धोनी के टैलेंट के सामने झुका किक्रेट बोर्ड, बदल डाले थे कई नियम
इंडियन क्रिकेट टीम के कैप्टन कूल कहे जाने वाले महेंद्र सिंह धोनी आज अपना 39वां बर्थडे सेलिब्रेट कर रहे हैं। 7 जुलाई 1981 को उनका जन्म झारखंड के रांची शहर में हुआ था। आईसीसी के तीनों खिताब जीतने वाले इकलौते कप्तान महेंद्र सिंह धोनी झारखंड राज्य के पहले अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर हैं। धोनी को सिर्फ 23 साल की उम्र में टीम इंडिया से बुलावा आया और इस विकेटकीपर बल्लेबाज ने टीम इंडिया में मिले मौके को दोनों हाथों से लपक लिया। बता दें कि अपने 5वें एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच में ही धोनी ने 148 रन की जबरदस्त पारी खेलकर सभी को अपनी तरफ आकर्षित कर लिया था।
पाकिस्तान के खिलाफ 2 शुरूआती धुआंधार शतकों के बदौलत इस क्रिकेटर ने इतनी सुर्खियां बटोरीं कि उन्हें टीम इंडिया का भविष्य माना जाने लगा। महेंद्र सिंह धोनी ने भी अपनी प्रतिभा से इस बात का परिचय दे दिया कि वे ही आगे चलकर इंडियन क्रिकेट की पूरी सूरत बदल देंगे। ये बात सच होती हुई तब नजर आई जब साल 2007 में धोनी की अगुवाई वाली टीम ने टी-20 विश्व खिताब अपने नाम किया।
बतौर कप्तान धोनी का अंतरराष्ट्रीय करियर…
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि महेंद्र सिंह धोनी बीसीसीआई के प्रतिभा अनुसंधान विकास विभाग की खोज थे। हालांकि ये बात सच है कि धोनी के लिए आयु संबंधी नियमों में बीसीसीआई को कुछ ढील देनी पड़ी थी। धोनी के टीआरडीडब्ल्यू योजना में शामिल होने की कहानी भी जानेंगे, लेकिन उससे पहले आइये एक नजर डालते हैं, धोनी के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर पर।
धोनी ने जैसे ही इंटरनेशनल क्रिकेट में पदार्पण किया, उनकी तुलना आस्ट्रेलिया के महान विकेटकीपर बल्लेबाज एडम गिलक्रिस्ट से होने लगी। इसके अलावा धोनी में लोगों को माइकल वेवन की झलक देखने को मिली, बता दें कि माइकल वेवन भी मैच को फिनिश करने में माहिर थे। धोनी ने अपनी अगुवाई में टीम इंडिया को पहले आईसीसी टी-20 खिताब जीताया और उसके अगले ही साल आस्ट्रेलिया में जाकर सीबी सीरिज पर कब्जा जमाया और इसके बाद महेंद्र सिंह धोनी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट जगत में प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंच गए।
2008 में ऑस्ट्रेलिया के अलावा इंग्लैंड और न्यूजीलैंड की सरजमीं पर भी सीरीज जीत दर्ज की। वहीं दूसरी तरफ माही की कप्तानी में दिसबंर 2009 में भारत टेस्ट क्रिकेट में नंबर-1 बन गया। इसके बाद साल 2011 में भारत ने धोनी की ही कप्तानी में आईसीसी वनडे क्रिकेट वर्ल्ड कप जीता। साल 2013 में भारतीय जमीन पर आस्ट्रेलिया जैसी धुरंधर टीम को 4-0 से क्लीन स्वीप किया। 2013 में टीम इंडिया अजेय रथ पर सवार थी और इंग्लैंड में जाकर चैंपियंस ट्रॉफी का खिताब जीता।
साल 2014 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चल रहे टेस्ट सीरीज में धोनी ने अचानक टेस्ट की कप्तानी छोड़ दी। न सिर्फ कप्तानी छोड़ी बल्कि टेस्ट क्रिकेट को अलविदा को कह दिया। इसके बाद माही ने साल 2017 में वनडे और टी-20 की कप्तानी भी छोड़ दी। और सीमित ओवरों के क्रिकेट में विराट कोहली की अगुवाई में उन्होंने अपने आगे का सफर तय किया।
