भारतीयों गुलामों के साथ हुई वो दर्दनाक दास्ताँ जो सिर्फ़ इतिहास के पन्नों में दफ्न होकर रह गई…
दासता की वो दास्ताँ जो झेलनी पड़ी भारतीय गुलामों को। आइए जानते हैं इसे...
भारत देश ने ग़ुलामी का एक लंबा दौर देखा है। इतना ही नहीं इस ग़ुलामी की जंजीरों में जकड़े भारतीयों का जीवन काफ़ी निरीह बन गया था। एक के बाद एक विदेशी आक्रांता आते गए और हमारे देश को ग़ुलाम बनाते गए। ऐसे में इस दौरान सिर्फ़ हमारा देश ही ग़ुलाम नहीं रहा, बल्कि हमारे पूर्वजों को काफ़ी यातनाएं भी इस दौरान सहनी पड़ी। तो आइए आज चर्चा करते है भारतीय ग़ुलामों के साथ हुई ऐसी ही क्रूरता की कहानियों की। जो समय के पन्नों में दफ़न हो गई और आज हम उसे भूलकर आगे बढ़ गए।
चैन से बंधे, बाज़ार में मवेशियों की तरह बिकते ग़ुलामों के बारे में सोचने पर आपके दिमाग़ में सबसे पहले कौन सी तस्वीर उभरती है? अमूमन ये तस्वीर अफ़्रीकी देशों से लाए गए काले लोगों की होती है, जिन्हें अमेरिका या यूरोप में ख़रीदा बेचा जाता था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा ही कुछ भारत में भी होता था। एक समय ऐसा था। जब हिन्द महासागर में ग़ुलामों का व्यापार होता था। हिंदुस्तानियों को ब्रिटिश, फ़्रेंच, पुर्तगाली और डच, पशुओं की तरह जहाज़ पर चढ़ाते और सुदूर अंजान द्वीपों पर या फ़िरंगी घरों में ले जाते थे, जहां उनकी सिर्फ़ एक ही पहचान होती थी और वह थी सिर्फ़ और सिर्फ़ ग़ुलाम की।
बता दें कि यहाँ बात सिर्फ़ उन गिरमिटिया मज़दूरों की नहीं हो रही है। जिनको बेहद कम पैसे और सुविधाओं पर उपनिवेशों में काम करने के लिए ले जाया जाता था। बल्कि यह बात उस मध्यकालीन युग की हो रही। जिस दौर में भारत में ग़ुलामी की कहानी दक्षिण भारत से शुरू होती है। दक्षिण भारत में ही सबसे पहले यूरोप से आएं व्यापारियों ने डेरा डालना शुरू किया था। ये बात 16 वीं शताब्दी की है। जब यूरोप के अलग-अलग देश दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जाकर अपने उपनिवेश स्थापित कर रहें थे। अफ़्रीका से जहाज़ों में भर-भरकर लोगों को मवेशियों की तरह पश्चिमी देशों में लाया जा रहा था और मंडियों में उनकी बिक्री होती थी।
ग़ुलामों के व्यापार में चूंकि बहुत फ़ायदा था तो भारत में आए पुर्तगाली, ब्रिटिश, फ्रेंच और डच उपनिवेशक भी इसमें कूद पड़े। दक्षिण भारत में लोग सबसे पहले इसके शिकार बने। 1680 के दशक में एलिहू याले (Elihu Yale) को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) की तरफ़ से मद्रास प्रेसीडेंसी का प्रेसीडेंट (President) बनाकर भेजा गया और उसने आते ही ग़ुलामों के व्यापार को व्यापक रूप से शुरू कर दिया।
इतना ही नहीं इस व्यापार का गढ़ बना हिन्द महासागर। जिसको लेकर लेखक प्रवीण झा लिखते हैं कि, “याले (Yale) ने ऐसा नियम बनाया कि कहीं दूर जाने वाले जहाज़ में कम से कम 10 ग़ुलाम होने ही चाहिए।” एलिहू याले (Elihu Yale) ने इससे काफ़ी पैसा कमाया। इसी ने आगे चलकर याले (Yale) यूनिवर्सिटी के लिए काफ़ी धन दान किया था।
ग़ुलाम व्यापार में क्या डच, क्या फ्रेंच, क्या पुर्तगाली और क्या ब्रिटिश, सब के सब गले तक डूबे हुए थे। दक्षिण भारतीयों को ग़ुलाम बनाया जाता था, जिसमें औरत, मर्द और अपरहण करके लाये गए बच्चे भी शामिल शामिल थे। इनको समुद्री जहाज़ में चढ़ाकर दूर द्वीपों पर काम करने के ले जाया जाता था या फ़िर फ़िरंगी लोगों को बेचा जाता था।
जहाज़ पर विरोध करने वाले या बीमार पड़ने वाले गुलामों को समुद्र में फ़ेंक दिया जाता था। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक समुद्र यात्रा के दौरान महिला ग़ुलामों के साथ बलात्कार भी किया जाता था। इसमें जहाज़ के अफ़सर से लेकर नाविक, सब शामिल होते थे और जो भी महिला इस यात्रा के दौरान मर जाती थी, उन्हें समुद्र में फेंक दिया जाता था। आगे इन ग़ुलामों को बेचा जाता या सीधे ज़िंदगी भर के लिए काम थमा दिया जाता था।
एक अनुमान के मुताबिक 1830 के दशक में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) द्वारा शासित क्षेत्रों में 11 लाख से ज़्यादा ग़ुलाम थे। सन 1600 से शुरू होने वाला यह ग़ुलामी का दौर सन 1800 तक लगातार चलता रहा। 27 अप्रैल 1848 को फ्रांस ने फ्रांसीसी भारत में ग़ुलामी पर प्रतिबंध लगाया। जिसके बाद धीरे धीरे पुर्तगाल ने भी ग़ुलामी पर प्रतिबंध लगाया और 1876 में जाकर पूरी तरह से ये काम बंद हुआ। ब्रिटिश ने 1861 में ग़ुलामी को अपराध बना कर इस पर प्रतिबन्ध लगाया।
हालांकि भारत में गिरमिटिया मज़दूरी जारी रही और कुछ मामलों में ये ग़ुलामी का नाम थोड़ा बदलने जैसा ही था। ऐसे में आप अब भलीभांति समझ गए होंगे कि कैसे देश के लोगों और देश से बाहर पकड़कर ले जाएं जाने वालों की जिंदगी नरक बनती रही, लेकिन उसके विरोध तत्काल कोई मुकम्मल आवाज़ भी नहीं उठ सकी। जिसके कारण करीब 200 साल तक मानव पशु समान जीने को विवश रहा। इस कहानी पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है। हमें अवश्य बताएं, ताकि हम आप सभी तक ऐसी ही सूचनाएं प्रेषित करते रहें।