अपनी जवान बेटियों को तालिबान के हवाले कर रहे हैं हज़ारा समुदाय के लोग, आतंकियों से होगी शादी
अफगानिस्तान में खौफ़ का माहौल है। सबसे ज़्यादा तालिबानियों के आने के बाद कोई पीड़ित है तो महिलाएं हैं। उनकी आज़ादी अफगानिस्तान में छीनी जा रही। उनके साथ बर्बरता की जा रही, लेकिन हम आपको आज से क़रीब 23 साल पहले ले चलते हैं।
जी हां तारीख 8 अगस्त 1998, इस दिन तालिबान के लड़ाकों ने अफगानिस्तान के मजार-ए-शरीफ में दाखिल होते ही कोहराम मचाना शुरू कर दिया था। जो जहां मिला गोली मार दी, कई दिन तक हजारा समुदाय के हजारों लोगों को चुन-चुन कर मारा गया। तालिबान ने लाशें भी दफन नहीं करने दीं। तब बल्ख के तालिबान गवर्नर मुल्ला मन्नान नियाजी ने एक भाषण में कहा था कि, “उज्बेक लोग उज्बेकिस्तान जाएं, ताजिक तजाकिस्तान चले जाएं और हजारा या तो मुसलमान बन जाएं या कब्रिस्तान जाएं।”
अब 23 साल बाद एक बार फिर अफगानिस्तान में तालिबान हुकूमत लौट आई है। इसको लेकर हजारा समुदाय के लोग दहशत में हैं। कई जगहों पर उनकी बेटियों से तालिबानी लड़ाके जबरन शादी भी कर रहे हैं। इस तरह की कई रिपोर्ट्स निकलकर सामने आ रही हैं। हालांकि अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है। जबकि कुछ इलाकों में कत्लेआम की भी खबरें हैं।
बता दें कि हजारा शिया मुसलमानों का एक समूह है जिनका दशकों से उत्पीड़न होता आ रहा है। अफगान आबादी के करीब 10 प्रतिशत ये शिया मुसलमान दुनिया के सबसे उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों में शामिल हैं। अपनी धार्मिक मान्यताओं की वजह से भी वो निशाने पर रहे हैं। कट्टरपंथी सुन्नी उन्हें मुसलमान ही नहीं मानते।
कहानी उस दौरान की जब हजारा नेता की मूर्ति का सिर काटकर फैलाई दहशत…
गौरतलब हो जब काबुल में तालिबान ग्लोबल मीडिया के सामने ‘शांति और सुरक्षा’ का भरोसा दे रहे थे, उसी समय बामियान से हजारा नेता अब्दुल अली मजारी की मूर्ति तोड़े जाने की खबर आई। तालिबान ने 1995 में मजारी की हत्या कर दी थी। इसी बामियान में तालिबान ने 20 साल पहले बुद्ध की प्रसिद्ध प्रतिमाओं को उड़ा दिया था। बता दें कि डॉ. सलीम जावेद पेशे से डॉक्टर हैं और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। वे स्वीडन में रहते हैं और लंबे समय से हजारा मुद्दों पर लिखते रहे हैं।
उन्होंने एक समाचार पत्र से बात करते हुए मजारी की मूर्ति तोड़े जाने की पुष्टि की। वहीं डॉ. जावेद कहते हैं कि, “मजारी की मूर्ति का सिर काटकर जमीन पर रख दिया गया ताकि बिहेडिंग का सीन बन सके। हजारा लोगों ने इसका प्रोटेस्ट भी किया है, लेकिन तालिबान ने उनसे कहा है कि यह किसी अराजक तत्व का काम है।”
So Taliban have blown up slain #Hazara leader Abdul Ali Mazari’s statue in Bamiyan. Last time they executed him, blew up the giant statues of Buddha and all historical and archeological sites.
Too much of ‘general amnesty’. pic.twitter.com/iC4hUZFqnG
— Saleem Javed (@mSaleemJaved) August 17, 2021
इतना ही नहीं सलीम जावेद कहते हैं कि, “ये मुहर्रम का महीना है जो शिया लोगों के लिए बहुत पवित्र है। वे काले झंडे लगाकर इमाम हुसैन की मौत का गम मनाते हैं। मैंने ये भी कंफर्म किया है कि कुछ इलाकों में तालिबान ने इमाम हुसैन के काले झंडे को उतारकर अपने सफेद झंडे को लगाया है। कई जगह शिया झंडे को उतारकर कुचलने की भी खबरें हैं।”
हजारा समुदाय को नहीं है तालिबान पर भरोसा…
वहीं जानकारी के लिए बता दें कि अकरम गिजाबी वर्ल्ड हजारा काउंसिल के चेयरमैन हैं। वे 1980 के दशक में सोवियत शासन के खिलाफ हिंसक संघर्ष में शामिल रहे हैं और हजारा लड़ाकों के कमांडर थे। 1985 में वे अमेरिका आ गए थे। अफगानिस्तान लौटकर उन्होंने राजनीतिक पार्टी बनाई थी, जिसे प्रतिबंधित कर दिया गया था।
अफगानिस्तान में तालिबान के शासन ने उन्हें डरा दिया है। अकरम गिजाबी कहते हैं कि, “मैं अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत को लेकर बहुत आशावान नहीं हूं। वे देश को सदियों पहले ले जाएंगे। वे एक प्राचीन विचार हैं और फिर से वैसा ही शासन स्थापित करना चाहते हैं। अफगानिस्तान में अभी जो आजादी थी, महिलाओं के पास जो अधिकार थे, वो तालिबान के शासन में नहीं रहेंगे।”
रेप और जबरदस्ती शादी कर रहे हैं तालिबान लड़ाके…
यह तो सभी को पता है कि अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद सबसे बड़ा खतरा महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों के लिए है। अफगानिस्तान के तखर और बदख्शां प्रांत से ऐसी भी रिपोर्टें आईं हैं कि तालिबान जवान लड़कियों से जबरदस्ती अपने लड़ाकों की शादी करा रहे हैं। इसी को लेकर डॉ. जावेद कहते हैं कि, “लड़कियों को जबरदस्ती उठाकर निकाह करने की रिपोर्टों की हम पुष्टि नहीं कर सके हैं, लेकिन उत्तरी अफगानिस्तान के एक दूरस्थ इलाके में तालिबान के एक कमांडर ने बुजुर्गों से कहा कि वो विधवा और शादी की उम्र लायक लड़कियों की लिस्ट सौंपे, उनका निकाह मुजाहिदों से कराया जाएगा। इसकी पुष्टि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने की है।”
बेसहारा हैं हजारा समुदाय के लोग…
आख़िर में जानकारी के लिए बता दें कि करीब 40 लाख हजारा अफगानिस्तान में रहते हैं। ये देश की आबादी का दस प्रतिशत हैं, लेकिन सत्ता में इनका प्रतिनिधित्व न के बराबर हैं। तालिबान में हजारा बिल्कुल भी नहीं हैं। हजारा लोग अफगान नस्ल से अलग दिखते हैं और एशियाई अधिक लगते हैं। अफगानिस्तान के जिस मध्य-पहाड़ी इलाके में ये लोग रहते हैं उसे ‘हजारिस्तान’ कहा जाता है। इसमें प्रमुख प्रांत हैं बामियान, देयकुंदी, गोर, गजनी, उरूजगान, परवान, मैदान वारदाक। इसके अलावा बदख्शा प्रांत में भी इनकी ठीकठाक आबादी है।