कोरोना वायरस का असर इस बार विश्व प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा पर भी पड़ने जा रहा है। जी हां यह पहली बार होगा कि जब 285 वर्षो के एक लंबे कालखंड में जगन्नाथ जी की यात्रा बिना भक्तों के निकलेगी। हालांकि बीते वर्ष में भी कोरोना संकट के चलते सांकेतिक तौर पर यह यात्रा निकाली गई थी। ओडिशा के स्पेशल रिलीफ़ कमिश्नर प्रदीप के जेना ने यह जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि, “कोरोना के चलते इस वर्ष भी नियमों के अनुसार ही रथ यात्रा निकाली जाएगी।” उनके अनुसार इसमें केवल कोरोना वायरस की निगेटिव रिपोर्ट प्राप्त कर चुके और वैक्सीन लगवा चुके सेवक ही शामिल होंगे। रथ यात्रा क्यों निकालते हैं और क्या है इसका महत्व। इसके अलावा क्या कभी पहले भी रथ यात्रा में पड़ा है विघ्न। आइए जानते हैं इन्हीं सब बातों को विस्तार से। उसके पहले जान लेते हैं जगन्नाथ पुरी से जुड़ी कुछ अन्य बातें…
बता दें कि चार धाम तीर्थधामों में से एक पुरी का जगन्नाथ मंदिर है। 800 साल पुराने इस मंदिर में भगवान कृष्ण को जगन्नाथ के रूप में पूजा जाता है और इनके साथ उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी यहाँ विराजमान हैं। मालूम हो कि रथयात्रा में इन तीनों ही लोगों के रथ निकलते हैं। जगन्नाथ रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के साथ भाई बलराम और बहन सुभद्रा के लिए अलग-अलग रथ होते हैं और ये रथ हर साल बनते हैं। रथयात्रा में सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है। सबसे आगे बलराम और बीच में बहन सुभद्रा का रथ चलता है।
सभी के रथ अलग रंग और ऊंचाई के होते हैं। बता दें कि तीनों रथों का अलग-अलग नाम भी होता है। बलरामजी के रथ को ‘तालध्वज’ कहा जाता है और ये लाल और हरे रंग का होता है। वहीं सुभद्रा के रथ का नाम ‘दर्पदलन’ अथवा ‘पद्म रथ’ है। उनके रथ का रंग काला या नीले रंग को होता है, जिसमें लाल रंग भी होता है। इसके अलावा भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदीघोष’ अथवा ‘गरुड़ध्वज’ कहा जाता है। इनका रथ लाल और पीला रंग का होता है।
गौरतलब हो कि हर साल बनने वाला ये रथ लगभग एक समान ऊंचाई के ही बनाएं जाते हैं। इसमें भगवान जगन्नाथ का रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलराम का रथ 45 फीट और देवी सुभद्रा का रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है।
वहीं बात रथ बनाने में उपयोग होने वाली लकड़ी का करें। तो यह सदैव नीम की लकड़ी से बनाया जाता है, क्योंकि ये औषधीय लकड़ी होने के साथ पवित्र भी मानी जाती है। बता दें कि नीम के किस पेड़ से लकड़ी का चयन होगा इसका फैसला जगन्नाथ मंदिर समिति द्वारा तय किया जाता है। इसके अलावा दिलचस्प बात यह है कि भगवान के रथ में एक भी कील या कांटे आदि का प्रयोग नहीं होता। यहां तक की कोई धातु भी रथ में नहीं लगाई जाती है। रथ की लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के दिन और रथ बनाने की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन से शुरू होती है।
इसके बाद तीनों रथ के तैयार होने के पश्चात इसकी पूजा के लिए पुरी के ‘गजपति राजा’ की पालकी आती है। इस पूजा अनुष्ठान को ‘छर पहनरा’ नाम से जाना जाता है। इन तीनों रथों की वे विधिवत पूजा करते हैं और ‘सोने की झाड़ू’ से रथ मण्डप और रास्ते को साफ़ किया जाता है। आषाढ़ माह की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को रथयात्रा ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के साथ रथ को लोग खींचते हैं। जिसे रथ खींचने का सौभाग्य मिल जाता है, वह व्यक्ति महाभाग्यशाली माना जाता है। यह तो बात हुई रथ और मन्दिर से जुड़े इतिहास की। अब जानते हैं कि रथयात्रा क्यों निकालते और उसके महत्व की।
144 साल नहीं हुई थी पूजा…
285 सालों में यह पहली बार होगा कि जगन्नाथ पुरी जी की रथयात्रा बिना श्रद्धालुओं के निकाली जाएगी। लेकिन आपको बता दें कि मंदिर के रिकॉर्ड के मुताबिक सर्वप्रथम 2504 में आक्रमणकारियों के चलते मंदिर परिसर 144 सालों तक बंद रहा था। साथ ही पूजा- पाठ से जुड़ी परंपराएं भी बंद रहीं।लेकिन आद्य शंकराचार्याजी ने इन परंपराओं को फिर से शुरू किया। हालांकि तब से लेकर अभी तक हर परिस्थिति में मंदिर की सभी परंपराओं का विधिवत् पालन किया जाता रहा है।
