ट्रैफ़िक लाइट्स का क्या है इतिहास? ट्रैफ़िक लाइट में हरे, लाल और पीले रंग का ही क्यों होता है इस्तेमाल?
जानिए सर्वप्रथम कहाँ हुआ ट्रैफ़िक लाइट्स का उपयोग, क्या सभी जगह एक जैसे रंगो का होता इसके लिए उपयोग?
ट्रैफिक सिग्नल का हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से एक गहरा नाता है। छोटे शहरों में इसका उतना महत्व तो नहीं होता, लेकिन बड़े शहरों में ट्रैफ़िक सिग्नल काफ़ी महत्व रखता है। यह तो सभी को पता है कि कई लोग इसे अच्छे से फॉलो करते हैं तो कुछ लोग इसे नजरअंदाज कर जाते हैं। ट्रैफिक सिग्नल से हमारी मुलाकात दिन भर में न जाने कितनी बार होती है। ऐसे में कई बार हम सोचते है कि आखिर क्यों लाल बत्ती पर हम रुकते हैं और हरी पर चलते हैं और पीली पर अक्सर गाड़िया धीमी हो जाती हैं। तो चलिए आज हम जानते हैं आखिर क्यों इनका इस्तेमाल होता है ट्रैफिक सिग्नल के लिए और क्या है इनका इतिहास…
जानकारी के लिए बता दें कि ट्रैफिक सिग्नल पर हर जगह इन तीन रंगो का ही इस्तेमाल होता है। फिर चाहे वो भारत हो या फिर अमेरिका। हर जगह इन तीन रंगों का ही इस्तेमाल ट्रैफ़िक सिग्नल के लिए होता है। वैसे इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी है। दरअसल, लाल और हरा रंग हम दिन की रोशनी में भी आराम से देख सकते हैं, लेकिन आप बाकी रंगो को नहीं देख सकते हैं या फिर उन्हें देखने में आपको थोड़ी परेशानी होगी। इतना ही नहीं लाल रंग की वेब लेंथ बाकी रंगो से कहीं ज्यादा होती है इसलिए ये हमें दूर से भी दिख जाती है। ऐसी ही वेब लेंथ हरे रंग का भी होता है। शायद यही वजह है जो इन दोनों लाइटों को देखा जा सकता है। इन दोनों रंगों का इस्तेमाल पूरी दुनिया की सड़कों पर इन्हीं दोनों लाइट्स का इस्तेमाल किया जाता है। इन रंगो से ही कई सारे हादसे टाले जाते हैं। वैसे सड़को के अलावा भारतीय रेलवे भी इन्ही रंगों की लाइटो का प्रयोग करता है। अगर आपने ध्यान से देखा होगा तो रेलगाड़ी को रोकने के लिए अक्सर लालबत्ती का प्रयोग किया जाता है, साथ ही हरे रंग का मतलब है गाड़ी को आगे बढ़ाएं।
वहीं ट्रैफिक सिग्नल के इतिहास की बात करें तो दुनिया में सबसे पहला ट्रैफिक लाइट 10 दिसंबर 1868 को लंदन के ब्रिटिश हाउस ऑफ पार्लियामेंट के सामने लगाया गया था। इस लाइट को रेलवे के अभियंता जेके नाईट ने लगाया था। वहीं बात करें तो शुरुआत के दिनों में ट्रैफिक लाइट में सिर्फ दो ही रंगों का प्रयोग किया जाता था लाल और हरा।
सबसे खास बात ये है कि उस समय इस लाइट को रात में दिखने के लिए गैस का प्रयोग किया जाता था। पहला सुरक्षित स्वत: बिजली ट्रैफिक लाइट संयुक्त राज्य अमेरिका में साल 1890 में लगाए गए थे। उसके बाद से ट्रैफिक लाइट का उपयोग दुनिया के कोने-कोने में होने लगा। यह बात हुई दुनिया में ट्रैफ़िक सिग्नल के इतिहास और उसके उपयोग की।
अब जानते है इन रंगों का ही इस्तेमाल आख़िर क्यों। तो बता दें कि लाल रंग अन्य रंगों की अपेक्षा में बहुत ही गाढ़ा होता है। यह दूर से ही दिखने लगता है। लाल रंग का प्रयोग इस बात का भी संकेत देता है कि आगे खतरा है, आप रूक जाएं। वहीं ट्रैफिक सिग्नल में पीले रंग का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है, क्योंकि यह रंग ऊर्जा और सूर्य का प्रतीक माना जाता है। यह रंग बताता है कि आप अपनी ऊर्जा को समेट कर फिर से सड़क पर चलने के लिए तैयार हो जाएं।
इसके अलावा हरा रंग प्रकृति और शांति का प्रतीक माना जाता है। ट्रैफिक लाइट में इस रंग का उपयोग इसलिए किया जाता है, क्योंकि यह खतरे के बिल्कुल विपरीत होता है। यह रंग आंखों को सुकून देता है। इसका मतलब होता है कि अब आप बिना किसी खतरे के आगे बढ़ सकते हैं। तो यह जानकारी थी ट्रैफ़िक सिग्नल से जुड़ी। आशा करते हैं यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। इतना ही नहीं यह भी हम आशा करते हैं कि आप अब जब ही सड़क पर निकलेंगे तो इन ट्रैफ़िक सिग्नल का पालन अवश्य करेंगे। ताकि आप सुरक्षित रहें और आपका परिवार भी।