कहानी एक ऐसे शख़्स की। जो पहले स्कूल में था माली, फिर उसी स्कूल का बन गया प्रिंसिपल…
जिस कॉलेज में पौधों को सींचा, वहीं बनें प्रिंसिपल। जानिए क्या है पूरी कहानी...
कहते है कि ऊपर वाले ने किसी की किस्मत में क्या लिखा है। यह कोई नहीं जानता। इसलिए व्यक्ति को सिर्फ़ कर्मपथ पर चलते रहना चाहिए। फ़ल की बग़ैर चिंता किए हुए। वैसे भी एक कहावत औऱ भी है कि ऊपर वाला उसी की मदद करता है। जो आदमी अपनी मदद स्वयं करता है। ऐसे में कुल-मिलाकर देखें तो व्यक्ति को सिर्फ़ कार्य करते रहना चाहिए। वह भी सही दिशा में। फ़िर क़िस्मत बदलते देर नहीं लगती। आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी से रूबरू करवाने जा रहें।
जिस कहानी के किरदार हैं छत्तीसगढ़ (Chhatisgadh) के भिलाई (Bhilai) के रहने वाले ईश्वर सिंह बादगाह (Ishavar Singh Baadgaah)। बता दें कि इन्होंने किस्मत बदलने का इंतजार नही किया बल्कि इसके लिए अपने जीवन मे लाखों मुसीबतों का सामना किया और अपने लक्ष्य पर डटे रहे। जिसकी बदौलत उन्होंने ऐसा काम कर दिखाया है। जो अपने आप में मिसाल बन गया है।
जिस कॉलेज में पौधों को सींचा, वहीं बनें प्रिंसिपल…
कहते हैं न कि ईश्वर जब भी देता है छप्पर फाड़कर देता है। ऐसा ही ईश्वर सिंह बादगाह (Ishavar Singh Baadgaah) के साथ हुआ। ईश्वर सिंह बादग़ाह किस्मत बदलने पर नही मेहनत करने पर यकीन करते है। इन्होंने अपनी किस्मत अपनी मेहनत के बदौलत बदला है। एक समय ऐसा था। जब ईश्वर सिंह (Ishavar Singh Baadgaah) कल्याण( Kalyaan College) कॉलेज में माली हुआ करते थे लेकिन आज वह अपनी मेहनत और धैर्य के बदौलत उसी कॉलेज में प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत है।
संघर्षो के बावजूद मज़बूत इरादे को डगमगाने नहीं दिया…
बता दें कि ईश्वर सिंह बादगाह (Ishavar Singh Baadgaah) का जन्म बैठलपुर के ‘घुटिया’ में हुआ था। इन्होंने अपनी 12वीं तक की शिक्षा अपने गांव से ही प्राप्त की। घर की आर्थिक स्थिति सही नही होने के कारण इनको बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी और सन 1985 में मात्र 19 साल की आयु में घर के खर्चों के पैसो के लिए इन्होंने नौकरी तलाशनी शुरू कर दी। नौकरी की तलाश में वो भिलाई आ पहुंचे, जहां इन्होंने एक कपड़ा स्टोर में सेल्समैन की नौकरी करनी शुरू कर दी। इस नौकरी में इनको महीना के वेतन के तौर पर मात्र 150 रुपये दिया जाता था। लेकिन अभी भी इनके अंदर अपनी पढ़ाई को पूरी करने की ललक जिंदा थी।
उसी बीच इन्होंने कल्याण कॉलेज ( Kalyaan College) में अपनी बीए की डिग्री हासिल करने के लिए फार्म भर दिया और कपड़े की दुकान में नौकरी करने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी पूरी करने लगे। कल्याण कॉलेज में मात्र 2 महीना एडमिशन कराने के बाद इन्होंने सेल्समैन की नौकरी छोड़ उसी कॉलेज में माली की नौकरी करना शुरू कर दिया। वहां पर पढ़ाई के साथ-साथ वह कभी चौकीदार की नौकारी करते तो कभी सुपरवाइजर की। इनकी मेहनत और लगन को देखकर कॉलेज के आला अधिकारी इतने खुश हुए कि आला अधिकारियों ने इनको कॉलेज में होने वाले सभी निर्माण कार्यों का सुपरवाइजर बना दिया।
इस बीच इन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी और वर्ष 1989 में ग्रेजुएशन की डिग्री भी प्राप्त कर ली। जिसके बाद इनको इसी कॉलेज में क्राफ्ट टीचर की नौकरी मिल गई। बाद में इनकी योग्यता और लगन को देखते हुए कॉलेज में इनको असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी मिल गई और इसी दौरान इन्होंने एमएड, बीपीएड और एमफिल की पढ़ाई पूरी कर इसकी डिग्री भी हासिल कर ली और अंततः वर्ष 2005 में इनकी योग्यता को देखते हुए इनको कल्याण कॉलेज के प्रधानाचार्य के रूप में चुन लिया गया। इनका माली से प्रधानाचार्य बनने तक का सफर आसान नही था बल्कि बहुत संघर्षपूर्ण था।
सेक्यूरिटी फ़ोर्स का हिस्सा बनना चाहते थे ईश्वर…
वहीं ईश्वर सिंह (Ishavar Singh Baadgaah) की मानें तो वह हमेशा से सेक्यूरिटी फ़ोर्स में काम करना चाहते थे, इसके लिए इन्होंने कई बार टेस्ट भी दिया लेकिन वो इसमे सफल नही हो पाए। शायद इसलिए कि इनकी किस्मत में कॉलेज का प्रधानाचार्य बनना ही लिखा था। लाखों मुसीबतों का सामना करते हुए आज वो जिस कुर्सी पर बैठे है वो देख कर सबका सीना चौड़ा हो जाता है।
सभी के सहयोग से मिली सफ़लता…
ईश्वर सिंह (Ishavar Singh Baadgaah) बताते हैं कि, “एक माली से प्रिंसिपल बनना इतना आसान नही था। इस लक्ष्य तक पहुंचाने में बहुत लोगों ने सहायता की है। कल्याण कॉलेज (Kalyaan College) के तत्कालीन प्रिंसिपल प्रोफेसर टीएस ठाकुर ने इनकी मेहनत और लगन को देखते हुए इनकी बहुत सहायता की थी और इनके मार्गदर्शक भी बने। इसके अलावा कई शिक्षको ने भी इनका खूब सहयोग किया था।
कल्याण कॉलेज (Kalyaan College) के छात्रों का कहना है कि, “अपने प्रिंसिपल को देख उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है क्योंकि एक कॉलेज के माली से प्रिंसिपल तक का सफर पूरा करना इतनी आसान बात नही होती है। कई छात्र तो इनको (Ishavar Singh Baadgaah) अपना प्रेरणास्रोत बताते हैं। कुल मिलाकर जो भी हो लेकिन ईश्वर सिंह बादग़ाह ने अपनी मेहनत और लगनशीलता के बल पर एक नया मुकाम हासिल किया है जिसकी उम्मीद हर किसी से नहीं की जा सकती।