17 अक्टूबर से से शुरू हो रहे हैं नवरात्रि, जानें घटस्थापना का महत्व व शुभ मुहूर्त
17 अक्टूबर से शरद नवरात्रि शुरू हो रहे हैं। शरद नवरात्रि को धूमधाम से पूरे देश में मनाया जाता है और घर में माता की चौकी रखी जाती है। नौ दिनों तक मां की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि जो लोग नौ दिनों तक मां की पूजा और व्रत रखते हैं, उनपर मां की कृपा बन जाती है। इसलिए मां की कृपा पाने के लिए आप शरद नवरात्रि के दौरान मां की चौकी जरूर रखें और रोज इनकी पूजा करें। हो सके तो व्रत भी करें।
शरद नवरात्रि 2020
17 अक्टूबर को पहला शरद नवरात्रि है और पहले नवरात्रि में ही माता की चौकी की स्थापना की जाती है। आखिरी नवरात्रि 26 अक्टूबर को है। दरअसल इस बार अधिकमास लगने के कारण नवरात्रि एक महीने की देरी से शुरू हुए हैं। हर साल पितृपक्ष समाप्ति होते ही नवरात्रि शुरू हो जाती है, लेकिन इस बार अधिक मास होने के कारण नवरात्रि देरी से आए हैं।
घटस्थापना शुभ मुहूर्त
पहले नवरात्रि के दिन घटस्थापना की जाती है। घटस्थापना शुभ मुहूर्त के दौरान ही करनी चाहिए। घटस्थापना का शुभ मुहूर्त 17 अक्टूबर 2020 को सुबह 06:23:22 से 10:11:54 तक रहेगा। यानी घटस्थापना की अवधि 3 घंटे 48 मिनट तक की होगी। इस अवधि के दौरान ही आप घटस्थापना करें।
इस तरह से करें घटस्थापना
घटस्थापना को कई लोग कलश स्थापना या मां की चौकी रखना भी कहते हैं। नवरात्रि के दौरान कलश का काफी महत्व होता है, इसलिए नवरात्रि के पहले दिन कलश पूजा घर में जरूर रखा जाता है। माना जाता कि किसी भी शुभ कार्य से पहले कलश स्थापना जरूर करनी चाहिए। ऐसा करने से कार्य सफल होता है।
- घटस्थापना करने से पहले खुद को अच्छे से स्वच्छ कर लें। उसके बाद पूजा घर की सफाई करें। पूजा घर में एक चौकी रख दें। इसपर आप लाल रंग का वस्त्र बिछा दें। अब चौकी पर नवग्रहों को बना दें। नवग्रहों को आप हल्दी और चावल की मदद से बना सकते हैं।
- नवग्रह बनाने के बाद चौकी के पास एक पात्र रख दें। इस पात्र के अंदर मिट्टी डाल दें और ऊपर से जौं डाल दें।
- अब एक कलश को मिट्टी के पात्र के अंदर रख दें। इस कलश के अंदर जल भर दें। अब इसके अंदर आम के पत्ते डाल दें और नारियल रख दें।
- कलश की स्थापना करने के बाद चौकी पर मां की मूर्ति रखें दें। मूर्ति के सामने एक घी का दीपक जला दें।
- मां को फूलों की माला पहनाएं और फल चढ़ा दें। अब आप पूजा करने का संकल्प लें। संकल्प करते हुए हाथ में जल लें और मन के अंदर अपनी मनोकामना बोल दें। साथ में मां से प्रार्थन करें कि वो आपकी पूजा को स्वीकार करें।
- संकल्प लेने के बाद जल को चौकी के पास धरती पर छोड़ दें। अब आप पूजा शुरू करें और दूर्गा मां का पाठ करें। आप चाहें तो दुर्गा स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं।
- दुर्गा स्तोत्र का पाठ पूरा करने के बाद खड़े होकर मां की आरती करें। इसी प्रकार से शाम को भी आप पूजा करें।
- नौ दिनों तक मां की ऐसे ही मन लगाकर पूजा करते रहें। वहीं आखिर दिन आप कन्या पूजन करें और कन्याओं को भोजन करवाएं। हो सके तो आखिरी नवरात्रि के दिन घर में हवन भी जरूर करवा लें।
मां के इन नौ रूपों की की जाती है पूजा
नवरात्रि के हर दिन मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है। मां के इन नौ रूपों के नाम इस प्रकार हैं
- शैलपुत्री
- ब्रह्मचारिणी
- चंद्रघंटा
- कूष्माण्डा
- स्कंदमाता
- कात्यायनी
- कालरात्रि
