2 लाख करोड़ की संपत्ति वाले मंदिर पर कोर्ट ने सुनाया फैसला, इस राज परिवार को मिले अधिकार
भारत मंदिरों का देश है, आस्था और धर्म इस राष्ट्र के आधारभूत स्तंभ है। आदिकाल से ले कर अब तक लोगों में मंदिरों और भगवान के प्रति एक विशेष आस्था रही है। यही कारण है कि लोग मंदिरों में कई रुपए दान करते हैं। भारत में अमीर मंदिरों की एक लंबी लिस्ट है। ऐसे में जब मंदिरों में इतना पैसा आएगा तो इसके अधिकार के लिए फिर झगड़ा भी होगा ऐसा ही एक झगड़ा पिछले नौं सालों से चला आ रहा है। जिसमें अब कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला –
दरअसल पिछले नौं बरस से चली आ रही कानूनी लड़ाई का परिणाम आ चुका है। जिसके अनुसार देश के सबसे अमीर मंदिर को चलाने की पूरी जिम्मेदारी एक राज परिवार के हाथों सौंप दी है। जी हां हम बात कर रहे हैं, केरल के तिरुअनंतपुरम में स्थित श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के बारे में। सुप्रीम कोर्ट में चल रहे इस केस पर फैसला देते हुए कोर्ट ने पद्भनाभ मंदिर के प्रबंधन में त्रावणकोर के राजपरिवार के अधिकार को स्वीकृति दे दी है।
वित्तीय गड़बड़ी को ले कर चल रहा था विवाद
गौरतलब है कि पिछले नौं सालों से प्रबंधन और प्रशासन के बीच पद्मनाभ मंदिर में वित्तीय गड़बड़ियों को लेकर कानूनी लड़ाई चल रही थी। मगर जैसे ही कोर्ट का फैसला आया इस मामले में शांति भी आती दिखाई दे रही है। बता दें कि जब तल शाही परिवार प्रबंधन में शामिल नहीं हो जाता तब तक यह मंदिर तिरुअनंतपुरम के जिला जज की अध्यक्षता वाली कमेटी के हाथों में रहेगा, वही इसकी व्यवस्था देखेगी।
केरल हाईकोर्ट के फैसले को शाही परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में दी थी चुनौती
बता दें कि यह केस सुप्रीम कोर्ट में नौं सालों से अटका हुआ पड़ा था। वहीं यह भी जानने वाली बात है कि त्रावणकोर के शाही परिवार ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। माना जाता है कि मंदिर के पास तकरीबन दो लाख करोड़ रुपये की संपत्ति है। सिर्फ इतना ही नहीं यहां कई ऐसे तहखाने भी हैं जिनमें लाखों करोड़ रुपयों का खजाना बंद है।
शाही परिवार ने करवाया था मंदिर का पुनर्निर्माण
18 वीं सदी में त्रावणकोर के शाही परिवार ने इस पद्मनाभ स्वामी मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। पद्मनाभ विष्णु भगवान का ही एक नाम है। बता दें आजादी से पहले तक इस राज परिवार ने दक्षिणी केरल तथा उससे लगे तमिलनाडु पर शासन किया था। इसके बाद 1947 में इस राज परिवार ने अपना शासन भारतीय संघ में विलय कर दिया था। किंतु आजादी के बाद भी मंदिर की बागडोर शाही परिवार के हाथ में ही थी, इसके लिए राज परिवार ने एक ट्रस्ट बनाया हुआ था जिस पर नियंत्रण शाही परिवार का था। बता दें त्रावणकोर शाही परिवार के अधिष्ठाता कुलदेवता भगवान पद्मनाभ स्वामी ही हैं।
वहीं सुप्रीम कोर्ट के सामने यह विवाद आया था कि इस सबसे अमीर मंदिर पर नियंत्रण राज्य सरकार का रहेगा या त्रावणकोर के शाही परिवार का। कोर्ट के सामने यह सवाल था कि क्या यह मंदिर सार्वजिक संपत्ति है या शाही परिवार की संपत्ति ? इस पर शाही परिवार की जिरह को मान्यता दी गयी। हालांकि बैंच अभी यह भी तय कर सकती है कि राज परिवार का अधिकार किस हद तक रहेगा।