मां के निधन के बावजूद रातभर मरीजों की सेवा में लगा रहा एंबुलेंस ड्राइवर, बोला- मां को खुशी होगी
कोरोना महामारी के दौर में लोगों को जितनी मदद मिले उतनी ही कम है। एक छोटी सी हेल्प भी कई लोगों की जान बचा सकती है। यही वजह है कि हेल्थ विभाग के फ्रंट लाइन वर्कर्स इस महामारी के दौर में भी अपनी जान पर खेल कोरोना मरीजों की सेवा में लगे हुए हैं। इसका एक सबसे अच्छा उदाहरण उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में देखने को मिला है। यहां एक एंबुलेंस ड्राइवर को मोबाईल पर मां के निधन की खबर मिली तो भी वह पूरी रात मरीजों को अस्पताल ले जाने का काम करता रहा।
मानवता की नई मिसाल पेश करने वाले इस एंबुलेंस ड्राइवर का नाम प्रभात यादव है। प्रभात कोरोना काल में कई मरीजों को रोज अस्पताल पहुंचाने का काम कर रहे हैं। 15 मई को भी वह अपने काम में लगे थे, तभी उन्हें मोबाईल पर एक कॉल आया। यह कॉल उनकी मां के निधन की खबर का था। जब यह कॉल आया तब प्रभात एक मरीज को अस्पताल ले जा रहे थे। ऐसे में घर जाने की बजाय वे पूरी रात एंबुलेंस चला अपनी ड्यूटी निभाते रहे। उस रात उन्होंने लगभग 15 मरीजों को समय पर अस्पताल पहुंचाया।
प्रभात ने रातभर ड्यूटी की और फिर सुबह 200 किमी दूर अपने गांव के लिए निकल गए जहां उनकी मां का अतिंम संस्कार होना था। प्रभात ने इस घटना के बारे में मीडिया से कहा कि एक एंबुलेंस ड्राइवर हर रोज कई मरीजों को अस्पताल ले जाने का काम करता है। यदि हम ही दुखी होकर बैठ गए तो उन परिवारों का क्या होगा जिन्हें हमारी सहायता की जरूरत है। ऐसी मुश्किल की घड़ी में यदि मैं अपनी मां के निधन का शोक मनाने की बजाय कुछ मरीजों की ज़िंदगी बचा सकूं तो मेरी मां को ज्यादा खुशी होगी।
इसके पहले बीते वर्ष पिता की मौत के समय भी प्रभात ने ऐसा ही किया था। वे पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने के बाद तुरंत ड्यूटी पर लौट आए थे। वे मथुरा में बीते 9 वर्षों से एंबुलेंस चला रहे हैं। मथुरा में 102 और 108 एंबुलेंस सेवाओं के प्रोग्राम मैनेजर अजय सिंह बताते हैं कि प्रभात ने जब मां का अंतिम संस्कार किया तो मैंने उसे परिवार के साथ कुछ दिन बिताने और आराम करने के लिए कहा था। हालांकि उसने छुट्टी लेने से इनकार कर दिया। प्रभात बोला कि सर मैं छुट्टी तभी लूंगा जब कोरोना समाप्त हो जाएगा।
यह स्टोरी जब सोशल मीडिया पर आई तो हर कोई प्रभात की तारीफ करने लगा।