वीरप्पन को जमींदोज़ करने के लिए चलानी पड़ी 338 गोलियां, लेकिन लगी सिर्फ दो । पढ़ें पूरी कहानी…
वीरप्पन का आतंक चला 20 साल। सरकार ने खर्च किया 20 करोड़ और 20 मिनट में कहानी हुई ख़त्म...
देश में बहुत ही कम लोग होंगें जो चंदन तस्कर रहें वीरप्पन के नाम से वाकिफ़ न हो। क़रीब दो दशक तक उसकी दक्षिण भारत के जंगलों में तूती बोलती रही और क़रीब 20 करोड़ रुपए सरकार ने उसे पकड़ने पर ख़र्च किया, लेकिन एक दिलचस्प वाकया देखिए कि उसकी कहानी भी आख़िर में क़रीब 20 मिनट में ही ख़त्म हो गई। बता दें कि वीरप्पन का असली नाम कूज मुनिस्वामी वीरप्पन था, जो चन्दन की तस्करी के साथ-साथ हाथी दांत की तस्करी भी करता था और वो कई पुलिस अधिकारियों की मौत का जिम्मेदार भी था। आइए जानते हैं इस कुख्यात तस्कर के एनकाउंटर की कहानी…
बता दें कि दरअसल, वीरप्पन का नाम पहली बार 1987 में सुर्खियों में आया, जब उसने चिदंबरम नाम के एक फॉरेस्ट अफसर को अगवा कर लिया था। इसके बाद उसने पुलिस के एक पूरे जत्थे को ही उड़ा दिया। जिसमें क़रीब 22 लोग मारे गए थे। वहीं 1997 में वीरप्पन ने सरकारी अफसर समझकर दो लोगों का अपहरण कर लिया था, लेकिन वो दोनों फोटोग्राफर थे। वो लोग वीरप्पन के साथ 11 दिन रहे।
छूटकर आने के बाद उन दोनों ने वीरप्पन के बारे में हैरान करने वाले खुलासे किए थे। धीरे-धीरे उसका आतंक पूरे दक्षिण भारत में देखने को मिलने लगा। फ़िर कुछ साल बाद वो तारीख़ आती है। जिसका इंतजार सब बेसब्री से कर रहें थे।
जी हाँ 18 अक्टूबर 2004 की तारीख आईपीएस अधिकारी रहे के. विजय कुमार की जिंदगी की सबसे महत्वपूर्ण तिथि तो है ही। इसके अलावा उनके लिए भी इस तिथि का बड़ा महत्व है। जो वीरप्पन के कारनामों से बेहाल थे। बता दें कि इसी दिन के. विजय कुमार ने देश के सबसे कुख्यात तस्कर और हत्यारे वीरप्पन को मौत की नींद सुलाया था।
उस पर 2000 से अधिक हाथियों और 184 लोगों की हत्या करने का आरोप था। 18 जनवरी 1952 को जन्मे वीरप्पन के बारे में कहा जाता था कि उसने 17 साल की उम्र में पहली बार हाथी का शिकार किया था। इतना ही नहीं कहा यह भी जाता है कि वो हाथी के माथे के बीचोंबीच गोली मारता था।
वहीं जिस दिन वीरप्पन का खात्मा हुआ वो एक एंबुलेंस में बैठकर अपनी आंख का इलाज कराने के लिए जा रहा था। उसके साथ उसके तीन सहयोगी भी थे। वीरप्पन की मौत की खबर सुनकर तमिलनाडु की तत्कालीन सीएम जयललिता ने कहा था कि, “मुख्यमंत्री रहते हुए उन्हें इससे अच्छी खबर कभी नहीं मिली।”
ऐसे अंजाम तक पहुँचा था ऑपरेशन…
बता दें कि वीरप्पन को मारने वाली एसटीएफ के प्रमुख रहे विजय कुमार ने अपनी किताब ‘वीरप्पन: चेसिंग द ब्रिगंड’ (Veerappan: Chasing the Brigand) में इस ऑपरेशन को पूरे विस्तार से समझाया है। इस काम को पूरा करने में उन्हें चार साल का समय लगा। विजय कुमार ने लिखा है कि जून, 2001 में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता का फोन आया था। उन्होंने बिना समय गंवाए सीधे मुद्दे की बात की और कहा कि आपको तमिलनाडु स्पेशल टास्क फोर्स का प्रमुख बनाया जा रहा है। वीरप्पन की समस्या कुछ ज्यादा ही सिर उठा रही है।