- महागौरी
- सिद्धिदात्री
ना करें ये काम
- नवरात्रि के नौ दिन आप प्याज व लहसुन का सेवन ना करें।
- घर में चौकी रखने के बाद केवल जमीन पर ही सोएं।
- कन्याओं का अपमान ना करें।
- शराब का सेवन करने से बचें
दुर्गा स्तोत्र का पाठ
त्वमेवसर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी। त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥
कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम्। परब्रह्मस्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी॥
तेज:स्वरूपा परमा भक्त ानुग्रहविग्रहा। सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्परा॥
सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया। सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमङ्गलमङ्गला॥
सर्वबुद्धिस्वरूपा च सर्वशक्ति स्वरूपिणी। सर्वज्ञानप्रदा देवी सर्वज्ञा सर्वभाविनी।
त्वं स्वाहा देवदाने च पितृदाने स्वधा स्वयम्। दक्षिणा सर्वदाने च सर्वशक्ति स्वरूपिणी।
निद्रा त्वं च दया त्वं च तृष्णा त्वं चात्मन: प्रिया। क्षुत्क्षान्ति: शान्तिरीशा च कान्ति: सृष्टिश्च शाश्वती॥
श्रद्धा पुष्टिश्च तन्द्रा च लज्जा शोभा दया तथा। सतां सम्पत्स्वरूपा श्रीर्विपत्तिरसतामिह॥
प्रीतिरूपा पुण्यवतां पापिनां कलहाङ्कुरा। शश्वत्कर्ममयी शक्ति : सर्वदा सर्वजीविनाम्॥
देवेभ्य: स्वपदो दात्री धातुर्धात्री कृपामयी। हिताय सर्वदेवानां सर्वासुरविनाशिनी॥
योगनिद्रा योगरूपा योगदात्री च योगिनाम्। सिद्धिस्वरूपा सिद्धानां सिद्धिदाता सिद्धियोगिनी॥
माहेश्वरी च ब्रह्माणी विष्णुमाया च वैष्णवी। भद्रदा भद्रकाली च सर्वलोकभयंकरी॥
ग्रामे ग्रामे ग्रामदेवी गृहदेवी गृहे गृहे। सतां कीर्ति: प्रतिष्ठा च निन्दा त्वमसतां सदा॥
महायुद्धे महामारी दुष्टसंहाररूपिणी। रक्षास्वरूपा शिष्टानां मातेव हितकारिणी॥
वन्द्या पूज्या स्तुता त्वं च ब्रह्मादीनां च सर्वदा। ब्राह्मण्यरूपा विप्राणां तपस्या च तपस्विनाम्॥
विद्या विद्यावतां त्वं च बुद्धिर्बुद्धिमतां सताम्। मेधास्मृतिस्वरूपा च प्रतिभा प्रतिभावताम्॥
राज्ञां प्रतापरूपा च विशां वाणिज्यरूपिणी। सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा त्वं रक्षारूपा च पालने॥
तथान्ते त्वं महामारी विश्वस्य विश्वपूजिते। कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च मोहिनी॥
दुरत्यया मे माया त्वं यया सम्मोहितं जगत्। यया मुग्धो हि विद्वांश्च मोक्षमार्ग न पश्यति॥
इत्यात्मना कृतं स्तोत्रं दुर्गाया दुर्गनाशनम्। पूजाकाले पठेद् यो हि सिद्धिर्भवति वाञ्िछता॥
वन्ध्या च काकवन्ध्या च मृतवत्सा च दुर्भगा। श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सुपुत्रं लभते ध्रुवम्॥
कारागारे महाघोरे यो बद्धो दृढबन्धने। श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं बन्धनान्मुच्यते ध्रुवम्॥
यक्ष्मग्रस्तो गलत्कुष्ठी महाशूली महाज्वरी। श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सद्यो रोगात् प्रमुच्यते॥
पुत्रभेदे प्रजाभेदे पत्नीभेदे च दुर्गत:। श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं लभते नात्र संशय:॥
राजद्वारे श्मशाने च महारण्ये रणस्थले। हिंस्त्रजन्तुसमीपे च श्रुत्वा स्तोत्रं प्रमुच्यते॥
गृहदाहे च दावागनै दस्युसैन्यसमन्विते। स्तोत्रश्रवणमात्रेण लभते नात्र संशय:॥
महादरिद्रो मूर्खश्च वर्ष स्तोत्रं पठेत्तु य:। विद्यावान धनवांश्चैव स भवेन्नात्र संशय:॥