जानिए शेर किस तरह बना माँ दुर्गा की सवारी, बड़ी दिलचस्प और लंबी है इसके पीछे की कहानी
हिंदू धर्म में सभी देवी देवताओं को बड़े ही सम्मान से पूजा जाता है. सभी का अपना एक अलग महत्त्व होता है. हर दिन के हिसाब से अलग-अलग देवी-देवता की पूजा अर्चना की जाती है. सभी की पूरे दिल और प्रथा के साथ आराधना की जाती है. साथ ही धर्म में मौजूद सभी देवी-देवताओं की सवारी भी अलग-अलग होती है. इसके पीछे की कथाएं और प्रथाएं भी अलग होती है. जैसे भगवान गणेश मूषक, कार्तिकेय मोर, माता सरसस्वती हंस की सवारी करती हैं. उसी प्रकार देवी दुर्गा सिंह की सवारी करती हैं.
वह शेर पर सवार है इस वजह से उन्हें शेरावली के नाम से भी जाना जाता है. लेकिन क्या आपको पता हैं कि देवी दुर्गा की सवारी शेर कैसे बना. अगर आपको नहीं पता तो हम आपको बताते हैं इससे जुड़ी पीछे की पौराणिक कथाओं के बारे में. पौराणिक कथाओं की माने तो माता पार्वती भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या करने लगीं. इस कठोर तपस्या के कारण माता पार्वती का रंग बेहद ही सांवला हो गया था. एक दिन माता पार्वती और भगवान शिव हंसी- मजाक में बात कर रहे थे. इस दौरान भगवान शिव ने मजाक में माता पार्वती को काली कह दिया था.
भगवान शिव का ये कहना, माता पार्वती को काफी बुरा लग गया. इसके बाद माता पार्वती कैलाश छोड़कर तपस्या करने में लीन हो गई थी. इस दौरान एक भूखा शेर तपस्या करती देवी को देख उन्हें खाने की इच्छा से वहां पहुंचा. लेकिन देवी पार्वती को तपस्या में लीन देखकर वह चुपचाप वहीं बैठ गया. शेर वहां बैठकर सोचने लगा जब देवी तपस्या से उठेगी तो वह उन्हें अपना आहार बना लेगे. ऐसे में शेर को इंतज़ार करते-करते कई वर्ष बीत गए. इसके बाद भगवान शिव ने देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर गौरवर्ण यानी गौरी होने का वरदान दिया. इसके बाद जब माता पार्वती गंगा स्नान के लिए गई तो उनके शरीर से सांवली देवी प्रकट हुईं, जो कौशिकी कहलाई और वहीं से माता पार्वती महागौरी कहलाने लगीं.
शेर को इस तरह मिला तपस्या का फल
देवी पार्वती ने देखा कि तपस्या के दौरान शेर भूखे- प्यासे उनके साथ बैठा रहा. ऐसे में उन्होंने सिंह को अपना वाहन बना लिया. इसका कारण यह था कि वर्षों तक देवी को खाने के इंतजार में वह उन पर नजर टिकाए रखा और भूखा-प्यासा मां का ध्यान करता रहा. देवी ने इसे सिंह तपस्या मान लिया और उस सिंह को अपनी सेवा में ले लिया, इस तरह वह शेरोंवाली के नाम से भी कहीं जाने लगीं.
वहीं इससे जुड़ी एक और दूसरी पौराणिक कथा भी स्कन्द पुराण में सुनने को मिलती है. इस कथा के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने देवासुर संग्राम में दानव तारक और उसके दो भाई सिंहमुखम और सुरापदनाम असुरों को हराया था. इसके बाद सिंहमुखम ने भगवान कार्तिकेय से माफी मांगी थी. इसके बाद भगवान कार्तिकेय ने उसे माफ़ करते हुए शेर बनकर माता दुर्गा की सवारी बनने का आशीर्वाद दिया था. देवी अपने सभी स्वरूपों में अलग-अलग वाहन पर विराजमान हैं. देवी दुर्गा सिंह पर सवार दिेखती हैं तो माता पार्वती शेर पर.