एसटीएफ की कमान मिलते ही विजय कुमार ने वीरप्पन के बारे में सभी जरूरी और खुफिया जानकारियां एकत्रित करना शुरू कर दिया। वीरप्पन को अपनी बात कहने के लिए वीडियो और ऑडियो टेप बनाने का बहुत शौक था। ऐसे ही एक टेप को देखकर एसटीएफ को पता चला कि उसकी एक आंख में तकलीफ है। यानी वो इसका इलाज करवाने के लिए जंगल से बाहर जरूर आएगा। फोर्स ने अपनी तैयारी शुरू कर दी।
ऑपरेशन को ककून दिया गया था नाम…
इसके बाद जैसा कि एसटीएफ ने सोचा था, वैसा ही हुआ। उन्हें पता चला कि वीरप्पन अपनी आंख का इलाज कराने की तैयारी कर रहा है। विजय कुमार ने उसे अस्पताल पहुंचने से पहले ही पकड़ने का फैसला किया। एसटीएफ ने उसके लिए एक विशेष एंबुलेंस तैयार की, जिस पर लिखा था एसकेएस हास्पिटल सेलम। बकौल विजय कुमार, पता नहीं क्यों पर वीरप्पन यह भांप ही नहीं पाया कि यह एंबुलेंस नकली है। दरअसल स्पेशल टास्क फोर्स ने जिस वैन को एंबुलेंस बनाया था उसमें सलेम की जगह गलती से सेलम पेंट हो गया था।
विजय कुमार ने उसे चेतावनी दी और एके 47 से फायरिंग शुरू कर दी। एसटीएफ ने कुल 338 राउंड गोलियां चलाईं जिनमें से वीरप्पन को केवल दो ही लगीं। रात 10 बज कर पचास मिनट पर शुरू हुआ यह एनकाउंटर 20 मिनटों के अंदर समाप्त हो गया। विजय कुमार ने अपनी किताब में यह भी लिखा है कि यदि वीरप्पन 18 अक्टूबर को नहीं आता, तो पता नहीं उसका आतंक कब तक बना रहता।
ऐसे बढ़ती गई थी वीरप्पन की हिम्मत…
साल 2000 में वीरप्पन ने दक्षिण भारत के मशहूर अभिनेता राजकुमार का अपहरण कर लिया था। उसने उन्हें 100 से ज्यादा दिनों तक अपने पास बंधक बनाकर रखा था। इस दौरान कर्नाटक और तमिलनाडु राज्य सरकारें वीरप्पन के सामने लगभग घुटनों पर आ गई थीं। लेकिन इस घटना के बाद ही उसके खिलाफ होने वाले ऑपरेशन तेज कर दिए गए और एसटीएफ का गठन करके के. विजय कुमार को इसकी कमान सौंपी गई।
वीरप्पन की कहानी का दूसरा पहलू…
वहीं तमिल खोजी पत्रिका नक्कीकरन के प्रकाशक और संपादक एसटीएफ के दावे से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उनका मानना है कि वीरप्पन को पुलिस कस्टडी में टॉर्चर किया गया और फिर मौत के घाट उतार दिया गया। आर गोपाल ने वीरप्पन का इंटरव्यू लिया था। बकौल गोपाल वह खुद को सुधारना चाहता था। यही वजह है कि उन्हें एसटीएफ की एनकाउंटर थ्योरी पर भरोसा नहीं है। उनका कहना है कि यह किताब केवल पुलिस का पक्ष रखने के लिए लिखी गई है।
जानकारी के लिए बता दें कि इस कुख्यात चंदन और हत्यारे वीरप्पन के जीवन पर छह टीवी सीरियल और फिल्में बन चुकी हैं। 2016 में रामगोपाल वर्मा ने किलिंग वीरप्पन नाम से तीन फिल्में बनाईं थीं। दो को हिंदी भाषा में बनाया गया था और एक को कन्नड़ भाषा में। कन्नड़ फिल्म में वीरप्पन की भूमिका शिव राजकुमार ने निभाई थी जो चंदन तस्कर द्वारा अपहृत अभिनेता राजकुमार के बेटे हैं।