इस दुनिया में होते हैं 4 प्रकार के भक्त, जो अपनी जरूरत के हिसाब से करते हैं भक्ति
भगवान कृष्ण जी विष्णु जी के अवतर हैं और इन्होंने धरती पर जन्म लिया था। महाभारत के दौरान कृष्ण जी ने कई सारे उपदेश दिए थे और इन उपदेशों के जरिए मनुष्य को सही गलत के बारे में बताया था। गीता के एक उपदेश में कृष्ण जी ने चार प्रकार के भक्तों का जिक्र भी किया है। कृष्ण जी ने इस उपदेश में बताया है कि इस संसार में चार प्रकार के भक्त होते हैं। जो कि अर्थार्थी भक्त, आर्त भक्त, जिज्ञासु भक्त और ज्ञानी भक्त के नाम से जाने जाते हैं।
चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन। आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ।।
इस श्लोक में कृष्ण जी ने इन भक्तों का उल्लेख किया है। जिसकी जानकारी इस प्रकार है –
अर्थार्थी भक्त
अर्थार्थी भक्त को कृष्ण जी ने सबसे निम्न श्रेणी के भक्त माना है। कृष्ण जी के अनुसार ये भक्त वो भक्त होते हैं जो कि ईश्वर को केवल लोभ यानि धन-वैभव, सुख-समृद्धि आदि के लिए याद करते हैं। ये लोग ईश्वर का स्मरण मतलब के भाव से करते हैं। ऐसे लोगों के लिए भगवान से ज्यादा भौतिक सुख जरूरी होता है। इस तरह से भक्तों को अर्थार्थी भक्त कहा जाता है।
आर्त भक्त
कृष्ण जी ने आर्त भक्तों का जिक्र करते हुए कहा है कि इस प्रकार के भक्त भगवान को तभी याद करते हैं, जब ये दुख और कष्टों में होते हैं। इस प्रकार के भक्त जीवन में दुख या कष्ट आने पर भगवान की भक्ती करने लग जाते हैं। ताकि भगवान उन्हें बचा लें।
जिज्ञासु भक्त
जिज्ञासु भक्त ईश्वर की खोज के लिए भक्ती करते हैं। ऐसे भक्त भगवान को अपनी निजी समस्या के लिए याद नहीं करते हैं। ये भक्त संसार में फैले हुए अनित्य को देखकर ईश्वर की खोज में लगते हैं।
ज्ञानी भक्त
चौथे प्रकार के भक्त ज्ञानी होते हैं। इस प्रकार के भक्त केवल इश्वेर की चाह में ही भक्ती करते हैं। ये सदा पूजा में लीन रहते हैं। इस प्रकार के भक्त भगवान से किसी भी प्रकार की कोई इच्छा नहीं रखते हैं। ये बस ईश्वर की कृपा पाना चाहते हैं।