सोनू सूद की मंशा पर कोर्ट को हुआ शक, कहा मदद करने के लिए इतनी दवाएं कहां से आई
कोरोना काल में पिछले एक साल से लोगों की मदद कर रहे सोनू सूद पर भी मुश्किल के बादल मंडरा रहे है. दरअसल अभी तक ये किसी को पता नहीं चल पाया है कि सोनू सूद और कई अन्य सितारे व नेता रेमडिसिविर जैसी दवाएं कहां से हासिल कर के लोगों को दे रहे रहे है. इस मामले में सोनू का कहना था कि हम तो सिर्फ माध्यम है. वहीं दवा बनाने वाली कंपनियों का कहना है कि वे सरकार को ही दवाएं उपलब्ध करा रही है ना कि किसी और को.
सरकार ने ये जानकारी शुक्रवार को बॉम्बे हाइकोर्ट को दी. हाइकोर्ट ने मामले में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि दोनों के बयानों में विभिन्नता है. इसलिए जांच अच्छे तरीके से हो. कोर्ट के जज की बेंच ने कहा है कि मैन्यूफैक्चरर्स ने केंद्र को जानकारी दी है कि वे सिर्फ सरकार को ही दवाएं देते हैं. दूसरी ओर ड्रग इंस्पेक्टर के नोटिस पर सोनू सूद फाउंडेशन ने अपना मत रखते हुए कहा है कि उन्होंने मैन्यूफैक्चरर्स से आग्रह किया था और उन्होंने दवाएं दे दीं.
इस मसले में अभिनेता सोनू सूद का कहना है कि उन्होंने जुबिलेंट, सिप्रा, होरेटो कंपनियों से दवा के लिए गुजारिश की थी और उन्हें दवाएं मिल गई थी. वहीं केंद्र सरकार का कहना है कि कंपनियों ने सिर्फ सरकार के द्वारा निर्धारित एजेंसियों को ही दवाएं दी थी. केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए एडीशनल सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ऐसा लगता है कि दवा देने का काम मैन्यूफैक्चरर्स ने नहीं किया है. या फिर इस काम में सब-कॉन्ट्रैक्टर शामिल रहे हों. इस मामले में सरकार को जाँच करने की जरुरत है.
अब इस मामले में सरकार को अदालत ने एक मौखिक आदेश दिया है कि वह जांच को जारी रखे. कोर्ट ने कहा कि उसे इस बात की चिंता है कि कहीं नकली दवाएं न बाँट दी जाये. दवा बांटने में कहीं असमानता न हो जाए. कोर्ट ने ये भी कहा कि भले ही आप जनता की भलाई के लिए काम कर रहे हो लेकिन इसके लिए कानून के नियम तो नहीं तोड़े जा सकते. इस मामले में एडवोकेट जनरल आशुतोष कुम्भकोनी ने जानकारी देते हुए कहा था कि सोनू सूद और एनसीपी एमएलए जीशान सिद्दीकी को ड्रग इंस्पेक्टर ने नोटिस भेजा था. इस नोटिस का जवाब दोनों ने ये दिया था कि उन लोगों ने न तो रेमडिसिवर इंजेक्शन खरीदे हैं न उन्हें अपने पास इकट्ठा किया. वह सिर्फ लोगों की सेवा करने के माध्यम है. हालांकि कुछ मामलों में उन्होंने दवा के लिए पैसे जरूर दिए है.
दवा के भुगतान पर , कोर्ट ने सवाल किया कि यह भुगतान किसको और किसके द्वारा किया गया. साथ ही पूछा कि क्या ये जवाब स्वीकार करने लायक है. क्या अफसर इस तरह के बयानों पर भरोसा जता सकते है. अब इस मामले में सोनू सूद फाउंडेशन ने अपना जवाब भी दिया है. उन्होंने कहा है कि उसने न तो कभी दवा खरीदी न कभी जमा की. हमारे पास पूरा एक सिस्टम है. हम सोशल मीडिया से मदद मांगते है. जो मांग सही लगती है उसके लिए राजनीतिक नेताओं, पास के अस्पतालों से गुहार करते हैं. या फिर दवा बनाने वाली कंपनी से कहते है कि अस्पताल की फार्मेसी के जरिए दवा का इंतजाम किया जाये. हमने इंदौर, मुंबई, पंजाब समेत देश में कई जगह मदद की है.