विधानसभा में नमाज कक्ष आवंटित करना सही है या गलत? कानून विशेषज्ञों से जाने संविधान क्या कहता है
झारखंड विधानसभा परिसर ने नमाज अदा करने के लिए एक अलग अलग कमरा आवंटित किया है
जब से झारखंड विधानसभा परिसर ने नमाज अदा करने के लिए एक अलग अलग कमरा आवंटित किया है तब से इसे लेकर कोहराम मचा हुआ है। इसके बाद विपक्ष की भाजपा ने भी अब विधानसभा परिसर में मंदिर के लिए अलग जगह देने की डिमांड रख दी है। इस बीच यह सवाल उठ रहा है कि क्या संसद या विधानसभा परिसर में किसी धार्मिक गतिविधि की अनुमति देना सही है? संविधान में इसके बारे में क्या कहा गया है? चलिए इस विषय पर कानून विशेषज्ञों की राय जानते हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक एक संविधान के तहत संसद और विधानसभा राज्य की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं। सविधान कहता है कि राज्य पंथनिरपेक्ष है। इसलिए विधानसभा परिसर में नमाज कक्ष संविधान के खिलाफ हो जाता है। दरअसल 2 सितंबर 2021 को झारखंड विधानसभा स्पीकर ने एक आदेश जारी किया था जिसमें नए विधानसभा भवन में कमरा नंबर 348 को नमाज अदा करने के लिए नमाज कक्ष के रूप में आवंटित किया गया था। अब कई लोग इस बात का विरोध जता रहे हैं।
लोकसभा के पूर्व सेक्रेट्री जनरल पीडीटी आचारी ने इसे असंवैधानिक बताया है। उनका कहना है मैंने पहले न तो ऐसा देखा है और न ही सुना है। विधानसभा एक सेक्युलर बाडी (पंथनिरपेक्ष संस्था) है। इसका धर्म से कोई संबंध नहीं होना चाहिए। इसमें कोई भी धार्मिक गतिविधि नहीं होनी चाहिए। इंडिया एक सेक्युलर देश है। इसका कोई धर्म नहीं है। वहीं पाकिस्तान एक इस्लामिक स्टेट है, इसलिए वहाँ भले ऐसा हो सकता है। लेकिन भारत में विधानसभा में किसी धार्मिक गतिविधि की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
इस मुद्दे पर राज्यसभा के पूर्व सेक्रेट्री जनरल योगेन्द्र नारायण का कहना है कि विधानसभा सेक्युलर होती है। वह एक सार्वजनिक इमारत है। इस पब्लिक बिल्डिंग में कोई भी धार्मिक गतिविधियों की इजाजत नहीं होती है। यह असंवैधानिक है।
लोकसभा में सेक्रेट्री जनरल रह चुके सुभाष कश्यप इसे अनुचित मानते हैं। उनके द्वारा झारखंड विधानसभा में नमाज के लिए नमाज कक्ष आवंटित करना औचित्य के विरुद्ध है। इससे संविधान की भावना का अपमान होता है। सेक्रेट्री जनरल आगे कहते हैं कि उन्हें याद नहीं कि इसके पहले कभी ऐसा कुछ हुआ हो। हालांकि वे ये बात स्वीकार करते हैं कि यह निर्णय लेना स्पीकर और सदन के क्षेत्राधिकार में आता है। लेकिन उनका कहना है कि सदन स्पीकर से बड़ा होता है। यदि सदन की मर्जी हो तो वह स्पीकर का आदेश खारिज कर सकता है।
स्पीकर के क्षेत्राधिकार पर वरिष्ठ वकील और पूर्व अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने भी अपनी राय रखी है। उनका कहना है कि स्पीकर को भी संविधान के मुताबिक ही काम करना पड़ता है। वह अपनी मनमानी नहीं चला सकता है। उसे संविधान के दायरे में रहकर ही कोई फैसला सुनना चाहिए। नमाज कक्ष आवंटित करने के मुद्दे पर रोहतगी कहते हैं कि ऐसा करना उचित नहीं है।
ऐसा होने पर बाकी धर्मों के लोग भी ऐसी डिमांड करने लगेंगे। क्या कोर्ट इस मामले में दखल दे सकता है? इस पर उनका कहना है कि ऐसे मामले सामान्यतः कोर्ट-कचहरी में नही जाते हैं। हालांकि यदि ये मामला कोर्ट में जाए तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट उस पर अपनी सुनवाई सुना सकता है।