अध्यात्म

चमत्कारी है रुद्राष्टक स्तोत्र पाठ, शाम के समय इसे पढ़ने से बन जाती है भोलेनाथ की कृपा

रुद्राष्टक स्तोत्र : सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है और इस दिन इनकी पूजा करना बेहद ही लाभकारी माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन की गई पूजा का दोगुना लाभ मिलता है और पूजा सफल रहती है। सोमवार को मात्र शिवलिंग पर जल अर्पित करने से भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं। अधिकतर लोग सुबह के समय ही मंदिर में जाकर शिव की पूजा करते हैं। ऐसी धारणा है कि शिव की पूजा के लिए सुबह का समय सबसे उत्तम होता है। हालांकि शास्त्रों के अनुसार महादेव की आराधना किसी भी वक्त की जा सकती है।

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार शिव की आराधना वैसे किसी भी समय की जा सकती है। लेकिन शाम के समय की गई इनकी पूजा अधिक लाभकारी होती है। भोलेनाथ को खुश करने के लिए इनकी पूजा शाम के समय करें और साथ में ही इनसे जुड़ा स्तोत्र भी पढ़ें। स्तोत्र पढ़ने से भोलेनाथ हर कामना को जरूर पूरा कर देते हैं।

रुद्राष्टक स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करने से जीवन के दुखों को भोलेनाथ दूर कर देते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ये स्तोत्र पढ़कर कोई भी शिव जी को प्रसन्न कर सकता है।

रुद्राष्टक स्तोत्र पढ़ने से जुड़े नियम

इस स्त्रोत को पढ़ने से कुछ नियम है, जो कि इस प्रकार हैं।

  • हमेशा स्नान करने के बाद ही रुद्राष्टक स्तोत्र का पाठ करें।
  • ये पाठ पढ़ने से पहले शिव जी की पूजा करें और उसके बाद इस पाठ को पढ़ना शुरू करें।
  • इस पाठ को केवल शाम के समय ही पढ़ा जाता है। इसलिए आप इसे शाम के समय पांच बजे के बाद ही पढ़ें।
  • आप इस पाठ को मंदिर में या फिर घर में पढ़ सकते हैं।
  • पाठ को पढ़ते समय सामने शिव जी की कोई तस्वीर चौकी पर रख दें और एक दीपक जला दें। उसके बाद ही इस पाठ को पढ़ना शुरू करें।
  • पाठ करते समय इस बात का ध्यान रखें की हर शब्द का उच्चारण एकदम सही तरीके से हो। अगर गलत उच्चारण के साथ आप ये पाठ पढ़ते हैं, तो इसे पढ़ने का लाभ नहीं मिलता है।
  • ये पाठ पढ़ने के बाद मन में अपनी कामना बोलें और शिव का नाम लें।

रुद्राष्टक स्तोत्र पाठ –

नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्‌ ।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्‌ ॥

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्‌ ।

करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्‌ ॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्‌ ।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्‌ ।

मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्‌ ।

त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम्‌ ॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।

चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्‌ ।

न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम्‌ सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्‌ ।

जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥

रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये

ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।

॥ इति श्रीगोस्वामीतुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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