चाणक्य ज्ञान : इन 4 चीज़ों से कभी संतुष्ट नहीं हो पाता है इंसान, पूरी ज़िंदगी हो जाती है बर्बाद
चाणक्य नीति दुनिया के सबसे प्रमाणित नीतियों में से एक है। खासकर भारत में काफी तादाद में लोग चाणक्य नीति के आधार पर चलते हैं। माना जाता है कि इस नीति के आधार पर चलने वाले लोगों को दुख दारिद्रय जैसी चीजें कभी छू तक नहीं सकती हैं। अगर आप भी चाणक्य नीति को अपने जीवन में लाएंगे, तो सफलता आपके कदम चूमेगी। आज हम आपको चाणक्य नीति शास्त्र के एक ऐसे ही श्लोक से रूबरू कराने जा रहे हैं। अगर आपने इसे पढ़कर अपने जीवन में लागू कर दिया, तो आपके जीवन में भी सुख का प्रवेश हो जाएगा। चलिए जानते हैं, आखिर क्या है चाणक्य नीति शास्त्र का ये श्लोक…
मनुष्य हर काम अपने सुख प्राप्ति के लिए ही करता है। इसी कड़ी में इंसान सुख के उन साधनों के पीछे भागता है, जिससे जीवन आसान हो। इन चीजों में धन-दौलत, ऐश्वर्य, सम्मान, शारीरिक व मानसिक सुख सहित अनेक चीजें शामिल हैं। मगर, इनमें से कुछ चीजें ऐसी हैं जिनसे इंसान कभी भी संतुष्ट नहीं होता है। इससे संबंधित चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में एक श्लोक दिया है। इस श्लोक में उन 4 चीजों का उल्लेख है, जिनके लिए इंसान हमेशा लालायित रहता है।
धनेषु जीवितव्येषु स्त्रीषु भोजनवृत्तिषु।
अतृप्ताः मानवाः सर्वे याता यास्यन्ति यान्ति च॥
धन
इस श्लोक के माध्यम से चाणक्य ने कहा है कि इंसान धन के लिए हमेशा लालायित रहता है। चाहे मनुष्य कितना भी धन क्यों न कमा ले, धन एक ऐसी चीज है जिसकी लालासा इंसान को जीवन भर रहती है। इंसान अपने अंतिम सांस तक पैसे कमाने की कोशिश करता है। वो हमेशा यही सोचता है कि, ज्यादा से ज्यादा पैसे कहां से मिलें। ऐसे लोग पैसे से कभी संतुष्ट नहीं होते, ऐसी स्थिति में कई बार इंसान गलत रास्ते भी चुन लेता है। यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि, पैसे का लालच इंसान के जीवन को नष्ट कर देता है।
आयु
चाणक्य इस श्लोक में आयु का भी जिक्र करते हैं। चाणक्य कहते हैं कि जो इस धरती पर जन्म लेता है वो कभी मरना नहीं चाहता, ये एक इंसान की फितरत होती है। कोई भी व्यक्ति चाहे वो गरीब हो या अमीर हो, वो अपने आयु को लेकर कभी संतुष्ट नहीं हो पाता।
भोजन
चाणक्य इस श्लोक में भोजन का भी जिक्र करते हैं। वे कहते हैं कि इंसान कितना भी भोजन क्यों ना कर ले। उसे हमेशा और अधिक खाने की चाहत रहती है। व्यक्ति कभी भोजन से संतुष्ट नहीं होता। चाणक्य कहते हैं कि एक इंसान को जरूरत भर का भोजन ही करना चाहिए। अधिक भोजन से स्वास्थ्य से संबंधित अनेक परेशानियां हो सकती हैं।
स्त्री
इस श्लोक के अंत में चाणक्य भोजन के साथ साथ स्त्री का भी जिक्र करते हैं। चाणक्य का मानना है कि, जरूरत के मुताबिक चाहत पूरी हो जाने के बावजूद इंसान को इसकी लालसा रहती है। अधिकतर पुरूष स्त्री के मामले में हमेशा असंतुष्ट रहते हैं। ऐसी असंतुष्टि मनुष्य से इंसान बर्बाद हो जाता है।
चाणक्य के अनुसार धन, आयु, भोजन और स्त्री के मामले में व्यक्ति को कभी असंतुष्ट नहीं होना चाहिए। अन्यथा जीवन बर्बाद हो सकता है। चाणक्य कहते हैं कि, इन 4 चीजों पर काबू पा लेने वाला व्यक्ति ही सुख प्राप्त करता है। वरना मनुष्य का जीवन नष्ट हो जाता है।