ऐसे शुरू हुई रथयात्रा की यह अनूठी परम्परा…
ऐसी मान्यताएं है कि भगवान श्रीकृष्ण के अवतार जगन्नाथजी की रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के समान होता है। इसकी तैयारी अक्षय तृतीया के दिन श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ शुरू हो जाती है। रथयात्रा के प्रारंभ को लेकर ऐसी कथाएं प्रचलित है कि राजा इंद्रद्यूम अपने पूरे परिवार के साथ नीलांचल सागर (उड़ीसा) के पास रहते थे। एक बार उन्हें समुद्र में एक विशालकाय काष्ठ दिखा। तब उन्होंने उससे विष्णु मूर्ति का निर्माण कराने का निश्चय किया। उसी समय उन्हें एक वृद्ध बढ़ई भी दिखाई दिया जो कोई और नहीं बल्कि स्वयं विश्वकर्मा भगवान जी थे।
बढ़ई ने लगाई राजा से अजीबोगरीब शर्त…
बता दें कि प्रचलित मान्यताओं के मुताबिक बढ़ई बने भगवान विश्वकर्मा ने राजा से कहा कि वह मूर्ति तो बना देंगे। लेकिन उनकी एक शर्त है। ऐसे में राजा ने पूछा कैसी शर्त? तब बढ़ई बने भगवान विश्वकर्मा ने कहा कि, “मैं जिस घर में मूर्ति बनाऊंगा उसमें मूर्ति के पूर्ण रूप बन जाने तक कोई भी नहीं आएगा। राजा ने इस शर्त को सहर्ष स्वीकार कर लिया। कहा जाता है कि वर्तमान में जहां श्रीजगन्नाथजी का मंदिर है उसी के पास एक घर के अंदर वे मूर्ति निर्माण में लग गए। राजा के परिजनों को बढ़ई की शर्त के बारे में पता नहीं था।
फ़िर राजा भूल गए वह शर्त…
एक कथा के अनुसार रानी ने सोचा कि कई दिन से द्वार बंद है और बढ़ई भी भूखा-प्यासा होगा। कहीं उसे कुछ हो न गया हो। यही सोचकर रानी ने राजा से कहा कि कृपा करके द्वार खुलवाएं और वृद्ध बढ़ई को जलपान कराएं। रानी की यह बात सुनकर राजा भी अपनी शर्त भूल गए और उन्होंने द्वार खोलने का आदेश दिया। कहते हैं कि द्वार खुलने पर वह वृद्ध बढ़ई कहीं नहीं मिला। लेकिन वहां उन्हें अर्द्धनिर्मित श्रीजगन्नाथ, सुभद्रा तथा बलराम की काष्ठ मूर्तियां मिलीं।
तब से निकाली जाती है रथयात्रा…
कथा के अनुसार अधूरी पड़ी प्रतिमाओं को देखकर राजा और रानी को अत्यंत दु:ख हुआ। लेकिन उसी समय दोनों ने आकाशवाणी सुनी कि, “व्यर्थ दु:खी मत हो, हम इसी रूप में रहना चाहते हैं इसलिए मूर्तियों को द्रव्य आदि से पवित्र कर स्थापित करवा दो।” आज भी वे अपूर्ण और अस्पष्ट मूर्तियां पुरुषोत्तम पुरी की रथयात्रा और मंदिर में सुशोभित व प्रतिष्ठित हैं। मान्यता है कि श्रीकृष्ण व बलराम ने माता सुभद्रा की द्वारिका भ्रमण की इच्छा पूर्ण करने के उद्देश्य से अलग रथों में बैठकर रथयात्रा निकाली थी। तब से ही माता सुभद्रा की नगर भ्रमण की स्मृति में यह रथयात्रा पुरी में हर वर्ष आयोजित की जाती है।
यह है रथयात्रा में शमिल होने की महिमा…
रथयात्रा एक ऐसा पर्व है जिसमें भगवान जगन्नाथ चलकर अपने भक्तों के बीच आते हैं और उनके दु:ख-सु:ख में सहभागी होते हैं। इसका महत्व शास्त्रों और पुराणों में भी बताया गया है। स्कंद पुराण में स्पष्ट कहा गया है कि, “जो भी व्यक्ति रथयात्रा में शामिल होकर गुंडीचा नगर तक जाता है। वह जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।” वही जो भक्त श्रीजगन्नाथ जी का दर्शन करते हुए, प्रणाम करते हुए मार्ग के धूल-कीचड़ से होते हुए जाते हैं वे सीधे भगवान श्रीविष्णु के उत्तम धाम को जाते हैं। इसके अलावा जो गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा देवी के दक्षिण दिशा को आते हुए दर्शन करते हैं वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं।
देश ही नहीं विदेशों में भी निकलती है रथयात्रा…
मालूम हो कि भगवान जगन्नाथपुरी की यह अप्रतिम यात्रा सामान्य स्थितियों में जगन्नाथपुरी के अलावा गुजरात, असम, जम्मू, दिल्ली, आंध्र प्रदेश, अमृतसर, भोपाल, बनारस और लखनऊ में भी निकाली जाती है। इतना ही नहीं यह रथ यात्रा बांग्लादेश, सैन फ्रांसिस्को और लंदन में भी निकाली जाती है। आख़िर में जानकारी के लिए बता दें कि इस बार यह यात्रा कल यानी 12 जून को निकाली जाएगी।