रुद्रावतार लेकर भगवान शंकर ने रावण के वध में की थी मदद,जबकि रावण था शिव का सबसे बड़ा भक्त,क्यों?
गोस्वामी तुलसीदास के बारे में किसी को कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है। वह महान विद्वान थे और उन्होंने राम चरित मानस की रचना की थी। उसी राम चरित मानस में उन्होंने लिखा है, ‘जेहि शरीर रति राम सों सोई आदरहिं सुजान, रुद्रदेह तजि नेह बस बानर भे हनुमान’ भगवान शंकर ने एक बार माता सती से कहा कि वह जिस प्रभु राम की रात-दिन आराधना करते हैं, वह स्वयं त्रेतायुग में पृथ्वी पर इंसान के रूप में जन्म ले रहे हैं।
सभी देवता अवतरित रहे हैं किसी ना किसी रूप में:
राम के इंसानी रुपी की सेवा करने के लिए स्वर्ग के सभी देवता किसी ना किसी रूप में पृथ्वी पर प्रकट होकर उनकी सेवा करेंगे। मैंने भी प्रभु राम की सेवा करने के लिए और उनकी लीलाओं का आनंद लेने के लिए माता अंजना के गर्भ से हनुमान के रूप में पृथ्वी पर अवतरित होने का निश्चय लिया है।
रावण ने खुश करने के लिए कर दिए थे अपने 10 सिर अर्पित:
सती यह बात सुनकर थोड़ा चौकते हुए बोलीं कि भगवान राम का अवतार तो रावण का वध करने के लिए हो रहा है और रावण आपका सबसे बड़ा भक्त है। उसने आपको प्रसन्न करने के लिए अपने 10 सिर काटकर आपके सामने अर्पित कर दिए थे। ऐसे में आप उसे मारने में कैसे भगवान राम की मदद कर सकते हैं।
रावण ने की थी 11वें अंश की अवहेलना:
यह सुनकर भगवान शंकर ने माता सती को समझाते हुए कहा कि रावण ने मेरे 10 अंशों की भक्ति की है और उसने मेरे 11वें अंश की अवहेलना की है। उसने मेरे 11वें अंश को बिना पूजे ही छोड़ दिया। मैं प्रभु राम की सेवा अपने उसी अंश से करूंगा। इसके बाद ही भगवन शिव ने हनुमान के रूप में अवतार लेकर प्रभु राम की सेवा की और अपनी भक्ति से भगवान राम के हृदय में अपने लिए एक अलग स्थान बनाया।