राम मंदिर से पहले इंदिरा ने लाल किले में दफनाया था टाइम कैप्सूल, गुप्त रखी गई थी इसकी जानकारी
अयोध्या में राम मंदिर बनाते समय इसकी नींव में एक टाइम कैप्सूल डाला जाएगा। आने वाले समय में मंदिर के इतिहास को लेकर कोई विवाद ना हो सके। इसलिए ये टाइम कैप्सूल राम मंदिर के 200 फीट नीचे दबाया जा रहा है। इस टाइम कैप्सूल में मंदिर का और राम जी से जुड़ा इतिहास लिखा होगा।
क्या होता है टाइम कैप्सूल
टाइम कैप्सूल को एक कंटेनर के रूप में डाला जाता है, जो कि सदियों बाद एक ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में जाना जाता है। टाइम कैप्सूल को खास चीजों से बनाया जाता है। जिसकी वजह से इसे काफी गहराई में दफनाए जाने के बाद भी ये हजारों साल तक सड़ता-गलता नहीं है। आपको बता दें कि 30 नवंबर, 2017 में स्पोन के बर्गोस में करीब 400 साल पुराना एक टाइम कैप्सूल मिला था। जो कि यीशू मसीह की मूर्ति के रूप में था। इसमें साल 1777 के आसपास की आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक की जानकारी दी गई थी। वहीं अब एक ऐसा ही कैप्सूल राम मंदिर के निर्माण के दौरान दफनाया जाना है।
लाल किले की नींव में भी डाला गया था टाइन कैप्लूस
साल 1973 में इंदिरा गांधी सरकार ने लाल किले की नींव में एक टाइम कैप्सूल डाला था। जिसे कालपत्र के नाम से जाना जाता है। इस टाइम कैप्सूल में इंदिरा गांधी की और से क्या लिखा गया था। ये आज तक एक राज ही है। इंदिरा गांधी ने इस टाइम कैप्सूल में लिखी गई जानकारी को गुप्त ही रखा था। हालांकि विपक्ष के लोगों ने आरोप लगाया था कि इस कालपत्र में इंदिरा ने अपने परिवार का महिमामंडन किया है।
Netaji: Rediscovered नाम की किताब में इंदिरा की और से दबाए गए इस टाइम कैप्सूल का जिक्र मिलता है। ये किताब कनाईलाल बासु ने लिखी थी। कहा जाता है कि इंदिरा चाहती थी कि आजादी के बाद 25 सालों में देश की उपलब्धि और संघर्ष के बारे में लिखा जाए और इस चीज को इंदिरा गांधी ने एक टाइम कैप्सूल में लिखवाया था। इस काम की जिम्मेदारी इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्ट्रिकल रिसर्च (आईसीएचआर) को सौंपी गई थी। मद्रास क्रिस्चन कॉलेज के इतिहास के प्रफेसर एस.कृष्णासामी को पूरी पाण्डुलिपि तैयार करने को कहा गया।
हुआ था काफी विरोध
इंदिरा गांधी की और से लाल किले में इस कालपात्र को 15 अगस्त, 1973 को दफनाया गया था और उस समय इसका काफी विरोध भी हुआ था। विपक्ष का कहना था कि इंदिरा गांधी ने टाइम कैप्सूल में अपने और अपने वंश का जिक्र किया है। ये विवाद इतना बढ़ गया था कि उस दौरान जनता पार्टी ने लोगों से ये वादा किया था कि चुनाव जीतने पर वो इस कालपात्र को खोदकर निकालेंगे और देखेंगे कि इसमें क्या है।
वहीं साल 1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनीं। सरकार बनने के बाद इस टाइम कैप्सूल को निकाला गया। मगर इसपर क्या लिखा हुआ था इसका खुलासा जनता पार्टी की और से नहीं किया गया। साल 2013 में इकनॉमिक्स टाइम्स ने इस मसले पर एक खबर भी छापी थी। जिसमें लिखा गया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने टाइम कैप्सूल के बारे में जानकारी होने से इनकार किया है। लेखक मधु पूर्णिमा किश्वर ने इस संबंध में सरकार से सूचना मांगी थी। लेकिन कुछ भी हाथ नहीं लग सका।
नरेंद्र मोदी ने भी दफनाया था टाइम कैप्सूल
कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी ने साल 2011 में एक टाइम कैप्सूल गांधीनगर में निर्मित महात्मा मंदिर के नीचे दफनाया था। विपक्ष ने आरोप लगाया था कि इसपर मोदी ने अपनी उपलब्धियों का बखान किया है। उस समय मोदी इस राज्य के मुख्यमंत्री थे।