भारत में मदरसे चल सकते तो फ़िर गुरुकुल परम्परा को क्यों नहीं दिया जा रहा बढ़ावा?
भारत में मदरसे में कुरान पढ़ाना जायज़, लेकिन स्कूलों में गीता नहीं। मतलब हद्द है!
हमारा देश सचमुच में अज़ीब है। कहने को यहाँ बहुसंख्यक तो हिन्दू हैं, लेकिन हमारे देश में मज़ाल है क्या कि हिंदी स्कूलों में वेद, गीता, रामायण या पुराण पढ़ाई जा सकें। जैसे ही इन धर्म ग्रंथो की बात आएगी, तो कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों और नेताओं को सांप सूंघ जाएगा। दुर्भाग्य देखिए उस देश का जहाँ बहुसंख्यक जनसंख्या तो हिन्दू है, लेकिन संविधान की धारा 28, 29 और 30 की धाराओं में साफ लिखा हुआ है की मुस्लिम मदरसे और इसाई स्कूल में कुरान बाइबिल पढ़ाया जा सकता है लेकिन किसी भी हिंदी स्कूल में वेद, गीता, रामायण और पुराण नहीं पढ़ाया जा सकता। यह तो सरासर गलत है। अगर कुरान में मानवतावादी दृष्टिकोण की बात है तो क्या गीता और रामायण में कुछ अलग क्या? अगर नहीं फिर विरोध किस बात का।
This letter clearly says that not even a single beggar was found all over India then just think how great our teachings were and how beautifully gurukul system gave us life lessons❗❗#भारत_मांगे_गुरुकुल pic.twitter.com/GIkGfbl1zc
— Manasa Prabhu (@prabhu_manasa) June 18, 2021
Observe the trend
1947 – Gurukul – 37567
– Madrasa – 2842017 – Gurukul – 034
– Madrasa – 423482021 – Gurukul – ??
– Madrasa – can you guess?That’s why not only #भारत_मांगे_गुरुकुल but also #भारत_मांगे_हिंदुराष्ट्र @ihvinod @Pratap061061 pic.twitter.com/is4A1Q9lRn
— Sunil Ghanwat (@SG_HJS) June 18, 2021
Yes actually Sanskriti is our identity.#भारत_मांगे_गुरुकुल pic.twitter.com/cQkTFAZgkZ
— ??राष्ट्रवादी आशीष? (@AshishK12215056) June 18, 2021
आज़ादी के बाद से ही देश में तुष्टिकरण की राजनीति को बढ़ावा देने के लिए सरकारें मुस्लिमो और इसाईओं के पक्ष में खड़ी होती नजर आई है। जिसका नतीजा यह हुआ कि देश में गुरुकुल परम्परा नष्ट होती गई और मदरसों और कान्वेंट स्कूलों का चलन बढ़ता गया। अब जब बीते दिन सोशल मीडिया पर गुरुकुल शिक्षा पद्धत्ति को लेकर बहस छिड़ी है। तो इसे दूर तक ले जाने की जरूरत है, क्योंकि गुरुकुल शिक्षा ही एकमात्र ऐसी शिक्षा पद्धत्ति थी। जो छात्रों का सम्पूर्ण बौद्धिक विकास करती थी। फिर उसे कैसे देश से लुप्त होने दिया जा सकता है। पिछली सरकारें कहीं न कहीं हिंदुत्व से ही चिढ़ती थी। ऐसे में उनके द्वारा गुरुकुल जैसी शिक्षा पद्धत्ति को पुर्नजीवित करने की उम्मीद नहीं के बराबर थी। लेकिन अब जब केंद्र में मोदी सरकार है, फिर ऐसी आशा की जा सकती है कि गुरुकुल पद्धत्ति पुनः जीवित करने का प्रयास किया जा सकता है।
गुरुकुल को लेकर चर्चा छिड़ी है तो याद दिला दूँ कि भाजपा और संघ से जुड़ाव रखने वाले संजय विनायक जोशी है। जो अपने एक लेख में गुरुकुल के महत्त्व पर लिखते है। वे अपने लेख के आखिर हिस्से में लिखते है कि, “आखिर किसके इशारे पर संविधान में धारा 28, 29, 30 हिन्दू विरोधी ऐक्ट को जगह दी गई? जबकि संविधान निर्माता ज्यादातर हिन्दू थे? आखिर किसके इशारे पर 1947 में 39000 बचे गुरुकुलों को 2019 मे खत्म करके 34 संख्या में पहुंचा दिया गया? आखिर किसके इशारे पर गुरुकुलों को छोड़कर मदरसो पर धन लुटा रहे हैं ? पहचानिए पर्दे के पीछे बैठे खिलाड़ियों को।”
ऐसे में एक बात तो है अब उनके ही दल की सरकार है, फिर तो गुरुकुल परम्परा को महत्व मिलना चाहिए। वैसे भी देश की बहुसंख्यक जनसंख्या मोदी सरकार से ही यह अपेक्षा कर सकती है कि वह भारत को उसकी पुरानी शिक्षा पद्धत्ति लौटा सकते है, वरना किसी दल से उम्मीद न के बराबर है। एक बात यह भी है कि भले ट्विटर पर अभी गुरुकुल परम्परा को पुर्नजीवित करने की मांग उठी हो, लेकिन भारतीय चिंतन से प्रेरित बौद्धिक वर्ग तो कब से यह मांग कर रहा है कि विद्यालयीन और महाविद्यालयों में गुरुकुल जैसी श्रेष्ठ परंपरा को जोड़ने के प्रयास शुरू किए जाएं।
बात दें कि प्राचीन भारत में, गुरुकुल के माध्यम से ही शिक्षा प्रदान की जाती थी। इस पद्धति को ‘गुरु-शिष्य परम्परा’ भी कहते है। इसका उद्देश्य था- विवेकाधिकार और आत्म-संयम, चरित्र में सुधार, मित्रता या सामाजिक जागरूकता, मौलिक व्यक्तित्व और बौद्धिक विकास, पुण्य का प्रसार, आध्यात्मिक विकास और ज्ञान और संस्कृति का संरक्षण करना। ऐसे में जिस दौर में समाज में विकृति बढ़ रही है, तो ऐसी शिक्षा को बढ़ावा देना वक्त की मांग भी है। सरकार ने संसद में 2020 में कहा था कि देश में दो प्रकार की मदरसा शिक्षा प्रणाली के तहत संचालित मान्यता प्राप्त मदरसों की संख्या 19132 है, जबकि 4878 गैर मान्यता प्राप्त मदरसे भी संचालित हो रहे हैं। फ़िर गुरुकुल पद्धत्ति के साथ भेदभाव आखिर कब तक? ऐसे में अगर ट्विटर पर यह ट्रेंड करता है कि “भारत मांगें गुरुकुल” तो इस तरफ सरकर को भी सोचना चाहिए।