जमेटो गर्ल विष्णुप्रिया की कहानी सुन आप भी कभी क़िस्मत को नहीं देंगे दोष, सिर्फ़ कर्म करने पर देंगे ज़ोर…
'म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के..' आर्थिक संकट झेल रहा परिवार तो सहारा बनी विष्णुप्रिया। पढ़िए पूरी कहानी
कोरोना ने सिर्फ़ कईयों को अपनों से जुदा ही नहीं किया है। कोरोना ने कई प्रकार से मानव समाज को नुकसान पहुँचाया है। जिसमें सामाजिक, आर्थिक और शारीरिक तीनों प्रकार के ज़ख्म शामिल हैं। कोरोना की वज़ह से जहां कई जिंदगियां समय से पहले ही काल-कल्वित हो गई वहीं लॉकडाउन की वज़ह से कई लोगों को तंगी का सामना करना पड़ा और कई लोगों की नौकरी चली गई। जिसकी वज़ह से खाने तक के लाले पड़ गए। जी हाँ पिछले साल का लॉकडाउन याद है न! जब ज्योति नाम की एक लड़की गुरुग्राम से बिहार तक की यात्रा अपने पिता को साईकिल पर बैठाकर तय करती है। ताकि उसे और उसके पिता को गांव में जाकर भोजन मिल सकें।
ज्योति जैसी कई कहानियां हैं। जो कोरोना काल की देन है। कईयों के घर का चिराग़ ही कोरोना ने नहीं छीना है, बल्कि आर्थिक रूप से भी पंगु बना दिया है। जिसकी वज़ह से खाने के लाले कई घर में पड़ गए। ऐसा ही उड़ीसा के कटक में रहने वाले एक व्यक्ति के साथ हुआ। जिनकी कोरोना काल में लॉकडाउन की वज़ह से पहले नौकरी गई। फ़िर आर्थिक तंगी की वज़ह से जब घर मे खाने के लिए कुछ नहीं बचने की स्थिति आई तो उनकी बेटी ने हिम्मत दिखाई और परिवार की जिम्मेदारी सम्भाली। अब ये बेटी फूड डिलीवरी कर अपने परिवार का पेट पाल रही है।
Odisha: Bishnupriya Swain, a student in Cuttack picked food delivery work after her father lost job amid pandemic
“I was taking tuitions.During COVID students weren’t coming to class. We were facing financial issues. I joined Zomato to support my education&family,”she said y’day pic.twitter.com/TGfBPZDvZm
— ANI (@ANI) June 10, 2021
बता दें कि जिस उम्र में लड़कियों को स्कूल-कॉलेज जाना चाहिए। अपने भविष्य के लिए सुंदर सपने संजोने चाहिए । उस उम्र में विष्णुप्रिया को नौकरी करनी पड़ रही है। वह भी परिवार का पेट पालने के लिए। 18 साल की विष्णुप्रिया पढ़-लिखकर डॉक्टर बनना चाहती थी। मगर कोरोना ने सब कुछ बदल कर रखा दिया।
शायद नियति को ही कुछ और मंजूर है। तभी तो कोरोना काल में पिता की नौकरी जाने के बाद विष्णुप्रिया ने नौकरी के लिए हाथ-पैर मारने शुरु कर दिए। इसी क्रम में उसने फूड डिलिवरी ऐप जोमैटो में इंटरव्यू दिया और सेलेक्ट हो गई और वह अब घर-घर जाकर खाना पहुँचाने का काम करती है।
वही विशेष बात यह है कि इस नौकरी से पहले विष्णुप्रिया को बाइक चलानी नहीं आती थी। उनके पिता ने उन्हें बाइक चलानी सिखाई और आगे बढ़ने के लिए तैयार किया। विष्णुप्रिया की मां कहती हैं कि, ”हमारा कोई बेटा नहीं है, वो ही हमारा बेटा है। पिता की नौकरी जाने के बाद वो ही परिवार चली रही है। नौकरी के साथ वो खुद पढ़ाई करती है, बच्चों को ट्यूशन और जरूरत पढ़ने पर घर के काम में मदद भी करती है।” ऐसे में विष्णुप्रिया की यह कहानी किसी प्रेरणादायक कहानी से कम नहीं। जिसने परिस्थितियों के सामने हार नहीं मानी और अपने परिवार का सहारा बनी। विष्णुप्रिया से उन लोगों को काफ़ी कुछ सीखने को मिल सकता है। जो छोटी सी मुसीबत के आते ही उसके सामने हार मानकर बैठ जाते हैं।