अध्यात्म

25 मई को आ रही है नृसिंह जयंती, इनकी पूजा करने से मिलती है हर कष्ट से मुक्ति, पढ़ें पौराणिक कथा

वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नृसिंह जयंती मनाई जाती है। इस बार ये जयंती 25 मई को आ रही है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु जी के छठें अवतार नृसिंह का जन्म हुआ था। नृसिंह जयंती के दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव जी की पूजा भी की जाती है। कहा जाता है कि इनकी पूजा करने से नृसिंह भगवान प्रसन्न हो जाते हैं और हर कष्ट से रक्षा करते हैं।

नृसिंह जयंती शुभ मुहूर्त

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वैशाख शुक्ल पक्ष चतुर्दशी का आरंभ 25 मई 2021 को सुबह 12 बजकर 30 मिनट से हो जाएगा। जो कि 25 मई 2021 को रात्रि 08 बजकर 35 मिनट पर खत्म होगा। ब्रह्म मुहूर्त 04 बजकर 10 मिनट से 04 बजकर 57 मिनट तक है। अभिजीत काल सुबह 11 बजकर 57 मिनट से दोपहर 12 बजकर 50 मिनट तक है और अमृत काल- रात 08 बजकर 27 मिनट से 09 बजकर 51 मिनट तक है।

पूजा विधि

इस दिन स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। भगवान का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें। उसके बाद पूजा के स्थान पर गोबर लीपे और कलश स्थापित करके अष्टदल कमल बनाएं। अष्टदल पर सिंह, भगवान नृसिंह और लक्ष्मी जी की मूर्ति स्थापित करें।
इसके बाद भगवान नृसिंह और मां लक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें और इनके जन्म कथा को पढ़ें। दूसरे दिन प्रातःकाल स्नान करके पूजन करें और ब्राह्मण को भोजन कराएं। फिर स्वयं व्रत का पारण करें।

नृसिंह जयंती की व्रत कथा

प्राचीन काल में कश्यप नामक एक राजा हुआ करता था और उसके दो पुत्र थे। जिनमें से एक का नाम हरिण्याक्ष तथा दूसरे का हिरण्यकशिपु था। हिरण्याक्ष का वध भगवान श्री विष्णु के हाथों हुआ था। जिसके कारण हिरण्यकशिपु भगवान श्री विष्णु को पसंद नहीं करता था। भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए हिरण्यकशिपु ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न किया। ब्रह्माजी ने उसे ‘अजेय’ होने का वरदान दिया। ये वरदान पाकर हिरण्यकशिपु ने लोगों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया और अपने राज्य में विष्णु पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद विष्णु जी का भक्त था और सदा इनकी पूजा में लीन रहता था।

हिरण्यकशिपु ने कई बार प्रह्लाद को विष्णु जी की पूजा करने से रोका। लेकिन असफल रहा। ऐसे में हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने की साजिश रचना शुरू कर दी। एक दिन प्रहलाद को हिरण्यकशिपु ने दरबार में बुलाया और से कहा कि वो ‘मूर्ख! तू बड़ा उद्दंड हो गया है। तूने किसके बल पर मेरी आज्ञा के विरुद्ध काम किया है?’  प्रहलाद ने कहा- ‘पिताजी! ब्रह्मा से लेकर तिनके तक सब छोटे-बड़े, चर-अचर जीवों को भगवान ने ही अपने वश में कर रखा है।

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प्रहलाद की बात को सुनकर हिरण्यकशिपु को ओर क्रोध आ गया और उसने प्रहलाद से कहा यदि तेरा भगवान हर जगह है। तो बता इस खंभे में क्यों नहीं दिखता?’ ये कहकर तलवार लेकर उसने अपने पुत्र को मारने की कोशिश की। तभी खंभे के भीतर से नृसिंह भगवान प्रकट हुए। उनका आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य के रूप में था। नृसिंह भगवान ने हिरण्यकशिपु को अपने जांघों पर लेते हुए उसके सीने को अपने नाखूनों से फाड़ दिया और उसका वध कर अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की। जिस दिन नृसिंह भगवान प्रकट हुआ थे उस दिन वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी थी। तभी से इस दिन को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है

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नृसिंह भगवान विष्णु जी के 12 अवतारों में से छठें अवतार हैं। नृसिंह की पूजा करने से कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है, साथ ही शत्रुओं पर विजय की प्राप्ति होती है।

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