मोक्ष प्राप्ति के लिए भीष्म अष्टमी के दिन जरूर रखें व्रत, पढ़ें इससे जुड़ी पौराणिक कथा
हर साल भीष्म अष्टमी माघ शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को आती है। इस दिन को बेहद ही शुभ माना गया है और कहा जाता है कि जो लोग भीष्म अष्टमी का व्रत रखते उन्हें भीष्म पितामह जैसी संतान मिलती है। ग्रंथों के अनुसार इस दिन ही भीष्म पितामह ने अपने प्राणों का त्याग किया था। इस साल भीष्म अष्टमी 19 फरवरी को आ रही है। भीष्म अष्टमी 19 फरवरी, शुक्रवार को सुबह 10 बजकर 58 मिनट से शुरू हो जाएगी। जो कि 20 फरवरी, शनिवार दोपहर 01 बजकर 31 मिनट तक रहेगी।
भीष्म अष्टमी व्रत कथा
भीष्म अष्टमी व्रत से पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार गंगा और राजा शांतनु के आठवें पुत्र भीष्म देव थे। इनको जन्म के समय देवव्रत नाम दिया गया था। इनका पालन इनके पिता शांतनु द्वारा किया गया था। वहीं जब ये बड़े हुए तो इनके पिता शांतनु का दिल एक कन्या पर आ गया था। जिसका नाम सत्यवती था। शांतनु सत्यवती से शादी करना चाहते थे। लेकिन सत्यवती के पिता ने शांतुन के सामने एक शर्त रखी। सत्यवती के पिता ने शांतुन से कहा कि वो तभी अपनी बेटी का विवाह उनसे करेंगे। अगर वो उनकी बेटी की संतान को हस्तिनापुर राज्य का राजा बनाने का वादा करते हैं।
इस शर्त को राजा शांतनु ने स्वीकार नहीं किया। क्योंकि ये अपने बड़े पुत्र को ही हस्तिनापुर राज्य का राजा बनाना चाहते थे। लेकिन अपने पिता के दुख को जानने के बाद भीष्म देव ने जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन करने की प्रतिज्ञा ली और साथ में ही सत्यवती के पिता से वादा किया कि वो कभी भी राज्य.के राजा नहीं बनेंगे। इनकी इस प्रतिज्ञा को भीष्म प्रतिज्ञा कहा जाता है।
ये सब देखकर, राजा शांतनु भीष्म से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया। महाभारत युद्ध इन्होंने कौरवों के पक्ष से लड़ा था। इन्हें हराने के लिए अर्जुन ने शिखंडी का सहारा लिया था। दरअसल भीष्म पितामह ने शिखंडी के साथ युद्ध नहीं करने और उसके खिलाफ किसी भी प्रकार का हथियार न चलाने का संकल्प लिया था। इसलिए अर्जुन ने शिखंडी के पीछे खड़े होकर भीष्म पर हमला किया था। इस हमले में भीष्म पितामह घायल हो गए थे और बाणों की शय्या पर गिर पड़े थे। वहीं माघ शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को इन्होंने अपने प्राण त्याग दिए थे। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन जो व्रत रखते हैं उन्हें वह मोक्ष प्राप्ति होती है।
भीष्म अष्टमी व्रत विधि
भीष्म अष्टमी के दिन पवित्र नदियों में स्नान करना शुभ फल देता है। इसलिए हो सके तो इस दिन सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करें। आप चाहें तो नहाने के पानी में गंगा जल भी मिला सकते हैं।
जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है। अगर वो इस दिन तर्पण करते हैं, तो उनका पितृ दोष खत्म हो जाता है। पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए स्नान के बाद हाथ में तिल और जल लें और दक्षिणाभिमुख होकर तर्पण करें। तर्पण के समय इस मंत्र का जाप करें-
वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृत्यप्रवराय च।
गंगापुत्राय भीष्माय सर्वदा ब्रह्मचारिणे।।
भीष्म: शान्तनवो वीर: सत्यवादी जितेन्द्रिय:।
आभिरभिद्रवाप्नोतु पुत्रपौत्रोचितां क्रियाम्।।
विधि पूर्वक तर्पण करने के बाद पुन: जनेऊ को बाएं कंधे पर ले लें और गंगापुत्र भीष्म को अर्घ्य दें।
इस दिन संतान प्राप्ति के लिए व्रत भी रखा जाता है। जिन दंपत्तियों को संतान नहीं है वो इस दिन व्रत रखने का संकल्प धारण करें। उसके बाद ये व्रत रखें और रात को ये व्रत तोड़ दें। मान्यता है कि इस दिन भीष्म पितामह के दिव्य आशीर्वाद से संतानविहिन दंपत्तियों को अच्छे चरित्र वाली संतान की प्राप्ति होती है। इसलिए संतान सुख पाने के लिए आप ये व्रत जरूर करें।
भीष्म अष्टमी के दिन दान करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है और पापों से मुक्ति मिल जाती है। स्नान करने के बाद आप आटे, चावल, दाल का दान करें।