अध्यात्म

श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित है ‘कलियुग का लिव इन रिलेशनशिप’, लिखा- ‘कलयुग में शादी नाम की…’

एक सभ्य समाज के लिए लिव इन रिलेशनशिप सबसे घातक प्रचलन माना जाता है। हालांकि अब इसे कानूनी मान्यता मिल चुकी है, लेकिन लोग इसका गलत फायदा उठा रहे हैं। कई लोग ऐसे हैं जो सालों तक लिव इन में रहने के बाद किसी दूसरे से शादी कर लेते हैं  या अपने पार्टनर को धोखा देकर भाग जाते हैं। बता दें कि लिव इन रिलेशनशिप में दो अविवाहित लोग पति पत्नी की तरह साथ रहते हैं। इसके बाद अगर मन होता है, तो एक दूसरे से शादी के बंधन में बंध जाते हैं और सबकुछ ठीक नहीं रहा, तो अपना अलग अलग रास्ता चुन लेते हैं।

मनुष्य जब विकसित नहीं हुआ था या कहें कि अंधकार काल में समाज में शादी की कोई प्रथा नहीं थी और ना ही लोगों को रिश्ते-नातों के बारे में पता था। पुरूष और स्त्री शारीरिक संबंध बनाकर संतान उत्पन्न करते थे, ऐसे में पिता का कोई ज्ञान नहीं था। समाज में संतान का परिचय माता से ही होता था। इसके बाद आर्यों और वैदिक ऋषियों का आगमन हुआ और इन्होंने ही सर्वप्रथम समाज को सभ्य बनाने की दिशा में कुछ सामाजिक कानून-व्यवस्थाएं लागू कीं, जिससे लोग एक सभ्य समाज में बंधे। इसी में कुछ वैवाहिक नियमों का भी निर्माण किया गया।

क्या मनुष्य पुनः अंधकार काल में जा रहा है?

ऋषि श्वेतकेतु का एक संदर्भ वैदिक साहित्य में आता है। ऐसा माना जाता है कि इन्होंने ही समाज की मर्यादा की रक्षा के लिए सर्वप्रथम विवाह प्रणाली की स्थापना की थी और इस व्यवस्था के लागू होने के बाद ही रिश्ते नाते और कुंटुब व्यवस्था की शुरूआत हुई। बहरहाल, अब मनुष्य जाति पुनः अंधकार काल या कहें कि आदिमानव काल में वापस लौटने को आतुर नजर आ रहा है। अब और तब में फर्क सिर्फ इतना नजर आता है कि तब ना ही पक्के मकान थे और ना ही इतनी विकसित तकनीकी व्यवस्था थी। लेकिन क्या आपको पता है ऐसे लोग जो समाज को पुनः अंधकार में ले जाने की तैयारी कर रहे हैं, उनके लिए श्रीमद्भागवत पुराण में ही एक श्लोक के जरिए भविष्यवाणी की जा चुकी थी।

दाम्पत्येऽभिरुचिर्हेतुः मायैव व्यावहारिके ।

स्त्रीत्वे पुंस्त्वे च हि रतिः विप्रत्वे सूत्रमेव हि ॥ श्लोक-3

 

अर्थ- इस युग में पुरुष-स्त्री बिना विवाह के ही केवल एक-दूसरे में रूचि के अनुसार साथ रहेंगे। व्यापार की सफलता छल पर निर्भर करेगी। कलयुग में ब्राह्मण सिर्फ एक धागा पहनकर ब्राह्मण होने का दावा करेंगे।

 

अनाढ्यतैव असाधुत्वे साधुत्वे दंभ एव तु ।
स्वीकार एव चोद्वाहे स्नानमेव प्रसाधनम् ॥ श्लोक-8

अर्थ-  इस युग में जिस व्यक्ति के पास धन नहीं होगा वो अधर्मी, अपवित्र और बेकार माना जाएगा। विवाह दो लोगों के बीच बस एक समझौता होगा और लोग बस स्नान करके समझेंगे की वो अंतरात्मा से शुद्ध हो गए हैं।

कुलनाशक विवाह 

किसी भी पुरूष के लिए विवाह करने के बाद एक पत्नी व्रत धारण करना ही सभ्य पुरूष की निशानी होती है। इस व्रत से पुरूष पिता और दादा आदि बनता है और अपने कुल की भी उन्नति करता है। किंतु जो पुरूष या स्त्री अपनी आपसी समझ से विवाह करते हैं यानी किसी धार्मिक रीति रिवाज से इतर जाकर एक दूसरे से शादी के बंधन में बंधते हैं, ऐसे लोग समाज को दूषित कर विवाह संस्था को खत्म करते हैं। माना जाता है कि लिव इन रिलेशनशिप में पुरूष हमेशा फायदे में रहता है क्योंकि ये बहुविवाह का एक आधुनिक रूप है और ये एक पाशविक संबंध है।

समाज में बढ़ रही है मनमानी रीति से विवाह की पद्धति 

वर्तमान समय में देखा जा रहा है कि लिव इन रिलेशनशिप और दूसरे निषेध तरह के विवाहों का प्रचलन काफी बढ़ता जा रहा है। इसके चलते समाज में अपराध, पतन और हत्या जैसे मामले बढ़ रहे हैं और समाज असभ्य होता जा रहा है। माना जाता है कि इस तरह के संबंध कुल का नाश करते हैं और देश के पतन में भी इनकी भूमिका निभाते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो आधुनिकता के नाम पर निषेध विवाह को बढ़ावा देश और धर्म के खिलाफ है।

साथ ही समाज में कुछ ऐसे लोग हैं, जो हिंदू रीति रिवाज के अलावा अन्य मनमानी तरीकों से शादी के बंधन में बंधते हैं। ये लोग मुहूर्त, समय, अष्टकूट, मिलान, मंगलतोष आदि किसी भी चीज को नहीं मानते हैं। हालांकि इसका दुष्परिणाम इनके जिंदगी में बहुत जल्द ही देखने को मिल जाता है।

जैसा कि आप सभी को मालूम होगा कि हिंदू रीति रिवाज में विवाह को एक महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है, साथ ही इसे एक वैज्ञानिक पद्धति की संज्ञा भी दी गई है जिससे जीवन सुनिश्चित होती है। माना जाता है कि विवाह से मनुष्य के भविष्य को सही दशा और दिशा मिलती है। बता दें कि हिंदू धर्म में विवाह एक अनुबंध या किसी प्रकार का समझौता नहीं है बल्कि ये भलिभांति सोच-समझकर तय किया गया एक आत्मिक और जीवनभर का रिश्ता होता है। इस विवाह में किसी प्रकार का सौदा या लेन देन वर्जित है क्योंकि हिंदू शास्त्रो में कन्या दान को महादान कहा गया है। हालांकि समाज में दहेज प्रथा भी एक विकराल समस्या बनती जा रही है।

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