पिता ने मरने से पहले बेटे को बताई उसकी सच्चाई, कहानी जानकर आप भी अपने आंसू नहीं रोक पाएंगे
Global Day of Parents: आज जानिए माता-पिता के समर्पण की असली कहानी, अनाथ को बना दिया इंजीनियर
एक 26 साल का साफ्टवेयर इंजीनियर एक बहुत बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था. उसकी पूरी दुनिया उसके माता-पिता और पत्नी व दोनों बच्चों के आस-पास ही थी. उसके पिता ने उसे हमेशा से ही शिक्षक होने के नाते उसे नैतिक ज्ञान अच्छे से दिया था. गरीब बच्चों की हमेशा मदद करने के लिए प्रेरित किया. पिता द्वारा बचपन से याद कराइ इस कहानी के पीछे की सच्चाई जब उस लड़के को पता चली तो उसकी आँखों से आंसू नहीं रुक पाए.
उसे इतना प्यार देने वाले, उसकी हर बात को मानने वाले उसके लिए सबकुछ करने वाले माता-पिता के लिए बेटे के दिल में भी बहुत प्यार था. मगर इस सच्चाई को जानने के बाद उसका प्रेम श्रद्धा में तब्दील हो गया. फ़िल्मी लगने वाली ये कहानी कोई कहानी नहीं बल्कि सच्चाई है. आगरा की. यह कहानी राजकीय शिशु एवं बाल गृह से दो दशक पहले शुरू होती है. पशिमी उत्तर प्रदेश के एक जिले के रहने वाले शिक्षक और उनकी पत्नी की कोई औलाद नहीं थी. इसलिए इस कपल ने अपने सूनेपन को दूर करने के लिए एक बच्चे को गोद लें लिया.
इन दोनों ने आगरा के राजकीय एवं शिशु गृह से एक बच्चे को गोद लिया. वह उसे अपने घर लें आए और उसे बहुत प्यार दिया. मगर ये प्यार ज्यादा दिन तक नहीं मिला. मां की गोद मिले एक साल ही हुआ था कि उसकी माँ भी चल बसी. इसके बाद उस शिक्षक पिता ने बच्चे की देखभाल करने के लिए दूसरी शादी कर ली. दोनों ने उसे खूब प्यार से बड़ा किया. अंग्रेजी मीडियम के स्कूल में एडमिशन भी कराया. बेटे ने भी कभी पिता को मायूस नहीं किया. बेटे ने भी पढ़ाई में हमेशा अच्छा स्कोर किया. उसने इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी पूरी की. आज वह बेटा साफ्टवेयर इंजीनियर है. इसके साथ ही उसकी पत्नी भी एक साफ्टवेयर इंजीनियर है.
इस साफ्टवेयर इंजीनियर को गोद लेने वाले पिता ने जब बेटे को ये सच्चाई बताई तो उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे. साथ ही उसे ये भी शिकायत थी कि उन्होंने उसे इस सच्चाई को क्यों बताया. उसके माता-पिता और भगवान तो वही हैं. यह साफ्टवेयर इंजीनियर अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहा था, मगर पिता द्वारा बताए गए सच ने उसकी जिंदगी को बदल कर रख दिया था. इसके बाद उस साफ्टवेयर इंजीनियर ने आगरा के राजकीय शिशु गृ़ह का नंबर पता किया. इसके साथ ही उसने तत्कालीन अधीक्षिका से भी कांटेक्ट किया. उसने शिशु गृह को धन्यवाद दिया कि उसे इतने अच्छे माता-पिता दिए. साफ्टवेयर इंजीनियर ने राजकीय शिशु एवं बाल गृह की अधीक्षिका से कहा कि वह यहाँ मौजदू बच्चों के लिए कुछ खास करना चाहता है. ताकि उन्हें भी एक पहचान मिल सके.
इस मामले में राजकीय शिशु एवं बाल गृह की तत्कालीन अधीक्षिका उर्मिला गुप्ता जो कि अब इस समय राजकीय किशोरी गृह कानपुर की अधीक्षिका बन चुकी है. उन्होंने बताया कि शिक्षक पति और पत्नी द्वारा दो दशक पहले एक बच्चे को गोद लिया था. जो अब पढ़-लिखकर साफ्टवेयर इंजीनियर बन चुका है. वह अब बाल गृह के बच्चों के लिए कुछ करना चाहता है.