अध्यात्म

सिर्फ सुबह शाम नहीं दिन में इतनी बार करनी चाहिए पूजा, जाने मंदिर से जुड़े नियम

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार हमे रोजाना भगवान की पूजा पाठ करना चाहिए। इससे घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमे दिन में कितनी बार और किस तरह से पूजा करनी चाहिए? इसके अलावा घर के मंदिर में आप जो मूर्तियां रखते हैं उन्हें लेकर भी कुछ नियम कायदे होते हैं। आज हम इन्हीं के बारे में विस्तार से बात करेंगे।

कब और कितनी बार करें पूजा?

शास्त्रों के अनुसार हमे दिन में पांच बार भगवान की पूजा करनी चाहिए। पहली पूजा ब्रह्म मुहूर्त में होनी चाहिए। दूसरी पूजा सूर्योदय होने के पश्चात मतलब 9 से 10 बजे के बीच करनी चाहिए। इसके बाद 12 से 1 के बीच तीसरी पूजा होनी चाहिए। यह पूजा करने के बाद आप शाम 4 बजे तक भगवान के पट बंद कर दें। अब शाम को आरती और रात को भगवान को सुलाने के पूर्व उनकी पूजा करें।

भगवान की आरती करने का सही तरीका

भगवान कि आरती सर्वप्रथम उनके चरणों से शुरू करनी चाहिए। चरणों की 4 बार आरती करें। अब भगवान की नाभि की दो बार और मुख की तीन बार आरती करें। इस प्रकार आपको भगवान के सभी अंगों कि काम से कम सात बार आरती करना चाहिए।

घर में मूर्ति रखते समय रखें इन बातों का ध्यान

वास्तु शास्त्र की माने तो घर में भगवान की मूर्तियों को रखने के कुछ कड़े नियम होते हैं। इन नियमों का पालन करने से घर में सुख, शांति और संपन्नता बनी रहती है। ये नियम मंदिर में मूर्तियों की संख्या और साइज को लेकर हैं।

1. घर के मंदिर में जितनी भी मूर्तियाँ हैं वे 1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच की हाइट तक होनी चाहिए।

2. मंदिर में खड़ी मुद्रा वाले गणेश जी, माता सरस्वती, देवी लक्ष्मी इत्यादि की मूर्तियां या चित्र नहीं रखने चाहिए।

3. मंदिर में किसी भी देवी या देवता की एक ही प्रतिमा अथवा चित्र होना चाहिए। यदि आप एक से अधिक रखना चाहते हैं तो इनकी संख्या 3 होना चाहिए। शिवलिंग या शालिग्राम भी मंदिर में दो से अधिक नहीं रखना चाहिए।

4. मंदिर में गिफ्ट में मिली भगवान की मूर्ति या तस्वीर नहीं रखना चाहिए। यहां उन्हीं देवी देवताओं को रखें जो आपके द्वारा स्वयं प्रतिष्ठित किए गए हो।

5. मंदिर में खंडित मूर्तियां नहीं रखनी चाहिए। यदि यह मूर्ति मंदिर में रखे हुए ही खंडित हो जाए तो उसे वहां से हटा दें और दूसरी मूर्ति रख लें। खंडीर मूर्ति को आप किसी को दान कर सकते हैं या पवित्र नदी में विसर्जित भी कर सकते हैं।

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