अध्यात्म

यहां रात में नहीं दिन में मनाई जाती है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, 477 साल पहले हुआ था ऐसा चमत्कार

30 अगस्त को धूमधाम से भारत में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाएगा. सोमवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी है और यह हिंदूओं के प्रमुख त्यौहारों में से एक हैं. हिन्दू धर्म में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी धूमधाम के साथ मनाई जाती है. इस बार यह शुभ अवसर 30 अगस्त क आ रहा है. बता दें कि भादो मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था.

यूं तो पूरे देश और दुनिया में अलग-अलग जगह भगवान श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाता है हालांकि यह दिन मथुरा, गोकुल और ब्रजवासियों के लिए बेहद ख़ास होता है. हर जगह पर भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव रात में होता है, हालांकि आज हम आपको एक ऐसे जगह के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं जहां भगवान के जन्म का उत्सव दिन में ही मना लिया जाता है. यहां की कृष्ण जन्माष्टमी अन्य जगह की तुलना में इसलिए अलग और ख़ास बन जाती है.

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यह बात है ब्रज के एक मंदिर की. भगवान श्री कृष्ण को हमेशा से ही ब्रज प्यारा रहा है. माता राधा ब्रज से ही थी. ब्रज में एक ऐसा मंदिर है जहां कृष्ण जन्मोत्सव रात में नहीं बल्कि दिन में मनाया जाता है. वृंदावन के ठा. राधारमण मंदिर में प्रति वर्ष ऐसा ही होता है. इसके पीछे की वजह ठा. राधारमणलालजू के भोर में प्रकट होने को माना जाता है. ऐसे में इस मंदिर में दिन में ही श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाना उचित माना जाता है.

सोमवार को सुबह भगवान का विधिवत सवामन दूध, दही, घी, शहद, शर्करा, गंगा-यमुनाजल व जड़ी-बूटियों से महाभिषेक होगा. सुबह 10 बजे से श्री कृष्ण के श्रृंगार का काम शुरू हो जाएगा. बताया जाता है कि आज से करीब 477 साल पहले ठा. राधारमणलालजू शालिग्राम शिला से वैशाख शुक्ल पूर्णिमा की प्रभात बेला में प्रकट हुए थे. मंदिर सेवायत वैष्णवाचार्य अभिषेक गोस्वामी कहते हैं कि आचार्य गोपाल भट्ट की इच्छा शालिग्राम शिला में ही गोविंददेव जी का मुख, गोपीनाथजी का वक्षस्थल और मदनमोहनजी के चरणारविंद के दर्शन की थी.

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कहा जाता है कि भगवान नृसिंहदेव के प्राकट्य दिवस पर गोपाल भट्ट गोस्वामी ने अपने आराध्य के समक्ष इस तरह की इच्छा जताई थी. गोपाल भट्ट को उनकी साधना और भक्ति का फल मिला एवं फिर वैशाख शुक्ल पूर्णिमा की भोर में शालिग्राम शिला से ठा. राधारमणलालजू का प्राकट्य हुआ. इसके बाद से इस स्थान पर दिन में ही जन्माष्टमी मनाई जा रही है. इसकी शुरुआत खुद गोपाल भट्ट गोस्वामी के हाथों हुई थी और आज तक सदियों से, दशकों से ऐसा ही होता आ रहा है.

477 सालों से जल रही है अग्नि…

मंदिर की इस परंपरा के अलावा मंदिर को एक बात और सबसे ख़ास एवं चमत्कारिक बनाती है. दरअसल, पिछले 477 साल से यहां पर लगातार एक भट्टी जल रही है. विग्रह स्थापना के दौरान हुए हवन से पैदा हुई अग्नि आज तक जल रही है और यह किसी चमत्कार से कम नहीं है. बता दें कि, मंदिर में कभी भी माचिस का उपयोग नहीं किया जाता है.

यहां मंदिर की रसोई में समेत अनेक कार्य इसी अग्नि से ही संपादित होते हैं.

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