रवि दहिया की जीत के पीछे है कोच ब्रह्मचारी हंसराज का हाथ, 6 साल की उम्र से दी थी इन्हें कोचिंग
रवि दहिया ने टोक्यो ओलंपिक में अच्छा प्रदर्शन करते हुए रजत पदक हासिल किया है। जिसके साथ ही ये कुश्ती में रजत पदक जीतने वाले तीसरे पहलवान बन गए हैं। इनसे पहले सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त ने कुश्ती में रजत पदक जीता था। रवि दहिया की इस जीत का सारा श्रेया इनके गुरु ब्रह्मचारी हंसराज को जाता है। ब्रह्मचारी हंसराज जी ने ही इनको कुश्ती सिखाई थी और इस काबिल बनाया की ये पदक जीत सकें।
रवि जब छह साल के थे तब वो ब्रह्मचारी हंसराज के अखाड़े में आए थे। य़हां 12 साल की उम्र तक इन्हें प्रशिक्षित किया गया। वहीं अपने शिष्य के पदक जीतने पर ब्रह्मचारी हंसराज ने खुशी जाहिर की। खुशी जाहिर करते हुए इन्होंने कहा कि “मैं बहुत अच्छा पहलवान नहीं था। मेरे बड़े सपने थे, लेकिन मैं उन्हें पूरा नहीं कर पाया। ऐसा लगता है जैसे भगवान ने मेरे सपने सुन लिए हैं। अब मेरे छात्र पदक ला रहे हैं। मैंने इतना लोकप्रिय होने के बारे में कभी सपने में भी नहीं सोचा था। मैं हमेशा किसी भी तरह के प्रचार से दूर रहता हूं और बच्चों को प्रशिक्षण देने पर ध्यान केंद्रित करता हूं।”
ब्रह्मचारी हंसराज के अखाड़े में कई सारे बच्चे इनसे कुश्ती सीखने के लिए आते हैं। हरियाणा के सोनीपत जिले के गांव नाहरी में ये अपना अखाड़ा चला रहे हैं। हंसराज एक न्यूनतम जीवन शैली जीते हैं। इन्होंने 1996 में अपना घर छोड़ दिया था और तब से ये एक साधु का जीवन जी रहे हैं।
हंसराज ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि मैंने बच्चों को प्रशिक्षण देना शुरू नहीं किया। गांव वाले खुद अपने बच्चों को मेरे पास ले आते थे। पहले तो मैंने मना कर दिया था। क्योंकि मैं ध्यान करना चाहता था। लेकिन बाद में मैंने एक अखाड़ा बनाया। तब से अब तक कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के पहलवानों ने यहां प्रशिक्षण लिया है। मैं कभी किसी से कोई चार्ज नहीं लेता। गांव मुझे जो कुछ भी खाने को देते हैं। मैं उसी पर रहता हूं।
हंसराज के अनुसार रवि को उनके पिता 6 से 7 साल की उम्र में यहां लाए थे। छह वर्षों तक प्रशिक्षित करने के बाद । फिर मैंने उन्हें अंतरराष्ट्रीय कोचों के तहत छत्रसाल स्टेडियम में स्थानांतरित कर दिया। जब मैंने टीवी पर पहली बार रवि के ओलिंपिक टीम में चुने जाने की खबर देखी तो मैंने उसे पहचान लिया। हम उसे अखाड़े में मोनी के रूप में जानते थे।
इन्होंने आगे कहा कि मुझे जिंदगी से ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं। मैं खुश हूं। मैं जो कुछ भी कर रहा हूं उसके साथ। यहां के लोग मेरी इज्जत करते हैं। मेरे पास इन बच्चों को अंतरराष्ट्रीय स्तर के मैचों के लिए प्रशिक्षित करने की कोई सुविधा नहीं है, इसलिए अखाड़े में शुरुआती 5 से 6 साल के प्रशिक्षण के बाद मैं बच्चों को छत्रसाल स्टेडियम भेज देता हूं। रवि एक होनहार बच्चा था, बहुत शांत और ईमानदार छात्र था। उससे सबको उम्मीदे थी।
वहीं भारत के लिए पुरुष फ्रीस्टाइल 57 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीतकर टोक्यो से लौटने के बाद रवि दहिया ने बताया कि “जब मैं बच्चा था, मैंने अपने गाँव के खेतों से अभ्यास करना शुरू कर दिया था। फिर मेरे गुरुजी हंसराज जी 12 साल की उम्र में मुझे छत्रसाल स्टेडियम ले आए। उन्होंने मुझसे कहा कि सभी अच्छे पहलवान यहीं से बनते हैं। उन्होंने इसी स्टेडियम में अभ्यास भी किया था। फिर मैं यहां आया…मेरे गुरुजी, परिवार और दोस्तों को ओलंपिक में मुझसे बहुत उम्मीदें थीं।”