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ऑपरेशन BlueStar : बगावत, बर्बरता और बवाल के बाद जब स्वर्ण मंदिर में घुसी थी सेना!

नई दिल्ली – 3 जून 1984 की तारीख भारत के इतिहास का एक काला दिन था। साल 1947 में और फिर 1966 में पंजाब के दो टुकड़े हुए। लेकिन वो पंजाब ही था जो इस घाव से उभरा और एक फिर से नई नींव रखी। 3 जून 1984 को जो हुआ था उसने पंजाबियों के सामने कई सवाल पैदा कर दिये। पहला सवाल तो यह था कि क्या वो जिस देश की रक्षा के लिए वो सबसे आगे खड़े थे, वो देश उन्हें अपना मानता है? क्या वो देश सिखों और हिन्दुओं को बराबर अधिकार देगा? क्या सिखों को हिंदुओं से अलग दिखने का परिणाम भुगतना पड़ेगा? और क्या उन्हें इस देश में रहते हुए एक नागरिक को मिलने वाले सभी अधिकार मिल रहे हैं? The story of operation bluestar.

अकालियों की मांगें थी ऑपरेशन ब्लू स्टार की वजह –

अगर बात करें ऑपरेशन ब्लू स्टार की वजह कि तो इसके पीछे अकालियों की मांगें थी। अकालियों ने चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाने, पंजाबी भाषी क्षेत्रों को पंजाब में शामिल करने और नदियों के पानी के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय की राय लेने की मांग की थी। इसके अलावा, वे ये भी चाहते थे कि ‘नहरों के हेडवर्क्स’ और पन-बिजली बनाने के मूलभूत ढाँचे का प्रबंधन पंजाब के पास हो, सेना में भर्ती क़ाबिलियत के आधार पर हो और इसमें सिखों की भर्ती पर लगी कथित सीमा हटाई जाए और अखिल भारतीय गुरुद्वारा क़ानून लागू किया जाए। इस मसले को सुलझाने के लिए तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने तीन बार कोशिश की थी। इसी बीच अमृतसर में 13 अप्रैल 1978 को अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों में हिंसक झड़प हुई। जिसे पंजाब में चरमपंथ की शुरुआत के तौर पर देखा जाता है।

इन्हें सौपा गया था पंजाब मसले का हल निकालने का जिम्मा –

ऐसी बात चलती है कि अप्रैल 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निवास पर देश के एक बड़े अधिकारी उनसे मिलने आए, जहां दोनों के बीच पंजाब समस्या पर बात हुई। सरकार ने आजतक सुरक्षा संबंधी कारणों से इस बड़े अधिकारी का नाम उजागर नहीं किया है। उस वक्त इस अधिकारी के अधीन एयरफोर्स की एक छोटी टुकड़ी, स्पेशल फ्रंटियर फोर्स, दो सीक्रेट अर्धसैनिक यूनिट और स्पेशल सर्विसेस ब्यूरो था। ऐसा कहा जाता है कि उनके पास पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकवाद से निपटने का अच्छा-खासा अनुभव था, इसी वजह से इंदिरा गांधी ने इन्हें पंजाब मसले का हल निकालने के लिए बुलाया था। उस वक्त इसी अधिकारी के नेतृत्व में दिल्ली के पास स्थित किसी गुप्त ठिकाने पर कुछ कमांडोज को विशेष ट्रेनिंग दी गई थी।

इंदिरा गांधी सरकार पर उठने लगे थे सवाल

पंजाब समस्या पर जरनैल सिंह भिंडरावाले ने कड़ा रुख़ अपनाते हुए केंद्र सरकार को दोषी ठहराना शुरू कर दिया था। जरनैल सिंह विवादास्पद राजनीतिक मुद्दों और धर्म को लेकर लागातार भाषण दे रहे थें। जिसे लेकर कुछ लोगों का ऐसा मानना कि वे सिखों की जायज़ मांगों और धार्मिक मसलों की बात कर रहे हैं।  यह सब लागातर बढ़ता जा रहा था और पुलिस के नियंत्रण से बाहर जा पहुंचा था। इसी बीच खालिस्तान समर्थकों ने स्वर्ण मंदिर पर कवजा कर लिया था। जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरागांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के आदेश दिया था। इसी दिन केंद्रीय रिजर्व फोर्स के जवानों और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के कुछ सेवादारों के बीच झड़प हो गई। जिसके बाद पूरे इलाके में कर्फ्यू लगा दिया गया था।

 बीस जवानों के शहीद होने पर स्वर्ण मंदिर में घुसे टैंक –

अगली सुबह मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भीड़ जमा होने लगी थी क्योंकि, 5 जून को गुरु अर्जुन देव का शहीदी दिवस मनाया जाना था। लेकिन, सेना स्वर्ण मंदिर को मुक्त कराने की योजना बना रही थी। मंदिर परिसर में करीब 5000 हजार लोग जमा हो गए। इसी बीच अकाल तख़्त के पास सिंधियों की धर्मशाला पर बम से हमला हुआ और अफरा-तफरी मच गई। दोनों तरफ से गोलियां चली। कमांडिंग ऑफिसर मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार ने कमांडो दस्ते को स्वर्ण मंदिर में घुसने का आदेश दिया, लेकिन सिख आतंकियों ने उनपर फायरिंग कर दी। जिसमें सेना के 20 से अधिक जवान शहीद हो गए। मजबूरी में सेना को टैंक और बख़्तरबंद गाड़ियों को मंदिर परिसर में लाना पड़ा। अगले दिन 06 जून 1984 को पूरे परिसर में सिर्फ खून ही था। सुबह 8 बजे तक सेना स्वर्ण मंदिर परिसर में प्रवेश कर चुकी थी।

इस दौरान सरकारी रिकार्ड के मुताबिक 492 लोगों की जान गई। जिसमें सेना के 4 अफसर और 83 जवान शहीद हुए थे। लेकिन, ऐसा बताया जाता है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान 5000 से अधिक लोग मारे गये थे।

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