महेंद्र सिंह धोनी साल 2019 के वर्ल्ड कप से पहले ही अपने सुस्त बल्लेबाजी के कारण निशाने पर थे। इसके बाद सेमीफाइनल में हार के बाद से वो क्रिकेट से दूर हैं, हालांकि अभी उन्होंने संन्यास की घोषणा नहीं की है। उम्मीद जताई जा रही थी कि इस साल के आईपीएल से वो फिर से क्रिकेट में वापसी कर सकते हैं, मगर कोरोना वायरस की वजह से इस साल का आईपीएल अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया है।
प्रतिभा अनुसंधान विभाग की खोज थे धोनी…
दिलीप वेंगसरकर क्रिकेट प्रतिभाओं को ढूंढने के लिए सबसे अच्छे चयनकर्ताओं में से एक माने जाते थे। उनके चयन समिति के अध्यक्ष (2006-2008) रहते ही महेंद्र सिंह धोनी कप्तान बने थे। वेंगसरकर का ये कार्यकाल आने वाले चयनकर्ताओं के लिए एक पैमाना बन गया। वेंगसरकर मानते हैं कि वो अध्यक्ष पद के साथ इसलिए न्याय कर पाए क्योंकि वे प्रतिभा अनुसंधान विकास विभाग से जुड़े हुए थे। यही वो विभाग था, जिसने धोनी को खोजा। बता दें कि अब यह विभाग अस्तित्व में नहीं है।
महेंद्र सिंह धोनी मात्र 21 साल की उम्र में बीसीसीआई के टीआरडीडब्ल्यू योजना में शामिल हुए थे। हालांकि इस योजना से जुड़ने के लिए अधिकतम उम्र सीमा 19 साल थी। अब ऐसे में एक सवाल आपके दिमाग में आया होगा कि जब उम्र सीमा 19 साल थी, तो 21 साल के धोनी इस योजना में कैसे शामिल हुए? इसके पीछे की कहानी काफी दिलचस्प है। आइये जानते हैं, आखिर क्या है वो कहानी…
दरअसल बंगाल क्रिकेट के पूर्व कप्तान रह चुके प्रकाश पोद्दार के कहने पर धोनी को टीआरडीडब्ल्यू में शामिल किया गया था। पोद्दार ने वेंगसरकर से ये आग्रह किया था कि धोनी जैसे प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को इस योजना से अवश्य शामिल किया जाना चाहिए। इसके बाद निर्णय लिया गया कि प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के लिए उम्र आड़े नहीं आएगी।
दरअसल पोद्दार जमेशदपुर में एक अंडर-19 मैच देखने गए हुए थे। उसी समय बगल के कीनन स्टेडियम में बिहार की टीम एकदिवसीय मैच खेल रही थी। मैच के दौरान बार बार गेंद स्टेडियम के बाहर आ रही थी। पोद्दार के मन में उत्सुकता जागी कि कौन है, जो इतने बार गेंद को स्टेडियम के बाहर मार रहा है। जब उन्होंने जाकर वहां पता किया, तो उन्हें धोनी के बारे में पता चला।
इसके बाद पोद्दार ने धोनी की पैरवी वेंगसरकर से की। वेंगसरकर भी इससे आकर्षित हुए। इसके बाद उन्होंने कहा कि पोद्दार के कहने पर ही 21 साल के धोनी को टीआरडीडब्ल्यू कार्यक्रम का हिस्सा बनाया गया। बता दें जगमोहन डालमिया ने इस योजना की शुरूआत की थी। इसके बाद जब डालमिया बोर्ड के अध्यक्ष पद का चुनाव हार गए, तो यह योजना बंद हो गई।
माही का अंतरराष्ट्रीय करियर
बात करें अगर धोनी के इंटरनेशनल करियर की, तो उन्होंने 350 एकिदवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच में 50.57 की औसत से 10733 रन बनाए हैं। इसमें 10 शतक और 73 अर्धशतक शामिल हैं। इस दौरान उनका सर्वोच्च स्कोर 183 रहा। जबकि बतौर विकेटकीपर उन्होंने 444 शिकार किए हैं।
टेस्ट में धोनी ने 90 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले, जहां उन्होंने 4867 रन बनाए। इसमें 6 शतक और 33 अर्धशतक लगाए हैं। जबकि उनका उच्चतम स्कोर 224 रन रहा है और विकेट के पीछे 294 शिकार किए हैं। वहीं टी-20 इंटरनेशनल की बात करें, तो उन्होंने 98 मैचों में 37.60 की औसत से 1617 रन बनाए हैं। इसमें मात्र 2 अर्धशतक ल हैं। टी-20 में उनका उच्चतम स्कोर 56 रन रहा और विकेट के पीछे 91 शिकार किए हैं।