रोहिंग्या मुस्लिमों को देश से बाहर करने का प्लान बना रही है मोदी सरकार, भेजे जाएंगे म्यांमार!
नई दिल्ली – मोदी सरकार पिछले कुछ सालों में जम्मू समेत कई शहरों में अवैध रूप से बसे रोहिंग्या मुस्लिमों को गिरफ्तार कर वापस म्यामांर भेजने का प्लान बना रही है। गृह मंत्रालय के अफसरों के अनुसार फॉरेनर्स ऐक्ट के तहत देश में अवैध रूप से रह रहे ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें वापस भेजा जाएगा। गौरतलब है कि म्यामांर में जारी हिंसा के बाद से अब तक करीब 40,000 रोहिंग्या मुस्लिम भारत में शरण ले चुके हैं। ये लोग समुद्र, बांग्लादेश और म्यामांर सीमा से लगे चीन इलाके के जरिए भारत में अवैध रूप से आये हैं। जम्मू में सबसे ज्यादा 10 हजार रोंहिग्या मुसलमान बसे हैं। Centre deport rohingya Muslims.
क्या है पूरा मामला –
दरअसल, 1982 में म्यांमार सरकार ने राष्ट्रीयता कानून बनाया था, जिसके तहत रोहिंग्या मुसलमानों की म्यांमार की नागरिकता खत्म कर दी गई थी। इस कानून के लागू होने के बाद से ही म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार से निकालने में लगी हुई है। हालांकि, इस विवाद की शुरुआत लगभग 100 साल पहले हुई थी, लेकिन वर्ष 2012 में म्यांमार के राखिन राज्य में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद म्यांमार सरकार इसको लेकर काफी गंभीर हो गई। आपको बता दें कि यह दंगा उत्तरी राखिन में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्ध धर्म के लोगों के बीच हुआ था, जिसमें 50 से ज्यादा मुस्लिम और करीब 30 बौद्ध लोग मारे गए थे।
क्या है विवाद का इतिहास –
म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमान और बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय के बीच विवाद 1948 में तब से चला आ रहा है जब म्यांमार आजाद हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि राखिन राज्य में जिसे अराकान भी कहा जाता है, 16वीं शताब्दी से ही यहां मुसलमानों का वास था। इस दौरान म्यांमार में ब्रिटिश शासन था। 1826 में पहले एंग्लो-बर्मा युद्ध खत्म होने के बाद अराकान पर ब्रिटिश शासन हो गया। ब्रिटश शासन में बांग्लादेश से मजदूरों को अराकान लाया जाने लगा। जिसके कारण म्यांमार के राखिन में बांग्लादेशी नागरिकों की संख्या लगातार बढ़ने लगी। बांग्लादेश से जाकर राखिन में बसे इन लोगों को ही रोहिंग्या मुसलमान कहा जाता है। रोहिंग्या मुसलमानों की बढ़ती संख्या के कारण म्यांमार सरकार ने 1982 में राष्ट्रीय कानून लागू कर इनकी नागरिकता खत्म कर दी।