25 जुलाई 2016 को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अपने कार्यकाल का चौथा वर्ष पूरा कर रहे हैं। वैसे तो भारत में राष्ट्रपति का पद समारोही होता है। ताकत सरकार के प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री के हाथों होती है। लेकिन भारत में राष्ट्रपति औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री को नियुक्त करता है और पद और गोपनीयता की शपथ दिलाता है। अब आप ये सोच रहे होंगे कि हम आपको ये सब क्यों बता रहे हैं तो आपको बता दें कि वर्तमान में देश के राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी का अगले साल यानि 2017 में कार्यकाल खत्म हो रहा है और साथ ही नए राष्ट्रपति की कवायद शुरू हो गई है।
अधिक संभावना है कि भाजपा राष्ट्रपति पद के लिए लालकृष्ण आडवाणी को राजपथ भेज सकती है। इधर आडवाणी पीएम मोदी सरकार की शान में कसीदे पढ़ते नज़र आ रहे हैं। कुछ दिन पहले ही वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने केंद्र की भाजपा सरकार के दो वर्ष के कार्यकाल की जमकर प्रशंसा की और कहा कि देश की जनता ने जिस उम्मीद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में विश्वास व्यक्त किया था, वह उस पर खरा उतर रही है।
मोदी और आडवाणी के रिश्तों का फ्लैशबैक
ये वही आडवाणी हैं जिन्होंने 1984 में दो सीटों पर सिमट गई भारतीय जनता पार्टी को धरातल से निकाल कर पहले भारतीय राजनीति के केंद्र बिंदु में पहुंचाया और फिर 1998 में पहली बार सत्ता का स्वाद चखवाया। उस समय जो बीज उन्होंने बोए थे, कायदे से उसकी फसल काटने का समय अब आ गया है। आपको बता दें कि पार्टी के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह ने खुलासा किया था कि आडवाणी की वजह से पार्टी को कई बार नुकसान उठाना पड़ा है। आपको यह भी बता दें कि गोधरा कांड के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी चाहते थे कि मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी इस्तीफा दे दें, राजधर्म का पालन करें परंतु आडवाणी ही थे, जिन्होंने नैतिकता को दरकिनार कर मोदी को बचाया और कुर्सी पर बनाए रखा।
ये भी गौर करने वाली बात है कि आडवाणी ने 1995 में वाजपेयी के लिए गद्दी छोड़ी क्योंकि पाकिस्तान जा कर जिन्ना की शान में जो उन्होंने बात की थी वो पाकिस्तानियों को ख़ुश करने के लिए नहीं थी, वो भारत में अपनी एक उदार छवि बनाना चाहते थे। लेकिन ऐसा करके वो ख़ुद अपने जाल में फंस गए। उन्होंने गुजरात दंगों के बाद जिन मोदी को बचाया उन्हीं मोदी ने ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया। कुछ अरसे से बीजेपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बढ़ते असर के साथ-साथ आडवाणी के साथ उनके खराब होते रिश्ते भी चर्चा में हैं। हालांकि 2002 में गोवा में आडवाणी ने ही बीजेपी से मोदी का संभावित निष्कासन टलवाया था। लेकिन 14 साल के वक्त में दोनों के रिश्ते कैसे बदल गए?
मोदी आडवाणी को मानते हैं अपना गुरु
बहुत बार मंच से पीएम मोदी को ये कहते सुना गया है कि वो आडवाणी को अपना गुरु मानते हैं और कुछ तस्वीरें भी इस बात की तस्दीक करती हैं। अब उन्हें राजपथ भेज कर गुरुदक्षिणा देना चाहते हैं या उन अटकलों पर विराम लगाना चाहते हैं कि इन दोनों में आज भी दूरियां बहुत हैं, खैर वक़ अभी काफी है लेकिन मोदी के इस फैसले से पार्टी सहित विरोधी खेमे में उनका कद ज़रूर बढ़ जायेगा।