का है लेकिन इस आइलैंड पर आदिवासी आज भी अपनी जि़ंदगी को अपने अनुसार जीते है। यहां पर इन्हे किसी की दखल आंदाजी पसंद नही ही यहां रहने वाली जनजाति का मानव सभ्यता से कोई लेना देना है। इस आइलैंड पर एक कैदी जेल से भागने के के बाद वहां पहुंच गया उसके बाद वहां के लोगो ने कैदी को मार दिया।
सन् 1981 में एक नाव के मुसाफिर यहां भटकते हुए पहुंच गए थे। लेकिन उनके आते ही इस जनजाति के लोगो ने जानलेवा हमला कर दिया। यही नही कुछ लोग इन जनजाति की खबर लेने पहुचे तो उनको लोगो ने मार डाला। भारत में सुनामी आने के बाद जब एयरफोर्स की टीम पहुची खबर लेने के लिए तो उनके ऊपर भी हमला कर दिया । यहाँ पर आज भी घने जंगल है और जानवरो को मार के आज भी अपना पेट भरते है।
बंगाल की खाड़ी में स्थित उत्तरी द्वीप भारत से जुड़ा है और साठ हजार सालों से ज्ञात होने के बावजूद अभी तक पहेली बना हुआ है। आधुनिक सभ्यता से अछूती अल्पज्ञात सेंटाइनलेस लोग, उनकी भाषा, रीति-रिवाज और वह द्वीप जिसे वे घर कहते हैं, इन सबके बारे में बहुत कम जाना गया है। बाहरी लोगों के प्रति उनके बैरभाव के कारण उनकी थाह पाना बेहद कठिन और खतरनाक है। दुर्लभ रूप से उनके फोटोग्राफ लिए जा सके लेकिन उनका विजुअल भी उपलब्ध हैं, उनकी खराब क्वालिटी के कारण वे स्पष्ट दिखाई नहीं देते।
इस जनजाति के लोगों को बाहरी लोगो का प्रवेश कतई पसंद नहीं है, इसलिए वो यह इस गुजरने वाले हर किसी पर हमला करने से कभी नहीं चुकतें। शिकार पर जीने वाले ये लोग इस आइलैंड के ऊपर से गुजरने वाले विमानों को भी नहीं छोड़तें। यहां के निवासी तीरंदाज़ी में दक्ष है और रात्रि में तीरों में आग के गोलों का भी प्रयोग करतें हैं।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि यह जनजाति धरती की सर्वाधिक फौलादी जनजाति है। इसके लोगों को किसी प्रकार की कोई बीमारी या संक्रमण नहीं होता। चूंकि वे सबसे पृथक रहते हैं इसलिए किसी महामारी की चपेट में आकर इनके खात्मे की संभावना प्रबल रहती है। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक द्वीपों पर रहने वाले लोग सेहतमंद, सतर्क और संपन्न होते हैं।
साल 2004 में आई भयंकर सुनामी के चलते अंडमान द्वीप तबाह हो गए थे। यह द्वीप भी भारतीय अंडमान द्वीपों की श्रृंखला का ही हिस्सा है। परन्तु सुनामी का इस जनजाति के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा, यह बात भी अभी तक कोई नहीं जान पाया है। सुनामी के बाद जब भारतीय तटरक्षक सेना ने वहां जाने का प्रयास किया तो इन लोगों ने हेलिकॉप्टरों पर आगे से तीर छोड़ने की कोशिश की।